अयोध्या के रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर रोजाना की सुनवाई खत्म हो चुकी है. सोमवार को मुस्लिम पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट में मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर हलफनामा दायर किया गया. हालांकि, इस दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने मुस्लिम पक्ष से कहा कि ये तो अंग्रेजी अखबार के फ्रंट पेज पर था.
दरअसल, मुस्लिम पक्ष की ओर से जब मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर हलफनामा दायर किया गया तो चीफ जस्टिस ने उनसे पूछा कि ये तो इंग्लिश अखबार के फ्रंट पेज पर था, क्या आपने उन्हें भी एक कॉपी दी है?
इसपर मुस्लिम याचिकाकर्ताओं की ओर से जवाब दिया गया है, उन्होंने सभी याचिकाकर्ताओं को इसकी कॉपी दी है. मुस्लिम पक्षकारों ने कहा कि पहले उन्होंने इसे सीलबंद लिफाफे में दिया था, लेकिन बाद में सभी याचिकाकर्ताओं को इसकी कॉपी दी गई.
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मुस्लिम पक्षकारों के मोल्डिंग ऑफ रिलीफ में क्या?
गौरतलब है कि मुस्लिम पक्ष की ओर से इससे पहले जब मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर नोट दिया गया था, तो कोई सवाल किए थे. इसमें कहा गया था कि कोर्ट का जो भी फैसला होगा, वो देश के भविष्य और आने वाली पीढ़ियों की सोच पर असर डालेगा. फैसला देश की आजादी और गणराज्य के बाद संवैधानिक मूल्यों में यकीन रखने वाले करोड़ों नागरिकों पर भी प्रभाव डालेगा.
मुस्लिम पक्षकारों ने अदालत में दिए गए अपने नोट में उम्मीद जताई है कि मॉल्डिंग ऑफ रिलीफ के जरिए भी कोर्ट इस महान देश के ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत का भी ध्यान रखेगा, ताकि हमारी सदियों पुरानी गौरवशाली साझी विरासत और बहुलतावादी सामंजस्य वादी संस्कृति बनी रहे.
क्या होता है मोल्डिंग ऑफ रिलीफ?
आपको बता दें कि अयोध्या विवाद पूरे अदालती और न्यायिक इतिहास में रेयरेस्ट और रेयर मामलों में से एक है. इसमें विवाद का असली यानी मूल ट्रायल हाई कोर्ट में हुआ था और पहली अपील सुप्रीम कोर्ट सुन रहा है. मोल्डिंग ऑफ रिलीफ का मतलब ये हुआ कि याचिकाकर्ता ने जो मांग कोर्ट से की है अगर वो नहीं मिलती तो विकल्प क्या हो जो उसे दिया जा सके. यानी दूसरे शब्दों में कहें तो सांत्वना पुरस्कार.
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बरसों से चले आ रहे इस केस की 6 अगस्त 2019 से सुप्रीम कोर्ट में रोजाना सुनवाई हुई, इस दौरान अदालत ने हफ्ते में पांच दिन इस मामले को सुना. करीब 40 दिन की लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने अपना फैसला रिजर्व कर लिया है.