अयोध्या मालिकाना हक मुकदमे में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा कि हिंदुओं की ‘आस्था और मान्यता’ के अनुसार विवादित ढांचे के मध्य गुंबद के नीचे वाला क्षेत्र भगवान राम की जन्मस्थली है और किसी भी तरीके से इसमें कोई बाधा अथवा दखल नहीं दिया जाना चाहिए.
हालांकि, उन्होंने कहा कि आंतरिक प्रांगण के भीतर का हिस्सा हिंदू और मुस्लिमों दोनों का है क्योंकि दोनों समुदाय के लोग सदियों से इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि मालिकाना हक मुकदमे में एक अन्य मुख्य याचिकाकर्ता निर्मोही अखाड़ा बेहतर स्वामित्व वाले किसी अन्य व्यक्ति की अनुपस्थिति में राम चबूतरा, सीता रसोई और बाहरी प्रांगण में भंडार वाले हिस्से के कब्जे का हकदार होगा.
हालांकि, न्यायमूर्ति अग्रवाल ने निर्देश दिया कि बाहरी प्रांगण के भीतर खुले हिस्से को निर्मोही अखाड़ा को रामलला का प्रतिनिधित्व कर रहे पक्ष के साथ साझा करना होगा क्योंकि दोनों स्थलों पर पूजा के लिए हिंदू आम तौर पर साफ-सफाई करते रहे हैं. उन्होंने कहा कि मुस्लिम पक्षों का हिस्सा कुल क्षेत्र के एक बटा तीन हिस्से से कम नहीं होगा और आवश्यकता पड़ने पर उसे बाहरी प्रांगण के कुछ क्षेत्र को दिया जा सकता है.
न्यायाधीश ने कहा कि अयोध्या अधिनियम 1993 के तहत केंद्र द्वारा अधिग्रहीत भूमि को इस तरीके से संबद्ध पक्षों को उपलब्ध कराया जाएगा कि एक-दूसरे के अधिकारों को प्रभावित किए बिना सभी तीनों पक्ष लोगों के आने-जाने के लिए अलग प्रवेश के जरिए क्षेत्र का इस्तेमाल कर सकते हैं. न्यायमूर्ति अग्रवाल ने कहा कि तीन महीने की अवधि तक पक्षों को जब तक अन्य प्रकार से निर्देश नहीं दिया जाता है, तब तक वे विवादित ढांचे के संबंध में आज जैसा है, वैसी यथास्थिति बरकरार रखेंगे.