बात 1982-83 की है. दक्षिणी दिल्ली के मालवीय नगर में एक शाम एक रैली होने की सूचना मिली. उसमें प्रथम वक्ता के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी का नाम था. इस आशय के पर्चे बांटे गए और लाउड स्पीकर पर घोषणाएं भी हुईं.
मेन मार्केट के पास एक छोटा सा स्थान था जिसे पार्क कहा जाता था. रैली वहां होने वाली थी. शाम को जब बाज़ार में थोड़ी रौनक होने लगी तो बकायदा लाउड स्पीकर से मुख्य स्थल से घोषणा होने लगी. कुछ लोग वहां जमा हो गए. काफी देर हो गई. वाजपेयी जी का कोई अता-पता नहीं था. श्रोताओं की संख्या ज्यादा नहीं थी और उनमें अधिकांश बिहार-यूपी के ही लोग थे. स्थानीय यानी पंजाबी जनता बहुत ही कम थी.
काफी देर हो गई. वाजपेयी जी नहीं आए. आयोजक बहुत मुश्किल से लोगों को रोक पा रहे थे. लाउड स्पीकर पर कुछ ने कुछ घोषणाएं होती जा रही थीं. जब लोग निराश होने लगे तभी घोषणा हुई कि वाजपेयी जी आ गए हैं. उनके मंच पर आने के बाद थोड़ी तालियां बजीं लेकिन कोई बहुत उत्साह नहीं दिखा. आयोजकों ने थोड़ी देर उनकी तारीफ करके माइक उन्हें पकड़ा दिया.
पहले तो वाजपेयी जी ने राजनीतिक बातें शुरू की और इंदिरा गांधी पर वार किए. लोगों ने कुछ तालियां बजाईं लेकिन उत्साह गायब था. फिर वाजपेयी जी थोड़ा रुके और उन्होंने अपनी एक कविता का एक अंश अपने अंदाज में सुनाया. फिर दूसरी कविता का अंश. और फिर तो समां बंध गया. लोगों की तालियां तेज होती गईं और आस-पास के लोग दौड़-दौड़ कर वहां इकट्ठे होने लगे. कई दुकानदार तो दुकानें बंद करके वहां पहुंचने लगे. पार्क भर गया, लोग सड़क पर खड़े हो गए. देखते-देखते अच्छी खासी भीड़ हो गई और तालियां गूंजती रहीं. वाजपेयी जी की आवाज़ हर कोई कान लगाकर सुन रहा था. उन्होंने सभा में इंदिरा गांधी की नीतियों की धज्जियां उड़ा दीं और वह भी बिना कटु हुए. अपने खास अंदाज में जब वह बोलते-बोलते चुप हो जाते थे तो जैसे कि वहां सन्नाटा छा जाता था और लोग उनके अगले शब्दों का इंतज़ार करने लग जाते थे.
उस ज़माने में टीवी कवरेज की व्यवस्था नहीं थी. लेकिन मालवीय नगर, साकेत वगैरह के लोग उस सभा को और वाजपेयी जी के उस कवित्व पूर्ण भाषण की बहुत समय
तक चर्चा करते रहे. काफी समय तक वाजपेयी जी की बातें लोग याद करते रहे. तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह शख्स भारत का प्रधान मंत्री बनेगा और उसे भारत
रत्न मिलेगा.