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अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाए बिना ही रिटायर हो जाएंगे CJI दीपक मिश्रा!

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद आने के बाद तो गहमा गहमी इस कदर बढ़ी थी कि सबको लगा था कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच 2018 की दीवाली से पहले ही फ़ैसला सुना देंगे, लेकिन ताजा हालात इससे उलट हैं.

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चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा (फाइल फोटो)
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा (फाइल फोटो)

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अयोध्या विवाद सुप्रीम कोर्ट में पहुंचने के बाद इस पर गहमागहमी काफी बढ़ गई थी. संभावना जताई गई कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच 2018 की दीवाली से पहले ही इसपर फ़ैसला सुना देगी. क्योंकि तब कोर्ट ने तय किया था कि वो इस पर रोज़ाना सुनवाई कर मामले को जल्दी निपटाएगा.

एक दिन सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपक मिश्रा ने तो यहां तक कह दिया था कि हमारे लिए ये मामला आस्था का नहीं बल्कि एक आम भूमि विवाद है. लिहाज़ा हम इसी नज़रिए से इस मामले की सुनवाई करेंगे.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एसए नज़ीर और जस्टिस अशोक भूषण की इस बेंच ने 11 अगस्त 2017 को शुरू की थी. कोर्ट ने साफ कर दिया था कि वो मुख्य पक्षकारों को सुनेगा. हस्तक्षेप याचिकाएं दाखिल करने वालों की दलीलें वो नहीं सुनेगा.

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देश को फिर उम्मीदें जगी कि लगता है कोर्ट जल्दी फैसला देने के मूड में है. हालांकि, पहली सुनवाई के दिन ही मुस्लिम पक्षकारों की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा भी था कि 2019 के चुनाव तक इस मामले की सुनवाई टाल दी जाए.

इन्हीं पक्षकारों की ओर से पेश राजीव धवन ने भी कहा था कि इस मुकदमे में 10 हज़ार से ज़्यादा पेज के दस्तावेज हैं. मीलॉर्ड आप कितनी भी कोशिश कर लें इस मामले का फैसला आपके कार्यकाल में नहीं आ सकता. इन्हीं बातों में दस्तावेजों के अनुवाद का सवाल उठा और सुनवाई 5 दिसम्बर 2017 के लिए टल गई.

5 दिसम्बर को अचानक जस्टिस अशोक भूषण ने राजीव धवन से पूछ लिया कि पिछली सुनवाई में आपने इस्माइल फारूकी वाले मामले में बेंच के 1994 में  फैसले की बात उठाई थी. जिसमें ये कहा गया था कि मस्जिद में नमाज अदा करना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है. हम इसपर पहले सुनवाई कर जानना चाहते हैं कि क्या इसपर फिर से विचार की ज़रूरत है? अगर है तो इसे बड़ी बेंच को भेजा जाए या यही बेंच सुने, पहले इसे ही तय कर लिया जाए.

तभी समझ आने लगा था कि अब इस मामले का लटकना तय है. वरना लोगों ने अयोध्या विवाद का फैसला आने के दिन गिनने शुरू कर दिए थे.

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अति उत्साहित डॉ. सुब्रमण्यन स्वामी ने तो यहां तक हिसाब लगा लिया था कि अगले साल 2018 की दीवाली अयोध्या के राममंदिर में ही मनाएंगे. उनका अनुमान था कि रोज़ाना सुनवाई और गर्मी छुट्टियों में सुनवाई कर बेंच अगस्त तक फैसला सुना देगी और दीवाली तक प्रिफेब्रिकेटेड तकनीक से मन्दिर बन ही जाएगा, लेकिन हर सुनवाई में मामला टलता ही गया.

अब तक तो इस बाबत ही सुनवाई पूरी नहीं हो सकी है कि ये मामला संविधान पीठ के पास भेजा जाए या नहीं. अब दर्जन भर मामलों के फैसले और महीने भर से भी कम समय रह गया है. ऐसे में अब प्रबल संभावना है कि इस मामले का फ़ैसला अगले ही चीफ जस्टिस करेंगे.

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