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विदेशी साहित्य में भी अमर हैं बापू...

भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्ति दिलाने वाले महात्मा गांधी का नाम न केवल इतिहास के पन्नों में अमर है बल्कि ब्राजील, रूस, मैक्सिको, फ्रांस, घाना, अमेरिका, मिस्र, अरब देशों, जापान और यहां तक कि ब्रिटेन के साहित्य में स्वप्न सुमन फैला रहे हैं.

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भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्ति दिलाने वाले महात्मा गांधी का नाम न केवल इतिहास के पन्नों में अमर है बल्कि ब्राजील, रूस, मैक्सिको, फ्रांस, घाना, अमेरिका, मिस्र, अरब देशों, जापान और यहां तक कि ब्रिटेन के साहित्य में स्वप्न सुमन फैला रहे हैं.

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ब्राजील की कवयित्री सिसीलिया मेयरलीज़ ने बापू का जिक्र अपनी कविताओं में इस प्रकार किया है ‘मायावनियों के नीले, मोहक स्वर, पर फैला कर उड़ जाने वाले वे घोड़े. पहुंच रही है यह खबर, मारा गया वह दुआ देता लोगों को. आह संघर्ष के वे दिन घर में घरघराते हुए चरखे. सुनहरे खादी के परिवेश में, दार्जिलिंग की चाय में गुलाब की महक.’

घाना के पूर्व राष्ट्रपति और अफ्रीकी स्वतंत्रता संघर्ष के अप्रतिम सेनानी और कवि नक्रुमा ने अपने स्वतंत्रता संघर्ष पर अपनी कविता में कहा, ‘घने जंगल में थका हारा सिपाही, हताश सो गया. उसके सपने को कृतार्थ किया एक महात्मा ने, एक गुरुदेव ने. एक ने मुस्कराते हुए अग्निपथ पर चलने की प्रेरणा दी. एक ने अमृतवाणी से मूर्छित चेतना को झकझोर दिया. मेरा नमन लो महात्मा.’

प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टीन ने कहा, ‘आने वाली पीढ़ी आश्चर्य करेगी, और विस्मयपूर्वक पूछेंगी, क्या ऐसा हाड़ मांस वाला व्यक्ति कभी किसी युग में इस धरती पर चलता फिरता भी था. वे मुश्किल से यह विश्वास करेंगी कि आदमी के शरीर में ऐसा संभव हुआ.’ {mospagebreak}

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अमेरिका में अश्वेतों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले मार्टिन लूथर किंग ने अपनी पुस्तक ‘स्ट्राइड्स टुवर्डस फ्रीडम में लिखा, ‘मैं कई महीनों से सामाजिक सुधार की जिस पद्धति की तलाश में था, वह मुझे प्रेम और अहिंसा पर गांधीवादी दर्शन में मिली. मुझे लगा कि दलितों के लिए उनके मुक्ति संघर्ष का तरीका नैतिक और व्यवहारिक दृष्टि से ठीक है.’

न्यूयार्क कम्युनिटी चर्च में तत्कालीन वक्ता, चिंतक डा. जे एच होम्स ने चार अप्रैल 1921 को विश्व के महानतम व्यक्ति की व्याख्यानमाला में गांधीजी को संसार के श्रेष्ठतम व्यक्तियों में स्थान देते हुए उनकी तुलना ईसा से की थी. मिस्र के चिंतक, विचारक, मनीषी कवि डा. ताहा हुसैन ने चौरी चौरा कांड के पश्चात गांधीजी द्वारा आंदोलन वापस लेने पर कहा था, ‘कथनी और करनी का योग, उपदेश और आचरण का संगम. उसका नाम है, मोहनदास करमचंद गांधी.’

अंग्रेज कवि ब्रेल्सफोर्ड ने अपनी रचना ‘ए हिस्टोरिक मार्च’ में कहा, ‘यह कौन दु:साहसी है, यह कौन योद्धा है. जो अपने प्यार से, अपनी नि:सीम सद्भावना से. अपने सत्य से, संसार के सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्य को चुनौती दे रहा है.’ महात्मा गांधी से मिलने के बाद अमेरिकी पत्रकार लुई फिशर ने अपनी पुस्तक ‘सेवेन डेज विद महात्मा गांधी’ में लिखा, ‘गांधीजी से हाथ मिलाते ही मेरे भीतर अहंकार की ग्रंथि पिघलने लगी.

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उन्होंने मुझे बात करने के लिए एक घंटे का समय दिया और अपराह्न साढे तीन बजे से शुरू वार्तालाप जैसे ही साढ़े चार बजे पहुंचा, उन्होंने बीच में टोकते हुए कहा बस समय हो गया, अब बात बंद.’ उन्होंने कहा ‘मैंने संसार के कई महान और व्यस्त लोगों से बात की लेकिन वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने मुझे इस तरह टोका. इतने समय के पाबंद थे महात्मा गांधी.’

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