राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर शनिवार को सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आ चुका है. अयोध्या में यह विवाद सदियों से चला आ रहा था. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन रामलला विराजमान को सौंप दी है. जबकि मुस्लिम पक्षकार सुन्नी वफ्फ बोर्ड को कोर्ट ने अयोध्या में ही अलग जगह 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में किया स्पेशल वर्शिप प्रोविज़न एक्ट का जिक्र
इस फैसले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट की इस बेंच ने देश के तमाम विवादित धर्मस्थलों पर भी अपना रुख स्पष्ट कर दिया है. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने 1,045 पेज के फैसले में 11 जुलाई, 1991 को लागू हुए प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991 का जिक्र भी किया है. यानी शीर्ष अदालत ने इस बात का स्पष्ट संदेश दे दिया है कि काशी और मथुरा में जो मौजूदा स्थिति है वही बनी रहेगी उसमें किसी भी तरह के बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यह कानून संविधान के मूल्यों को मजबूत करता है
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस.ए. बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की पीठ ने अपने फैसले में देश के सेक्युलर चरित्र की बात की थी. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 1991 का यह कानून देश में संविधान के मूल्यों को मजबूत करता है. इसके अलावा पीठ ने देश की आजादी के दौरान मौजूद धार्मिक स्थलों के जस के तस संरक्षण पर भी जोर दिया था. बेंच ने कहा, "देश ने इस एक्ट को लागू करके संवैधानिक प्रतिबद्धता को मजबूत करने और सभी धर्मों को समान मानने और सेक्युलरिज्म को बनाए रखने की पहल की है."
क्यों बना था यह एक्ट
साल 1991 में केंद्र में नरसिम्हा राव की सरकार थी. राव सरकार को शायद एक साल पहले ही अयोध्या में बाबरी विध्वंस जैसा कुछ होने की आशंका हो गई थी. जाहिर है उस वक्त विवाद सिर्फ अयोध्या को लेकर ही नहीं था, काशी और मथुरा जैसे कई धार्मिक स्थल भी थे जिनकी स्थिति काफी हद तक अयोध्या जैसी थी. किसी धार्मिक स्थल पर बाबरी विध्वंस जैसा कुछ न हो इसके लिए उस वक्त (1991 में) एक कानून पास हुआ. उसी कानून का नाम था प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991.
क्या कहता है यह एक्ट
प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991 में कही गई बात का सार केवल एक लाइन का है, लेकिन इस एक लाइन ने ढेरों विवादों को एक साथ समाप्त कर दिया. इस एक्ट में इस बात का स्पष्ट उल्लेख था कि 15 अगस्त, 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस संप्रदाय का था वो आज, और भविष्य में, भी उसी का रहेगा.
अयोध्या विवाद को रखा गया था बाहर
यहां आपको यह भी बता दें कि भले ही यह एक्ट अयोध्या विवाद की वजह से लाया गया था लेकिन इस एक्ट से राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को बाहर रखा गया था क्योंकि तब तक यह विवाद देश की राजनीति से निकलकर जनमानस तक पहुंच गया था.
एक मुस्लिम संगठन कर चुका है इस एक्ट का विरोध
कुछ महीनों पहले 2018 में इस एक्ट का विरोध एक मुस्लिम संगठन कर चुका है. उस संगठन का मानना था कि इसकी वजह से चाहकर भी हम वो स्थल हिंदुओं को नहीं दे पाएंगे जो हम देना चाहते हैं. बता दें कि शिया सेंट्रल बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने कहा था कि 'स्पेशल वर्शिप प्रोविज़न एक्ट' के तहत, चूंकि विवादित मस्जिदें सुरक्षित की जा चुकी हैं और चूंकि उन्हें हिंदुओं को सौंपने में मुश्किल होगी, इसलिए इसे खत्म कर दिया जाए.
इसके साथ ही वसीम रिजवी ने यह भी मांग की थी कि एक स्पेशल कमेटी बनाकर अदालत की निगरानी में विवादित मस्जिदों के बारे में ठीक-ठीक जानकारी इकट्ठा की जाए और अगर यह सिद्ध हो जाए कि वे हिंदुओं के धर्म स्थलों को तोड़कर बनाए गए हैं तो उन्हें हिंदुओं को वापस किया जाए.