इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अयोध्या में रामजन्म भूमि बाबरी मस्जिद के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर सुनाये अपने फैसले में उसे भगवान राम का जन्म स्थान माना.
न्यायमूर्ति डी वी शर्मा, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और एसयू खान ने गुरुवार को सुनाये अपने फैसले में एक मत से यह माना है कि अयोध्या का विवादित स्थल ही भगवान राम का जन्म स्थान है. बहरहाल, न्यायमूर्ति खान ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि विवादित स्थल पर दोनों समुदाय का अधिकार है और यह भी कि वहां मस्जिद निर्माण के लिए किसी मंदिर को नहीं तोड़ा गया था.
न्यायमूर्तियों ने बहुमत से यह फैसला दिया कि विवादित ढांचे को मस्जिद नही माना जा सकता क्योंकि बाबर ने इसका निर्माण इस्लामी शरीयत के सिद्धांतो के अनुसार नही करवाया था. न्यायमूर्ति खान ने इस मुददे पर दोनो साथी न्यायमूर्तियों की राय से सहमति नहीं जतायी और कहा कि विवादित ढांचा मस्जिद ही था इसे बाबर ने बनवाया था या जिसे बाबर के आदेश से बनवाया गया था.
न्यायमूर्ति खान ने कहा कि तीनों पक्षों को एक तिहाई भाग देने की घोषणा की गई है, ‘हालांकि बंटवारा करते समय अगर किसी पक्ष के हिस्से में मामूली समायोजन किया जाता है तो इससे जिस पक्ष का नुकसान होगा उसकी भरपाई केन्द्र सरकार द्वारा अधिगृहीत भूमि के कुछ भाग से की जाएगी. {mospagebreak}
न्यायमूर्ति खान ने कहा, ‘तीनों पक्षों मुस्लिम, हिंदू और निर्मोही अखाड़ा को संयुक्त रूप से उस विवादित क्षेत्र की संपत्ति (परिसर का स्वामी घोषित किया जाता है, जैसा मुकदमा संख्या एक में अदालत द्वारा निर्धारित आयुक्त) अधिवक्ता श्री शिव शंकर लाल द्वारा तैयार नक्शा योजना एक में ए बी सी डी ई और एफ पत्रों में उल्लेख किया गया है. तीनों पक्ष एक तिहाई हिस्से का इस्तेमाल और पूजा अर्चना के लिए उसका प्रबंधन करेंगे. इस आश्य के प्रारंभिक आदेश को मंजूरी दी गई.
हालांकि न्यायाधीश ने माना कि मध्य गुंबद के नीचे का भाग, जहां वर्तमान में अस्थायी मंदिर में मूर्ति रखी गई है उसे अंतिम आदेश में हिंदुओं को दिया जाएगा. न्यायमूर्ति खान ने अपने फैसले के दौरान व्यवस्था दी कि विवादित ढांचे को बाबर के आदेश से अथवा उनके द्वारा मस्जिद के तौर पर तामीर किया गया, लेकिन प्रत्यक्ष साक्ष्य से यह सिद्ध नहीं हो पाया कि निर्मित भाग सहित विवादित परिसर बाबर का था अथवा उसका था, जिसने इसे बनाया.
उन्होंने यह भी कहा कि मस्जिद बनाने के लिए कोई मंदिर नहीं गिराया गया, बल्कि उसका निर्माण मंदिर के खंडहरों पर किया गया, जो बहुत समय से वहां मौजूद थे. न्यायमूर्ति अग्रवाल ने अपने आदेश में कहा, ‘यह घोषित किया जाता है कि तीन गुंबदों वाले ढांचे के बीच वाले गुंबद का हिस्सा, जो भगवान राम के जन्मस्थान के रूप में विवादित है और हिंदुओं की आस्था और विश्वास के अनुसार भगवान राम का जन्मस्थान है, वह याची (भगवान राम की तरफ का पक्ष) का है और प्रतिवादियों द्वारा किसी भी तरीके से उसमें बाधा अथवा दखल नहीं दिया जाए.’ {mospagebreak}
‘हालांकि यह स्पष्ट किया जाता है कि इस आदेश के द्वारा याची (भगवान राम की तरफ का पक्ष) के हिस्से में तीन गुंबद वाले ढांचे के बीच वाले गुंबद के भाग को भी जोड़ा जाए.’ न्यायमूर्ति अग्रवाल ने कहा कि बाहरी प्रांगण में स्थित राम चबूतरा, सीता रसोई और भंडार के ढांचों को निर्मोही अखाड़े के हिस्से में जोड़ा जाए और किसी व्यक्ति के इससे बेहतर मालिकाना हक की स्थिति में न होने पर उसे इसका कब्जा सौंप दिया जाए.
न्यायमूर्ति अग्रवाल ने कहा कि बाहरी प्रांगण के खुले भाग को निर्मोही अखाड़ा और भगवान राम की तरफ वाले पक्ष में बांट दिया जाए क्योंकि आम तौर पर इसका इस्तेमाल दोनो स्थानों पर हिंदुओं द्वारा पूजा अर्चना के लिए किया जाता है. ‘हालांकि यह स्पष्ट किया जाता है कि मुस्लिम पक्ष का हिस्सा परिसरों के कुल भाग के एक तिहाई से कम नहीं होगा और अगर जरूरी हो तो उसे बाहरी प्रांगण का कुछ भाग भी दिया जा सकता है.’
न्यायाधीश ने कहा, ‘यह भी स्पष्ट किया जाता है कि तीनों पक्षों के हिस्सों का निर्धारण करते समय अगर विभिन्न पक्षों के हिस्से में कुछ मामूली समायोजन किए जाते हैं तो इससे प्रभावित होने वाले पक्ष को भारत सरकार के अधिग्रहण वाले भूभाग से जमीन देकर उसकी भरपाई की जाए.’ इन मामलों पर अपने निष्कर्ष में न्यायमूर्ति अग्रवाल ने कहा कि मुस्लिम पक्ष यह साबित करने में असफल रहे कि विवादित संपति का निर्माण 1528 में बाबर ने करवाया था. {mospagebreak}
न्यायमूर्ति शर्मा ने एक पृथक फैसला लिखते हुए व्यवस्था दी कि विवादित स्थल भगवान राम का जन्म स्थान है. ‘यह एक दैव्य व्यक्ति का जन्म स्थान है और पूजनीय है. उन्हें दिव्य आत्मा मानकर उनकी पूजा की जाती है.’ न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा, ‘दिव्य शक्ति हर किसी के लिए किसी भी आकार अथवा स्वरूप में कहीं भी हर समय उसकी अपनी आस्थाओं के साथ मौजूद हो सकती है और यह निराकार भी हो सकती है.’
विवादित ढांचे पर न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा, ‘इसका निर्माण बाबर ने करवाया था, किस वर्ष में, यह निश्चित नहीं है, लेकिन यह इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ था इसलिए इसे मस्जिद नहीं कहा जा सकता.’ अन्य दो न्यायाधीशों से अलग राय रखते हुए उन्होंने यह व्यवस्था भी दी कि विवादित ढांचे का निर्माण पुराने ढांचे को गिराने के बाद उसी स्थान पर किया गया था.
उनके अनुसार, ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने साबित किया है कि वह ढांचा विशाल हिंदू धार्मिक इमारत थी.’ उन्होंने कहा कि विवादित ढांचे के मध्य वाले गुंबद में 22 और 23 दिसंबर 1949 की दरम्यानी रात को मूर्तियां रखी गई थीं. भीतरी और बाहरी प्रांगण वाले विवादित स्थल की स्थिति के बारे में न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा, ‘यह सिद्ध हुआ है कि मुकदमे वाली संपत्ति राम चंद्र जी की जन्मभूमि है और ‘चरण’, ‘सीता रसोई’, अन्य मूर्तियां और विवादित संपत्ति पर मौजूद अन्य पूजनीय वस्तुओं की पूजा का अधिकार आम तौर पर हिंदुओं को है. उन्होंने कहा, ‘यह भी स्थापित तथ्य है कि हिंदू विवादित स्थान को जन्मस्थान मानकर उसकी पूजा करते हैं और यह उनके लिए पवित्र तीर्थस्थल है.’
न्यायाधीश ने कहा कि विवादित ढांचे के निर्माण के बाद, ‘यह साबित हुआ कि विवादित ढांचे के भीतर मूर्तियों को 22-23.12.1949 को स्थापित किया गया था. यह भी स्थापित तथ्य है कि बाहरी प्रांगण विशुद्ध रूप से हिंदुओं के स्वामित्व में था और वही इसमें पूजा करते थे और भीतरी प्रांगण (विवादित ढांचे में) में भी वह पूजा करते रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘यह भी स्थापित हो चुका है कि विवादित ढांचे को मस्जिद नहीं माना जा सकता क्योंकि उसका निर्माण इस्लाम के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं किया गया.’