इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनउ पीठ ने अयोध्या के विवादित स्थल मामले में दाखिल सुलह के प्रार्थनापत्र पर गत 17 सितम्बर को दिये गये दो न्यायाधीशो के आदेश पर तीसरे न्यायाधीश न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा ने आज सम्मान सहित असहमति जताते हुए कहा कि आदेश से पूर्व उन्हें दोनो न्यायाधीशों ने उनसे सलाह मशविरा नही किया.
न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा ने आज दिये अपने आदेश में कहा है कि कानूनी प्रावधानो के मुताबिक अर्जी दाता पर तीन हजार से ज्यादा हर्जाना नहीं लगाया जा सकता.
उल्लेखनीय है कि गत 17 सितम्बर को न्यायमूर्ति एसयू खान एवं न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने अर्जीकर्ता रमेश चन्द्र त्रिपाठी के प्रार्थनापत्र को निरस्त करते हुए उसपर 50 हजार रूपये का हर्जाना लगाया था.
गत 17 सितम्बर को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवादित स्थल के मालिकाना हक संबंधी याचिकाओं की सुनवाई कर रही पीठ के दो न्यायाधीशों न्यायमूर्ति एसयू खां और न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने रमेश चन्द्र त्रिपाठी की विवाद को सुलह-समझौते से हल करने के लिए दायर अर्जी को ‘‘शरारतपूर्ण कृत्य’’ बताते हुए खारिज कर दिया और अर्जीदाता पर 50 हजार रुपये का हर्जाना लगाया था. न्यायमूर्ति शर्मा ने आज पारित आठ पृष्ठीय आदेश में कहा है कि दीवानी प्रक्रिया संहिता की धारा 35-ए के तहत अदालत तीन हजार रुपये से ज्यादा का जुर्माना नहीं लगा सकती.{mospagebreak}
न्यायमूर्ति ने अपने आदेश में यह भी कहा, ‘‘मुझे यह कहते हुए अफसोस है कि 17 सितम्बर को आदेश पारित करते समय मुझसे सलाह मशविरा नही किया गया, अन्यथा मै माननीय न्यायमूर्तियों को अपना भी मत देता.’ न्यायमूर्ति शर्मा ने अपने आदेश में आगे कहा कि अर्जीकर्ता प्रतिवादी संख्या 17 को 50 हजार रुपये हर्जाना देने की जरुरत नही है और तदनुसार प्रार्थनापत्र को निस्तारित कर दिया.
न्यायमूर्ति ने अपने आदेश मे यह कहा, ‘इस प्रकार के प्रार्थनापत्र को सभी अथवा किसी कोण से देखते हुए सिर्फ यही निर्देश दिये जाने योग्य है कि फैसला सुनाये जाने की तारीख से पहले विवाद को समझौते के जरिये सुलझाने के लिए पक्षकार स्वतंत्र हैं.’ न्यायमूर्ति शर्मा ने यह आदेश आज अर्जीदाता प्रतिवादी रमेश चन्द्र त्रिपाठी के प्रार्थनापत्र पर पारित किया.