पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari vajpayee) ने अपने पांच दशक के राजनीति जीवन में कई अहम उतार चढ़ाव भरे दौर देखे. उन्होंने बीजेपी को शून्य से शिखर तक पहुंचाया. प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने मुश्किल भरे पांच फैसले लिए थे. वाजपेयी पर इन फैसलों के लेकर काफी सवाल खड़े हुए थे. विपक्ष आज भी उन्हीं फैसलों को लेकर बीजेपी को घेरने का काम करता है.
अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कई ऐतिहासिक फैसलों में से एक है पोखरण परमाणु परीक्षण. 1998 में वाजपेयी ने पोखरण में 2 दिन के अंतराल में 5 परमाणु परीक्षण करके सारी दुनिया को चौंका दिया था. इसके बाद दुनियाभर के तमाम देश भारत के विरोध में खड़े हो गए थे. अमेरिका सहित कई देशों में आर्थिक पाबंदी लगा दी. इतना ही नहीं देश में विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार को घेरने में जुटा था. देश की आर्थिक हालत बिगड़ गई थी.
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कंधार में आतंकियों को छोड़ना
अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में आतंकियों ने 24 दिसंबर 1999 को इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट आईसी-814 को हाईजैक कर लिया था. इसमें 176 यात्री और 15 क्रू मेंबर्स सवार थे. आतंकियों ने शुरू में भारतीय जेलों में बंद 35 उग्रवादियों की रिहाई और 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर की मांग की. सरकार इस पर राजी नहीं हुई और बाद में तीन आतंकियों को छोड़ने पर सहमति बनी. वाजपेयी सरकार के विदेश मंत्री रहे जसवंत सिंह खुद ही आतंकी मसूद अजहर, अहमद ज़रगर और शेख अहमद उमर सईद को लेकर गए और रिहा किया इसके बाद प्लेन को छोड़ा गया. इसे लेकर बीजेपी पर आजतक सवाल खड़े किए जाते हैं.
करगिल में पाकिस्तान की घुसपैठ
दुश्मन देश पाकिस्तान सरहद लांघकर करगिल में घुस आया. पाकिस्तान सेना और आतंकियों की संयुक्त टीमें सरहद पारकर कश्मीर में घुसीं. कारगिल में पाकिस्तान के घुसने से देशवासियों में रोष बढ़ा और वाजपेयी सरकार पर सवाल खड़े हुए. इसके बाद अटल ने नवाज शरीफ से फोन पर बात की और समझाया, लेकिन बात नहीं बनी. फिर कारगिल युद्ध शुरू हुआ. भारत की अवाम गुस्से में थी और पाकिस्तान पर हमला करने की मांग उठने लगी थी. लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने संयम रखा. भारतीय सेना ने कारगिल में कार्रवाई की और घुसैपैठियों को मार गिराया. इस अभियान में हमारे काफी सैनिक भी शहीद हुए.
दिल्ली लाहौर बस सेवा
अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान से रिश्ते को पटरी पर लाने के लिए दिल्ली-लाहौर के बीच 1999 में बस सेवा शुरू की. वाजपेयी के इस कदम को लेकर भारत की अवाम ने काफी ऐतराज जताया था. 2001 में संसद में हमले के बाद इस सेवा को कुछ दिनों के लिए बंद कर दिया गया था, लेकिन 2003 में द्विपक्षीय संबंधों में सुधार के बाद इसे दोबारा शुरू कर दिया गया.
मुशर्रफ को भारत बुलाना
करगिल में आतंकियों की घुसपैठ के बाद जुलाई 2001 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के साथ आगरा में शिखर बैठक करने का फैसला अटल बिहारी वाजपेयी का काफी मुश्किल भरा था. यह बैठक बेनतीजा निकली और दोनों देशों के रिश्तों में और भी तल्खी आ गई. इतना ही नहीं बैठक के पांच महीने के बाद ही भारतीय संसद पर आतंकियों ने हमला कर दिया. इससे वाजपेयी सरकार की काफी गिरकिरी हुई.