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निर्वाणी अखाड़ा ने दाखिल की मोल्डिंग ऑफ रिलीफ, मांगा पूजा का अधिकार

निर्वाणी अखाड़ा ने एफिडेविट दाखिल कर मंदिर में पूजा पर अपना दावा किया. निर्मोही और निर्वाणी अखाड़ा, दोनों ही रामलला के जन्म स्थल पर पूजा और प्रबंधन का अधिकार मांग रहे हैं.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

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  • वकील ने कोर्ट को बताया मिसअंडरस्टैंडिंग से हुई देरी
  • महंत अभिराम दास के पुजारी रहने की दी दलील

अयोध्या के राम मंदिर विवाद पर सुनवाई पूरी हो चुकी है. सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से मोल्डिंग ऑफ रिलीफ दाखिल करने को कहा था. कोर्ट ने मंगलवार को निर्वाणी अखाड़ा को भी इस मामले में मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर एफिडेविट दाखिल करने की अनुमति दे दी.

निर्वाणी अखाड़ा ने एफिडेविट दाखिल कर मंदिर में पूजा पर अपना दावा किया. निर्मोही और निर्वाणी अखाड़ा, दोनों ही रामलला के जन्म स्थल पर पूजा और प्रबंधन का अधिकार मांग रहे हैं. निर्वाणी अखाड़ा की ओर से कहा गया है कि सन 1940 में निर्वाणी अखाड़ा के महंत अभिराम दास पुजारी थे. उन्हें विवादित स्थल के केंद्रीय गुंबद के नीचे मूर्तियां रखने के लिए दर्ज प्राथमिकी में भी आरोपी बनाया गया था.

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मुस्लिम और हिंदू दोनों ही पक्षों ने जमीन पर मालिकाना हक का दावा किया था. निर्वाणी अखाड़ा की ओर से पुजारी के लिए किए गए दावे में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है. निर्वाणी अखाड़ा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने मंगलवार की सुबह मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और पीठ के अन्य न्यायाधीश के समक्ष इस मुद्दे को रखा और यह बताया कि मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर एफिडेविट दाखिल करने की आखिरी तारीख को लेकर मिसअंडरस्टैंडिंग के कारण एफिडेविट जल्द फाइल नहीं की जा सकी. इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने अखाड़ा को एफिडेविट फाइल करने की अनुमति दे दी.

निर्मोही अखाड़ा ने 1959 में मांगा था पूजा का अधिकार

निर्मोही अखाड़ा ने 1959 में मुकदमा दायर कर रामलला के जन्म स्थान पर पूजा का अधिकार अधिकार मांगा था. उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और रामलला विराजमान की ओर से दायर दो अलग-अलग मुकदमों में निर्वाणी अखाड़ा को प्रतिवादी बनाया गया था.

मुस्लिम पक्षों ने कहा- पीढ़ियों को प्रभावित करेगा फैसला

हाल ही में सुन्नी वक्फ बोर्ड समेत मुस्लिम पक्षों ने मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर लिखे अपने नोट में कहा है कि अयोध्या भूमि विवाद केस का फैसला भविष्य की पीढ़ियों को प्रभावित करेगा. इस अदालत के निर्णय का देश के लाखों लोग जो संवैधानिक मूल्यों में विश्वास करते हैं, के दिमाग पर असर पड़ सकता है.

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40 दिन चली सुनवाई के बाद अब फैसले का इंतजार

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की प्रतिदिन सुनवाई हुई. 40 दिन की सुनवाई में दोनों ही पक्षों की ओर से उनके अधिवक्ताओं ने अपने-अपने दावे के समर्थन में दलीलें पेश कीं. अब दोनों ही पक्षों के साथ ही पूरे देश की नजरें आस्था से जुड़े इस मामले को लेकर आने वाले फैसले पर टिकी हैं.

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