ऐसा लगता है कि अयोध्या मामले का फैसला आस्था और विश्वास को ध्यान में रखकर किया गया है. लोगों की आस्था के आधार पर अदालत ने विवादित स्थल को भगवान राम की जन्मभूमि घोषित किया है.
इस फैसले से एक जो सबसे अच्छी बात हुई वो यह है कि ऐसे सभी तत्वों को जो समय समय पर इस मुद्दे को लेकर सांप्रदायिक उन्माद भड़काते रहे हैं उन्हें इस फैसले से कोई मौका नहीं मिलेगा. साथ ही इस फैसले के बाद इस मुद्दे का कोई राजनीतिक फायदा भी नहीं उठा सकेगा. इसलिए विश्व हिंदू परिषद ने पहले ही यह कहा है कि जो दो अन्य विवादित स्थल (काशी और मथुरा) हैं उनका भी स्वामित्व उन्हें सौंप दिया जाए.
कांग्रेस पहले बहुत ही आशंकित थी कि आखिर इस मामले में क्या फैसला आएगा लेकिन अब जब फैसला आ गया है तो निश्चित रूप से कांग्रेस बहुत खुश होगी क्योंकि अब बीजेपी भविष्य में होने वाले चुनावों में राम मंदिर के मुद्दे को भुना नहीं पाएगी. इस फैसला का तात्कालिक असर आगामी बिहार विधानसभा चुनावों के प्रचार में दिखाई देगा.
हालांकि ज्यादातर दंगे पूर्वनियोजित होते हैं लेकिन फिलहाल कोई यह नहीं कह सकता कि गैरजिम्मेदार तत्व किसी तरह की गड़बड़ करने की कोशिश नहीं करेंगे क्योंकि ऐसा कुछ समय के बाद ही देखने में आता है. इसलिए यह देखने की जरूरत है कि राज्य सरकार स्थिति को कैसे संभालती है. अभी एक बात तो स्पष्ट है सुन्नी वक्फ बोर्ड फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट मे अपील करने जा रहा है. {mospagebreak}
इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन जजों की पीठ में बहुमत की राय यही थी कि 2.77 एकड़ के विवादित स्थल पर जहां 1992 में ढहाए जाने से पहले बाबरी मस्जिद स्थिति थी, पर हिन्दू और मुसलमानों दोनों का ही अधिकार है. चूंकि मामले के तीनों ही पक्ष विवादित जमीन पर अपना कब्जा मांग रहे थे इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि वो सुप्रीम कोर्ट में अपील करें. लेकिन यह तय है कि मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट में जरूर अपील करेंगे क्योंकि कोर्ट ने फैसला सुनाने के लिए हिन्दुओं की आस्था और धार्मिक विश्वास को आधार बनाया है, और मस्जिद के बीच वाले गुंबद के नीचे के स्थान पर हिन्दुओं को स्वामित्व दिया है. कोर्ट ने उस स्थान को रामलला का जन्मस्थान माना है.
जजों ने माना कि विवादित स्थल पर किसी भी पक्ष का स्पष्ट अधिकार साबित नहीं होता है. जजों ने निर्णय दिया कि विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटा जाए जिसमें से एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए. बाकी के दो हिस्सों में से एक-एक श्री रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़े को दिया जाए. केवल न्यायाधीश धर्मवीर शर्मा चाहते थे कि पूरा विवादित स्थल हिंदुओं को सौंप दिया जाए.
गौरतलब है कि न्यायाधीश शर्मा 1 अक्टूबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं. बाकी के दो जजों जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस एस यू खान ने जमीन को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला किया. बहरहाल, अभी जहां रामलला विराजमान है वो जगह श्री रामलला विराजमान को दी गई है जबकि राम चबूतरा और सीता की रसोई पर निर्मोही अखाड़े को स्वामित्व दिया गया है.