पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का दिल्ली के एम्स में गुरुवार शाम को 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया. वाजपेयी के निधन से देशभर में शोक की लहर दौड़ गई. पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी को श्रद्धांजलि देने देश के कद्दावर नेता उनके घर पहुंचे. वाजपेयी न सिर्फ राजनेता और प्रखर वक्ता थे बल्कि वह एक कवि, लेखक पत्रकार भी रहे. धुर दक्षिणपंथी होने के बावजूद उनके जीवन में ऐसा भी वक्त आया जब उन्हें देशहित के लिए वामदलों की मदद लेनी पड़ी थी.
बात 2002 की है. अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे. उसी दौरान इराक में भारतीय फौज भेजने का मसला गरमाया हुआ था. फौज भेजने के लिए अमेरिका का दबाव था. इस विषम परिस्थिति से निकलने का रास्ता किसी को सूझ नहीं रहा था. लेकिन वाजपेयी ने हंसी-मजाक में इस मसले को सुलझा दिया.
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पीएमओ में उनके साथ काम करने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी ने चार साल पहले खुद ही इस बात को कुछ मेरे सहित कुछ और पत्रकारों के साथ साझा किया था. वाजपेयी ने एक दिन वामपंथी नेता हरकिशन सिंह सुरजीत को फोन किया. फोन पर वाजपेयी ने सुरजीत से कहा कि, ‘कॉमरेड बहुत दिन हो गए तुम्हारे साथ चाय नहीं पी है. अभी चाय पीने आ जाओ.’(वाजपेयी अनौपचारिक बातचीत में सुरजीत को कॉमरेड कह कर ही बुलाते थे.)
चाय पर बुलाए कॉमरेड
सुरजीत ने पूछा कि मसला क्या है कि अचानक से अभी चाय पीने बुला रहे हैं. वाजपेयी ने उस वक्त सिर्फ यही उत्तर दिया कि बस यूं ही चाय पीने की इच्छा है. सुरजीत ने कहा कि मेरे साथ एबी वर्धन भी हैं. वाजपेयी ने कहा कि उन्हें भी साथ ले आओ. दोनों वामपंथी नेता वाजपेयी के घर पहुंच गए.
वाजपेयी को जैसे ही पता चला कि दोनों नेता पहुंच गए हैं तो उन्होंने गेट पर ही दोनों का स्वागत किया और गले लगाया. इसके बाद कमरे में तीनों बैठ गए. सुरजीत ने पूछा कि, क्या बात हैं पंडित, क्या बात करनी थी जो बुलाया है (सुरजीत अनौपचारिक बातचीत में वाजपेयी को पंडित कह कर बुलाते थे). वाजपेयी ने मासूमियत से कहा कि कुछ नहीं सिर्फ चाय पीना है तुम्हारे साथ. खैर चाय आ गई. जैसे ही सुरजीत ने चाय का प्याला हाथ में लिया वाजपेयी बोल पड़े, कॉमरेड अमेरिका का बहुत दबाव है, इराक में फौज भेजनी होगी.
सुरजीत और वर्धन यह बात सुन कर बिफर पड़े. उन्होंने खूब भड़ास निकाली. इसी क्रम में वर्धन के हाथ से चाय की प्याली छूट गई. वाजपेयी ने तुरंत चाय देने वाले को बुलाया. टेबल साफ करने के बाद चाय दोबारा लाने को कहा. चाय दोबारा आ गई. वाजपेयी ने फिर वही बात दोहराई कि अमेरिका का बहुत दबाव है फौज भेजनी होगी. दोबारा यह बात सुनकर दोनों वामपंथी नेता आग-बबूला हो गए और यह कह कर उठने लगे कि आप को क्या लगता है कि चाय पर चर्चा कर के हमें फौज भेजने के लिए आप मना लेंगे.
संसद को बाधित क्यों नहीं करते...
यह सुनते ही वाजपेयी तुरंत बोले कि, कॉमरेड मुझ पर चिल्लाने से कोई फायदा नहीं. सड़क पर तो नहीं चिल्ला रहे हो और संसद भी सुचारू रूप से चल रहा है वहां भी तो हल्ला करो. जरा कांग्रेस के नेताओं को भी तो फोन कर बताओ कि बात इराक में फौज भेजने की बात हो रही है और विपक्ष संसद की कार्यवाही चलने दे रहा है. विपक्ष इस मुद्दे पर इतना भी आक्रामक नहीं है कि वह सदन की कार्यवाही बाधित करे और सड़कों पर प्रदर्शन करे.
वाजपेयी के यह कहते हीं तुरंत ही वामपंथी नेताओं को बात समझ में आ गई. अगले दिन से ही इराक में फौज भेजने के मुद्दे पर वामपंथी दलों ने सड़कों पर धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया और कांग्रेस ने सदन की कार्यवाही बाधित कर दी. दरअसल वाजपेयी अमेरिका को यह संदेश देना चाहते थे कि इराक में भारतीय फौज भेजने के लिए विपक्ष राजी नहीं है. पूरा विपक्ष इतना आक्रामक है कि जगह-जगह सड़कों पर प्रदर्शन हो रहे हैं और संसद का कामकाज भी ठप पड़ गया है. इसलिए फौज भेजने के मुद्दे पर राजनीतिक सहमति बनने की बात तो दूर विरोध उग्र हो गया है. और हुआ भी यही. भारत ने अमेरिका को आंतरिक स्थिति का हवाला देते हुए फौज भेजने के आग्रह को ठुकरा दिया था.