अयोध्या विवाद पर आज शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन का मालिकाना हक रामलला को दिया है. जबकि सुन्नी वक्फ बोर्ड को कोर्ट ने मस्जिद के लिए अयोध्या में ही अलग जगह 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया है. इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार को 3 महीने के भीतर ट्रस्ट बनाकर मंदिर निर्माण की रुपरेखा तय करने के लिए भी कहा है. आपको बता दें कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने यह फैसला सर्वसम्मति से सुनाया.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पूरी विवादित जमीन रामलला के नाम कर दी जबकि 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन का बंटवारा कर दिया था. हाई कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच जमीन बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था.
9 नंवबर 2019 को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले में केस के कुछ पक्षकारों का दावा सिरे से खारिज हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा, शिया वक्फ बोर्ड का मालिकाना हक का दावा खारिज कर दिया. निर्मोही अखाड़ा के दावे पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उनकी बात लिमिटेशन के बाहर है. जबकि शिया वक्फ बोर्ड को लेकर कोर्ट ने कहा कि वे अपना दावा साबित नहीं कर पाए. राम जन्मभूमि न्यास को भी सुप्रीम कोर्ट से कुछ हासिल नहीं हुआ. लेकिन फिर भी ये सभी पक्ष इस बात से खुश हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने इस लंबे विवाद का अंत तो किया और एक फैसला सुनाया.
निर्मोही अखाड़ा का दावा
निर्मोही अखाड़ा की तरफ से दावा किया गया था कि विवादित भूमि का आंतरिक और बाहरी अहाता भगवान राम की जन्मभूमि के रूप में मान्य है. हम रामलला के सेवायत हैं. ये हमारे अधिकार में सदियों से रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस दावे को लिमिटेशन के बाहर करार दिया है . हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में सरकार को ट्रस्ट में सदस्यों को चुने जाने का अधिकार दिया है. तीन महीने में ट्रस्ट बनने के बाद विवादित जमीन और अधिग्रहित भूमि के बाकी हिस्से को सौंप दिया जाएगा. इसके बाद ट्रस्ट राम मंदिर निर्माण की रूपरेखा तैयार करेगा. निर्मोही अखाड़ा को ट्रस्ट में जगह मिलेगी. निर्मोही अखाड़ा के वरिष्ठ पंच महंत धर्मदास ने कहा है कि विवादित स्थल पर अखाड़े का दावा खारिज होने का कोई अफसोस नहीं है, क्योंकि वह भी रामलला का ही पक्ष ले रहा था. इसके अलावा निर्मोही अखाड़ा के प्रवक्ता कार्तिक चोपड़ा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हमारी 150 सालों की लड़ाई का संज्ञान लिया.
Kartik Chopra, spokesperson, Nirmohi Akhara: Nirmohi Akhara is grateful that SC has recognised our fight of last 150 years and has given the Nirmohi Akhara adequate representation in the trust to be set up by the Central Government to build & manage the Shri Ram Janmasthan Temple
— ANI (@ANI) November 9, 2019
राम जन्मभूमि न्यास का दावा
1989 के आम चुनाव से पहले विश्व हिंदू परिषद के एक नेता और रिटायर्ड जज देवकी नंदन अग्रवाल ने 1 जुलाई को भगवान राम के मित्र के रूप में पांचवां दावा फैजाबाद की अदालत में दायर किया था. इस दावे में स्वीकार किया गया था कि 23 दिसंबर 1949 को राम चबूतरे की मूर्तियां मस्जिद के अंदर रखी गई थीं. इसके साथ ही यह स्पष्ट दावा किया गया कि जन्म स्थान और भगवान राम दोनों पूज्य हैं और वही इस संपत्ति के मालिक भी हैं. इसी मुकदमे में पहली बार कहा गया था कि राम जन्म भूमि न्यास इस स्थान पर एक विशाल मंदिर बनाना चाहता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस दावे की बातें तो फैसले में मानीं लेकिन विवादित जमीन का मालिकाना हक रामलला को दिया.
शिया वक्फ बोर्ड का दावा
शिया वक्फ बोर्ड की ओर से बोर्ड के चेयरमैन सैय्यद वसीम रिजवी ने कहा था कि साक्ष्यों के आधार पर बाबरी मस्जिद शिया वक्फ के अधीन है. यह बात अलग है कि पिछले 71 वर्ष में शिया वक्फ बोर्ड की तरफ से इस पर दावा नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि वक्फ मस्जिद मीर बाकी (बाबरी मस्जिद) शिया वक्फ के तहत आती है. हालांकि शिया वक्फ बोर्ड विवादित जगह पर मंदिर बनाए जाने की बात खुले तौर करता रहा है. शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बात करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही अच्छा फैसला दिया है. हमारा दावा खारिज हो गया इसका कोई मलाल नहीं है. हम हमेशा मंदिर निर्माण के पक्ष में थे और वही हो रहा है. हमारी तरफ से कोई रिव्यू पिटीशन नहीं दायर की जाएगी.