बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार तो बना दिया, लेकिन अभी यह साफ नहीं है कि वे कहां से लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे. सूत्रों के मुताबिक संघ परिवार और बीजेपी में मोदी का खेमा चाहता है कि मोदी या तो गांधीनगर से लड़ें या वाराणसी से. लेकिन गांधीनगर से आडवाणी मैदान में उतरना चाहते हैं और वाराणसी से मुरली मनोहर जोशी. बुजुर्गों की चाहत में मोदी की सीट फंस गई है.
बीजेपी के नए सेनापति के लिए अपने बुजुर्गों से ही निपटना मुश्किल हो रहा है. सूत्रों के मुताबिक बीजेपी में मोदी खेमा और आरएसएस की चाहत मोदी के लिए एक ऐसी सीट की तलाश पर अटकी है, जो मोदी के लिए मुफीद हो. इसमें दो सीटें आईं- गुजरात में गांधीनगर और उत्तर प्रदेश में वाराणसी. लेकिन मोदी के लिए सुरक्षित सीट में पार्टी के दोनों बुजुर्गों ने ही पेच फंसा दी.
जैसे ही मोदी का नाम बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर सामने आया, संघ ने गांधीनगर के अलावा वाराणसी में भी होमवर्क शुरू कर दिया. दरअसल वाराणसी सीट से पार्टी एक तीर से दो निशाना लगाना चाहती थी. एक तो वाराणसी में मोदी की जीत आसान लग रही थी और दूसरा पूर्वांचल में अपने पिछड़े आधार को मोदी के पिछड़े कार्ड से मजबूत करना चाह रही थी.
लेकिन सूत्रों की मानें तो जोशी इस बात पर अड़ गए हैं कि वो वाराणसी से ही चुनाव लड़ेंगे, जहां से पिछली बार जीते थे.
जब बीजेपी में मोदी का सिक्का चल निकला, तभी ये खबर भी आई कि पार्टी आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को राज्यसभा में भेजना चाहती है. लेकिन इस पर कोई राजनीतिक माथापच्ची होती, उससे पहले ही 87 साल के आडवाणी ने ललकारा- हम लोकसभा के लिए लड़ेंगे.
आडवाणी के सख्त तेवर के बाद एक खबर और उछली कि वो गांधीनगर की अपनी परंपरागत सीट छोड़कर मध्य प्रदेश में भोपाल या इंदौर से चुनाव लड़ सकते हैं. लेकिन अब मोदी खेमा नहीं चाहता कि आडवाणी गांधीनगर छोड़ें. आडवाणी से तो मोदी के रिश्तों में खटास पीएम की उम्मीदवारी के समय ही आ चुकी थी. जैसे-तैसे सीजफायर हुई, लेकिन सीट का सवाल अब एक-दूसरे से टकराने लगा है.