अयोध्या के राममंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद ने भारतीय राजनीति की दशा और दिशा को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया है. राममंदिर आंदोलन से बीजेपी को संजीवनी मिली. इसी का नतीजा है कि बीजेपी आज केंद्र की सत्ता से लेकर 19 राज्यों की सत्ता पर काबिज होकर दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है.
ऐसे में अब जब अयोध्या विवाद मामले का फैसला सुप्रीम कोर्ट से आ रहा है तो नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं. इस नाते सवाल उठता है कि जिस साल बाबरी विध्वंस हुआ था तो उस 1992 में नरेंद्र मोदी के बारे में मीडिया में क्या लिखा जा रहा था.
इंडिया टुडे के मार्च 1992 में अंक में उदय माहूरकर ने अपनी एक स्टोरी में नरेंद्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी के नए सितारे का उदय बताया था. उन्होंने लिखा था कि भाजपा अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा के संयोजक 38 वर्षीय नरेंद्र मोदी पार्टी में महत्वपूर्ण व्यक्ति बनते जा रहे हैं. और इसकी वजह भी है. जहां एक तरफ यात्रा का विश्लेषण चल रहा है वहीं, दूसरी तरफ भाजपा में चर्चा गरम है कि यात्रा को जारी रखने के लिए लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी सरीखे दिग्गज को राजी करने में भी मोदी सफल रहे.
यही नहीं अब नरेंद्र मोदी से बीजेपी के वरिष्ठ नेतागण सलाह-मशविरा भी करते रहते हैं. वजह साफ है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हलके के जरिए भाजपा में शामिल होने के बाद छह साल की कम अवधि में ही वे न सिर्फ गुजरात पार्टी ईकाई के महासचिव बन गए बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के महत्वपूर्ण नेता भी बन गए.
उस समय नरेंद्र मोदी बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति और सर्वशक्तिमान छह सदस्यीय राष्ट्रीय चुनाव समिति के भी सदस्य थे. इस समिति में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और अटल बिहारी वाजपेयी सरीखे वरिष्ठ नेता शामिल थे.
माहूरकर आगे लिखते हैं कि नरेंद्र मोदी आकर्षक हिंदी नारे बनाने की अपनी प्रतिभा से पार्टी छवि निर्माता के रूप में उभरे हैं. यहां तक की राजनीति के सबसे धूर्त खिलाड़ी चिमनभाई पटेल भी उनकी कुशाग्रता का सम्मान करते हैं. दोनों जब भी आमने-सामने होते हैं तो चिमनभाई उन्हें खुश रखने की कोशिश करते हैं. और वे उन भाजपा नेताओं की राह में रोड़ा बन सकते हैं जो नरम रवैया अपनाने की कोशिश में हैं.