भारत के प्रधान न्यायाधीश ने सुझाव दिया है कि सरकार को उन वेबसाइट पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए, जो सिर्फ अश्लील सामग्री और घृणा फैलाने वाले भाषण दिखाती हैं.
उन्होंने राजधानी में कहा, ‘‘स्थानीय न्याय क्षेत्र के लिए इंटरनेट पर सूचनाओं के प्रवाह के तंत्र को लेकर समस्या है. अंतिम उपयोगकर्ता छद्म सर्वरों का इस्तेमाल कर जाली पहचान के जरिये जांच एजेंसियों को गुमराह कर सकते हैं. सरकार उन वेबसाइटों पर प्रतिबंध लगा सकती है, जो सिर्फ अश्लीलता और घृणा फैलाने वाले भाषणों का प्रचार करती हो.’’
बालकृष्णन ने कहा, ‘‘बहरहाल, वेबसाइटों की सभी श्रेणियों पर प्रतिबंध लगा देना उचित नहीं होगा. दायित्व तय करने के उद्देश्य से नेटवर्क सेवा प्रदाता, वेबसाइट परिचालक और वैयक्तिक उपयोगकर्ताओं जैसे मध्यवर्ती पक्षों के बीच विभेद करना महत्वपूर्ण होगा.’’ प्रधान न्यायाधीश ने यह सुझाव ‘साइबर कानून प्रवर्तन कार्यक्रम एवं राष्ट्रीय सलाहकार बैठक’ का उद्घाटन करते हुए दिया. इसका आयोजन उच्चतम न्यायालय ने साइबर अपीली न्यायाधिकरण, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकार (एनएएलएसए) के सहयोग से किया है. बैठक में न्यायाधीशों और विभिन्न राज्यों के पुलिस महानिदेशकों एवं साइबर प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों ने भाग लिया.