सादा जीवन उच्च विचार की कहावत को चरितार्थ करने वाले सीपीएम नेता ज्योति बसु की शख्सियत ही कुछ ऐसी थी कि पार्टी के नेता ही नहीं विरोधी भी उनका सम्मान करते थे. शायद ही किसी ने सोचा हो कि 1914 में मध्यवर्गीय परिवार में जन्मा एक लड़का बंगाल की धरती का लाल कहलाएगा. बंगाल का 5 बार मुख्यमंत्री बनेगा.
लेकिन 1936 में जब ज्योति बसु ने सियासी दुनिया में कदम रखा तो पूत के पांव पालने में ही दिखने लगे. हालांकि शुरुआती दौर में उन्हें जबरदस्त संघर्ष भी करना पड़ा लेकिन वो आगे बढ़ते रहे. 1946 में ज्योति बसु बंगाल विधानसभा के सदस्य चुने गए.
1964 में जब सीपीआई टूटी तो ज्योति दा सीपीआई मार्क्सवादी के पोलित ब्यूरो के नौ सदस्यों में शामिल थे. 1967 और 1969 में ज्योति बसु पश्चिम बंगाल के उप मुख्यमंत्री चुने गए. इसके बाद तो जैसे ज्योति दा का ही जमाना आ गया. 21 जून 1977 से 6 नवंबर 2000 तक ज्योति बसु बंगाल के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहे.
1996 में ऐसा मौका भी आया, जब हर कोई ज्योति बसु को देश के प्रधानमंत्री के तौर पर देखने लगा था. पीएम की कुर्सी भी बस एक कदम दूर रह गई थी, लेकिन देवेगौड़ा की सियासी चाल भारी पड़ गई और ज्योति दा प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए.
राजनीति के दल-बदलू दौर का भी ज्योति दा पर कभी असर नहीं पड़ा. बंगाल में लाल झंडा ऊंचा करने वाले ज्योति दा आखिरी दम तक कम्युनिस्ट पार्टी से ही जुड़े रहे. देश के सबसे चर्चित कम्युनिस्ट नेता बसु दा आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी यादें लाखों लोगों के दिलों में हमेशा ताजा रहेंगी.
सूनी हो गई बंगाल की सियासत. बंगाल का सियासी लाल ऐसी दुनिया में चला गया जहां से कोई लौट कर नहीं आता. अगर आ सकता तो बंगाल के लाखों दिलों से एक ही आवाज उठती- बसु दादा एक बार अपनी झलक दिखला जाओ, जाते-जाते हमसे कुछ कहते जाओ.