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मस्जिद में नमाज पर बड़ी सुनवाई, जानें मुस्लिम पक्षकारों का तर्क

मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं फिर इस पर सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा. फैसले से पहले जानें कि मुस्लिम पक्ष को किन बातों पर आपत्ति है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

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अयोध्या में रामजन्मभूमि-मस्जिद मामले से ही जुड़े एक मसले पर सुप्रीम कोर्ट अब से कुछ देर में अपना फैसला सुनाएगा. सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को यह बताएगा कि क्या मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम धर्म का अभिन्न हिस्सा है या नहीं. फैसला आने से पहले कई तरह की प्रतिक्रियाएं आने लगी हैं.

इस मामले पर AIMPLB के सेकेट्ररी मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग है, लेकिन हम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे.

अयोध्या मामले के एक मूल वादी एम सिद्दीक ने इस्माइल फारूकी के मामले में 1994 के फैसले में इन खास निष्कर्षों पर ऐतराज जताया था जिसके तहत कहा गया था कि मस्जिद इस्लाम के अनुयायियों द्वारा अदा की जाने वाली नमाज का अभिन्न हिस्सा नहीं है. बता दें कि सिद्दीक की मृत्यु हो चुकी है और उनका प्रतिनिधित्व उनके कानूनी वारिस कर रहे हैं.

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मुस्लिम समूहों ने प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष यह दलील दी है कि इस फैसले में उच्चतम न्यायालय के अवलोकन पर पांच सदस्यीय पीठ द्वारा पुनर्विचार करने की जरूरत है क्योंकि इसका बाबरी मस्जिद-राम मंदिर भूमि विवाद मामले पर असर पड़ेगा.

वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने सिद्दीक के कानूनी प्रतिनिधि की ओर से पेश होते हुए कहा था कि मस्जिदें इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है, यह टिप्पणी उच्चतम न्यायालय ने बगैर किसी पड़ताल के या धार्मिक पुस्तकों पर विचार किए बगैर की.

उत्तर प्रदेश सरकार ने शीर्ष न्यायालय से कहा था कि कुछ मुस्लिम समूह ‘इस्लाम का अभिन्न हिस्सा मस्जिद के नहीं होने’ संबंधी 1994 की टिप्पणी पर पुनर्विचार करने की मांग कर लंबे समय से लंबित अयोध्या मंदिर-मस्जिद भूमि विवाद मामले में विलंब करने की कोशिश कर रहे हैं.

'इस्लाम का अंग है मस्जिद'

वहीं दूसरी तरफ बाबरी मस्जिद केस में मुद्दई इकबाल अंसारी का कहना है कि 27 तारीख को कोर्ट जो भी फैसला करे हमें मंजूर है. लेकिन मस्जिद में मूर्ति रखी गई, मस्जिद तोड़ी गई, फैसला कोर्ट को सबूतों के बुनियाद पर करना है.

उन्होंने कहा कि मस्जिद इस्लाम का एक अंग है. मस्जिद तोड़ दी गई, तब भी नमाज जमीन पर बैठकर की जाएगी. वह जगह मस्जिद कहलाएगी. मस्जिद की जमीन ना किसी को दी जा सकती है और ना बेची जा सकती है. वह हमेशा मस्जिद ही कही जाएगी. हम कोर्ट पर विश्वास करते हैं. कानून पर विश्वास करते हैं. कोर्ट फैसला करे. इधर करे या उधर करे, क्योंकि इसके पहले इस पर इतनी राजनीति की जा चुकी है.

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