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राम मंदिर केस में नया मोड़, सुप्रीम कोर्ट ने फिर दिया बातचीत से समाधान का सुझाव

कोर्ट के सुझाव पर मुस्लिम पक्षकारों ने कहा कि वे इस भूमि विवाद का हल खोजने के लिए वे सुझाव से सहमत हैं. वहीं राम लला विराजमान सहित कुछ हिन्दू पक्षकारों ने इस पर आपत्ति करते हुए कहा कि मध्यस्थता की प्रक्रिया पहले भी कई बार असफल हो चुकी है.

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अयोध्या विवाद पर मंगलवार को SC में हुई सुनवाई
अयोध्या विवाद पर मंगलवार को SC में हुई सुनवाई

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अयोध्या विवाद में एक बार फिर नया मोड़ आ गया है. मंगलवार को इस मसले पर हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित पक्षों को सालों पुराने इस विवाद का आपसी सहमति वाला समाधान तलाशने का सुझाव दिया. कोर्ट ने कहा कि यह रिश्तों को सुधारने में मददगार हो सकता है.

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान सुझाव दिया कि अगर इस विवाद का आपसी सहमति के आधार पर समधान खोजने की एक फीसदी भी संभावना हो तो संबंधित पक्षकारों को मध्यस्थता का रास्ता अपनाना चाहिए. संविधान पीठ ने कहा कि इस मामले को कोर्ट द्वारा नियुक्त मध्यस्थता को सौंपने या नहीं सौंपने के बारे में 5 मार्च को आदेश दिया जाएगा.

दरअसल, यह सुझाव पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति एस ए बोबडे ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई के दौरान दिया. न्यायमूर्ति बोबडे ने यह सुझाव उस वक्त दिया जब हिन्दू और मुस्लिम पक्षकार यूपी सरकार द्वारा अनुवाद कराने के बाद शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री में दाखिल दस्तावेजों की सत्यता को लेकर उलझ रहे थे.

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इस दौरान पीठ ने कहा, 'हम इस बारे में (मध्यस्थता) गंभीरता से सोच रहे हैं. आप सभी (पक्षकार) ने यह शब्द प्रयोग किया है कि यह मामला आपसी विरोध का नहीं है. हम मध्यस्थता के लिए एक अवसर देना चाहते हैं, चाहें इसकी एक प्रतिशत ही संभावना हो.'

पीठ ने क्या कहा

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं. पीठ ने कहा, 'हम आपकी (दोनों पक्षों) की राय जानना चाहते हैं. हम नहीं चाहते कि सारी प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए कोई तीसरा पक्ष इस बारे में टिप्पणी करे.'

बातचीत पर सहमत नहीं हिन्दू पक्षकार

इस मामले में सुनवाई के दौरान जहां कुछ मुस्लिम पक्षकारों ने कहा कि वे इस भूमि विवाद का हल खोजने के लिए कोर्ट द्वारा मध्यस्थता की नियुक्ति के सुझाव से सहमत हैं. वहीं राम लला विराजमान सहित कुछ हिन्दू पक्षकारों ने इस पर आपत्ति करते हुए कहा कि मध्यस्थता की प्रक्रिया पहले भी कई बार असफल हो चुकी है.

कोर्ट ने कहा- हम रिश्ते सुधारने पर कर रहे विचार

पीठ ने पक्षकारों से पूछा, 'क्या आप गंभीरता से यह समझते हैं कि इतने सालों से चल रहा यह पूरा विवाद संपत्ति के लिए है? हम सिर्फ संपत्ति के अधिकारों के बारे में निर्णय कर सकते हैं परंतु हम रिश्तों को सुधारने की संभावना पर विचार कर रहे हैं.'

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पीठ ने मुख्य मामले को 8 सप्ताह बाद सुनवाई के लिये सूचीबद्ध करते हुए रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि सभी पक्षकारों को छह सप्ताह के भीतर सारे दस्तावेजों की कॉपी उपलब्ध कराएं. कोर्ट ने यह भी कहा कि वह इस वक्त का इस्तेमाल मध्यस्थता की संभावना तलाशने के लिए करना चाहता है.

सुनवाई के दौरान मूल वादी एम सिद्दीक के कानूनी उत्तराधिकारियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि वह मध्यस्थता के इस 'बेहद महत्वपूर्ण सुझाव' के लिए राजी है परंतु न्यायालय को मध्यस्थता के लिये समय सीमा निर्धारित करनी चाहिए क्योंकि यह 'पेचीदा मुद्दा' है. पीठ ने कहा, 'हमें भी मध्यस्थता से बातचीत के बाद ही समय सीमा निर्धारित करनी होगी.'

राम लला के वकील ने क्या कहा

राम लला विराजमान की ओर से वरिष्ठ वकील सी एस वैद्यनाथन ने कहा कि वह किसी भी तरह की मध्यस्थता के खिलाफ हैं. उन्होंने कहा, 'हम मध्यस्थता का दूसरा दौर नहीं चाहते.' उन्होंने कहा, 'पहले मध्यस्थता के दौरान यह स्वीकार किया गया था कि राम लला का जन्म अयोध्या में हुआ था लेकिन इस (विवादित) स्थान पर नहीं. मध्यस्थता के प्रयास एक बार नहीं बल्कि कई बार किए गए हैं.'

एक अन्य पक्षकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने कहा कि मध्यसथता के पहले दौर में बात नहीं बनी थी और 'सभी चाहते थे कि इस मामले का फैसला सुप्रीम कोर्ट ही करे. उन्होंन स्पष्ट कहा कि मध्यस्थता संभव नहीं है, लिहाजा कोर्ट को ही इस मामले का निर्णय करना चाहिए.

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करीब 40 हजार पेज

कोर्ट ने इस दौरान कहा कि इस रिकार्ड में 38,147 पेज हैं जिसमें 12,814 पेज हिन्दी में, 18,607 पेज अंग्रेजी में, 501 पेज उर्दू में, 97 पेज गुरूमुखी में, 21 पेज संस्कृत में, 86 पेज दूसरी भाषा की लिपियों में हैं. इसके 14 पन्नों में तस्वीरें हैं और 1,729 पन्नों में एक से अधिक भाषा की लिपि में हैं.

पक्षकारों के साथ साझा की गई रिपोर्ट के अनुसार 11,479 पन्नों का अनुवाद करने की जरूरत है और अगर सुप्रीम कोर्ट के सभी आठ अनुवादकों को यह काम करने के लिए कहा जाए तो भी यह मामला पूरी तरह सुनवाई के लिए तैयार होने में करीब 120 दिन लग जाएंगे. पीठ ने कहा कि वह यह नहीं चाहती कि सुनवाई शुरू होने के बाद इन दस्तावेजों की सत्यता पर कोई पक्ष आपत्ति करे.

बता दें कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कुल 14 अपील दायर की गई हैं. हाई कोर्ट ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन हिस्सों में सुन्नी वक्फ बोर्ड, राम लला और निर्मोही अखाड़े के बीच बांटने का आदेश दिया था.

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