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केरल में विधायकों का मूल वेतन मात्र 300 रूपये

संसद के पिछले दिनों संपन्न मानसून सत्र में सांसदों के वेतन में कई गुना वृद्धि करने संबंधी विधेयक पारित किया गया लेकिन यह बेहद आश्चर्यजनक है कि देश के विभिन्न राज्यों में आज भी विधायकों के लिए कोई एक समान वेतन व्यवस्था कायम नहीं की जा सकी है.

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संसद के पिछले दिनों संपन्न मानसून सत्र में सांसदों के वेतन में कई गुना वृद्धि करने संबंधी विधेयक पारित किया गया लेकिन यह बेहद आश्चर्यजनक है कि देश के विभिन्न राज्यों में आज भी विधायकों के लिए कोई एक समान वेतन व्यवस्था कायम नहीं की जा सकी है. गुजरात के विधायकों को देश में जहां सर्वाधिक 21 हजार रूपये प्रति माह वेतन मिलता है तो वहीं केरल में एक विधायक को मात्र 300 रूपये पर गुजारा करना पड़ता है.

पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, देश में गुजरात एकमात्र ऐसा राज्य है जहां विधायकों को प्रति माह 21 हजार रूपये वेतन दिया जाता है. इसके अलावा विधानसभा सत्र के दौरान सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने पर उन्हें प्रतिदिन 200 रूपये भत्ता भी मिलता है. लेकिन इस सूची में केरल के विधायकों की स्थिति बेहद कमजोर है जहां उन्हें मात्र तीन सौ रूपये के मासिक वेतन से काम चलाना पड़ता है . उन्हें दैनिक भत्ता भी मात्र चार सौ रूपये मिलता है.

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इसके बाद हिमाचल प्रदेश में वेतन तथा कुछ अन्य भत्ते मिलाकर विधायकों को 20 हजार रूपये, पंजाब में करीब 12 हजार रूपये, राजस्थान में दस हजार रूपये, तमिलनाडु में करीब दस हजार रूपये, हरियाणा में करीब आठ हजार रूपये और दिल्ली में पांच हजार रूपये से भी कम वेतन मिलता है.

पीआरएस ने बताया कि वेतन की तरह ही विधायकों को भी सांसदों के समान ही दैनिक भत्ता, निर्वाचन क्षेत्र भत्ता, कार्यालय भत्ता, आवास सुविधा और यात्रा सुविधा मिलती है लेकिन वेतन के समान ही राज्यवार इनमें भी काफी अंतर है. हरियाणा राज्य में विधायकों को मासिक वेतन नहीं मिलता लेकिन उन्हें प्रतिदिन एक हजार रूपये के हिसाब से भत्ता मिलता है जो किसी भी राज्य में विधायकों को मिलने वाला सर्वाधिक भत्ता है.

पीआरएस से जु़ड़े विधि मामलों के वरिष्ठ विशेषज्ञों ने बताया कि देशभर में विधायकों के वेतन में कोई समानता नहीं है क्योंकि हर राज्य का अपना ‘वेतन भुगतान अधिनियम’ है जो विधायकों के वेतन, भत्ते तथा पेंशन आदि के संबंध में नियम तय करता है. इसलिए वेतन का ढांचा और भत्तों संबंधी नियम राज्यों में अलग अलग हैं.

इसके अलावा विधायकों का वेतन बढ़ाते समय राज्य विधानसभाएं जनता की ओर से होने वाली संभावित आलोचना को भी ध्यान में रखती हैं. यही वजह है कि निजी क्षेत्र में जहां हर वर्ष वेतन में भारी वृद्धि होती है, विधायकों का वेतन चार पांच साल में एक बार बढ़ता है.

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