ऐसे वक्त में, जब कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर बुरी तरह हारी है, केरल ऐसा राज्य है जो अब भी देश की इस सबसे पुरानी पार्टी के साथ मजबूती से खड़ा है. यहां पर लोकसभा की 20 सीटें हैं, इनमें से कांग्रेस की अगुआई वाले यूडीएफ गठबंधन ने 19 सीटें जीत ली हैं. कांग्रेस खुद 16सीटों पर चुनाव लड़ी थी और 15 जीत गई. राज्य में सत्तारूढ़ लेफ्ट गठबंधन के लिए यह झटका है कि जनता ने उन्हें महज एक सीट पर समेट दिया. यह चुनाव नतीजा सीपीआई और सीपीएम के राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे पर भी असर डालेगा. बीजेपी की अगुआई वाले एनडीए गठबंधन का यहां फिर एक बार खाता नहीं खुल सका.
पूरे देश में 19 मई को मतदान समाप्त होने के बाद इंडिया टुडे और एक्सिस माई इंडिया ने अपने एक्जिट पोल सर्वे का अनुमान जारी किया था. इस सर्वे में कहा गया था कि राज्य में कांग्रेस गठबंधन एकतरफा प्रदर्शन करते हुए 15-16 तक सीटें जीत सकता है, एलडीएफ गठबंधन 3-5 सीटों पर सिमट सकता है और बीजेपी के लिए खाता खोलना भी मुश्किल होगा. हमारा अनुमान थोड़े से परिवर्तन के साथ सच साबित हुआ. यूडीएफ को 2014 में यहां से 12 सीटें मिली थीं जो इस चुनाव में बढ़कर 19 हो गईं, जबकि एलडीएफ यानी लेफ्ट गठबंधन को यहां जबरदस्त झटका लगा और वह 8 सीटों से सिमट कर 1 सीट पर आ गया.
बीजेपी राज्य में अपना खाता खोलने में नाकाम रही. सर्वे में कहा गया था कि तिरुवनंतपुरम लोकसभा सीट बीजेपी लड़ाई में है, जहां पर उसका खाता खुलने की थोड़ी सी उम्मीद की जा सकती है, वहां पर वह दूसरे नंबर पर रही. पूरे राज्य में यह एकमात्र सीट है जहां पर बीजेपी को दूसरे नंबर पर रहने की उपलब्धि हासिल हो सकी.
इंडिया टुडे और एक्सिस माई इंडिया का आंकड़ा कहता है कि राज्य में जितने वोट पड़े, यूडीएफ को उसका कुल 47% वोट हासिल हुआ, जबकि एलडीएफ 35%वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहा. एनडीए गठबंधन को राज्य भर में कुल 16% वोट हासिल हुए हैं. अन्य दलों एवं प्रत्याशियों को 2% वोट मिले हैं.
इंडिया टुडे और एक्सिस माई इंडिया के सर्वे से पता चलता है कि अगर धार्मिक आधार पर देखें तो भी यूडीएफ ही राज्य में सबसे पसंदीदा गठबंधन है.38% हिंदू मतदाताओं ने यूडीएफ और एलडीएफ को वोट दिया है, जबकि बीजेपी सबरीमाला मामले को खूब हवा देकर भी बहुसंख्यक मतदाताओं के महज21% वोट ही हासिल कर पाई. 58% मुस्लिम और 56% ईसाई वोटर्स ने यूडीएफ का समर्थन किया. इन दोनों समुदायों से 31% और 30% मतदाताओं ने लेफ्ट गठबंधन का समर्थन किया. बीजेपी को मुस्लिम समुदाय से महज 8% और ईसाई समुदाय से महज 11% वोट मिले. हालांकि, एलडीएफ को अन्य समुदायों से 44% वोट मिले, जबकि यूडीएफ को अन्य समुदायों से 29% और एनडीए को 26% वोट मिले.
अगर आर्थिक वर्गीकरण के आधार पर मतदाताओं का रुख देखा जाए तो अमीर वर्ग की भी पहली पसंद यूडीएफ ही है. सभी आर्थिक वर्ग के 44% से ज्यादा वोटर्स ने कांग्रेस गठबंधन को वोट किया है. 31,000 से अधिक आय वर्ग वाले 55% परिवारों ने कांग्रेस का समर्थन किया. यह दिलचस्प है कि मासिक आय का स्तर बढ़ने के साथ एलडीएफ का वोट शेयर घट रहा है. गरीबी रेखा के नीचे आय वर्ग के 38% वोटर्स ने एलडीएफ को वोट किया है. लेकिन 31,000आय वर्ग तक के वोटर्स के बीच एलडीएफ का समर्थन 20% तक कम हो गया. बीजेपी को बीपीएल परिवारों से लेकर 20,000 आय वर्ग तक के 16%मतदाताओं का समर्थन है, लेकिन इससे ज्यादा के आय वर्ग वाले परिवारों में उसका समर्थन 21% है.
यूडीएफ अशिक्षित और शिक्षित दोनों तरह के मतदाताओं में सबसे ज्यादा प्रभाव वाला गठबंधन है. सभी तरह के शैक्षिक वर्ग के 46%—48% वोटर्स यूडीएफ को सपोर्ट करते हैं. एलडीएफ को अशिक्षित वर्ग के 40% और आठवीं तक शिक्षित वर्ग के 37% वोटर्स का समर्थन हासिल है. आगे जैसे जैसे शिक्षा का स्तर बढ़ता है, 10वीं, 12वीं, ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन, एलडीएफ का समर्थन क्रमश: 34%, 35%, 33% और 30% है. आंकड़ों के मुताबिक, जैसे-जैसे ज्यादा शैक्षित स्तर की ओर बढ़ते हैं, वैसे-वैसे बीजेपी के समर्थकों की संख्या भी बढ़ती है.
अगर मतदाओं की आयु के आधार पर देखें तो भी कांग्रेस सभी आयु वर्ग के मतदाताओं की पहली पसंद है. पहली बार वोट देने जा रहे (18-25 साल के) मतदाताओं से लेकर 61 साल या उससे ज्यादा की उम्र के वोटर्स की बात करें तो कांग्रेस को सभी वर्ग से औसतन 47% का समर्थन हासिल है. 26-35 साल के मतदाताओं में से 48% की पसंद कांग्रेस है तो इससे ज्यादा की उम्र के मतदाताओं में कांग्रेस का समर्थन घटकर 45% हो जाता है. एलडीएफ को 39%फर्स्ट टाइम वोटर्स का सपोर्ट हासिल है तो इससे ज्यादा उम्र वाले 38% वोटर्स का समर्थन हासिल है. 36-50 आयु वर्ग के मतदाताओं में एलडीएफ का समर्थन घटकर 33% है. बीजेपी को 36-50 और 51-60 से आयुवर्ग के 17% मतदाताओं का समर्थन हासिल है. इंडिया टुडे और एक्सिस माई इंडिया का सर्वे कहता है कि बीजेपी पहली बार वोट देने जा रहे महज 13% वोटर्स की पसंद है.
सर्वे में यह भी गौर किया गया है कि केरल में विभिन्न व्यवसायों से जुड़े लोगों का राजनीतिक रुझान कैसा है. यूडीएफ और एलडीएफ का समर्थन छात्रों के बीच 43% और 42%, किसानों के बीच 41%-40% और बेराजगार मतदाताओं के बीच 46%-44% है. यानी इन वर्गों के बीच दोनों गठबंधनों में कड़ा मुकाबला है. घरेलू महिलाओं, कृषि मजदूरों, रिक्शा चालकों और छोटे दुकानदारों के बीच यूडीएफ, एलडीएफ के मुकाबले 10 फीसदी से ज्यादा लोकप्रिय है. मजदूर, मोची और कुशल पेशेवर लोगों के बीच दोनों गठबंधनों की लोकप्रियता में औसतन 5-7% का अंतर है. बीजेपी को रिक्शा वाले और कुशल पेशेवर मतदाताओं में से20% से कुछ अधिक का समर्थन हासिल है.
सरकारी नौकरी से जुड़े लोगों में राज्य में सत्तारूढ़ एलडीएफ का समर्थन ज्यादा है. 50% सरकारी कर्मचारी एलडीएफ का समर्थन करते हैं, जबकि यूडीएफ को34% और बीजेपी को 13% सरकारी कर्मचारियों का समर्थन हासिल है. हालांकि, वर्किंग क्लास के प्रोफेशनल मतदाताओं में 46% समर्थन के साथ यूडीएफ आगे है, लेकिन इस वर्ग के मतदाताओं में बीजेपी ने जबरदस्त घुसपैठ बनाई है और एलडीएफ का नुकसान किया है. प्राइवेट सेक्टर, अपना व्यवसाय करने वाले और रिटायर्ड लोगों के बीच एलडीएफ के मुकाबले यूडीएफ का समर्थन 10% से भी अधिक है.
हालांकि, केरल जैसे राज्य में शहरी और ग्रामीण क्षेत्र को परिभाषित करना बेहद कठिन है, लेकिन यूडीएफ दोनों ही तरह के इलाकों में आगे है. ग्रामीण इलाकों में यूडीएफ को 48% और एलडीएफ को 35% मतदाताओं का समर्थन हासिल है, तो शहरी इलाकों में यूडीएफ को 46% और एलडीएफ को 35% का समर्थन हासिल है. एनडीए को शहरी क्षेत्र में 18% वोटर्स का समर्थन है जो ग्रामीण क्षेत्र में इसे मिल रहे समर्थन से 3% ज्यादा है.
अगर पुरुष मतदाताओं की बात करें तो यूडीएफ को 48% और एलडीएफ को 33% पुरुष मतदाताओं के वोट मिले हैं. हालांकि, महिला मतदाताओं में एलडीएफ का समर्थन 3% ज्यादा है, लेकिन इस वर्ग में भी 45% वोट शेयर के साथ यूडीएफ बढ़त बनाए हुए है. एनडीए को पुरुष और महिला दोनों वर्ग से 16%मतदाताओं का समर्थन है.