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Exclusive: साध्वी-साक्षी पर बोले अमित शाह, 'दंगों से कोई नहीं डरता तो बयान से क्या डरेगा'

वह व्यक्ति जो संगठनात्मक योग्यता और रणनीतिक योजना के लिए जाना जाता है. जो अपने बचपन से ही वीर सावरकर और चाणक्य का प्रशंसक रहा है. वह हैं अमित शाह. पेश है उनका एक्सक्लूसिव इंटरव्यू.

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BJP अध्यक्ष अमित शाह (फोटो; रॉयटर्स)
BJP अध्यक्ष अमित शाह (फोटो; रॉयटर्स)

वह व्यक्ति जो संगठनात्मक योग्यता और रणनीतिक योजना के लिए जाना जाता है. जो अपने बचपन से ही वीर सावरकर और चाणक्य का प्रशंसक रहा है. जो 'मृत्यु के बाद की दुनिया' के बारे में स्वयंभू विशेषज्ञ है. जो आदि शंकराचार्य के दर्शन का अनुयायी है. स्वभाव से रूखा है. मुखर है. जुझारू है. सभी कुछ अपने नियंत्रण में रखने वाला है . इससे भी अधिक बहुत कुछ है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह बहुत-से लोगों के लिए बहुत कुछ हैं.

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अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बीजेपी सरकार अपने कार्यकाल का पहला वर्ष पूरा कर रही है, नई दिल्ली के सत्ता के गलियारों से एक नए शाह उभरते हैं : सबको एकजुट करने वाले शाह. जहां उनके गुरु बरसों से चले आ रहे नीतिगत पक्षाघात के बीच अच्छे दिनों के बीज बो रहे हैं, वहीं शाह अपनी आंखें 2019 पर जमा चुके हैं. 2014 की चुनावी बढ़त को नींव मानकर आगे निर्माण होना है और विस्तार किया जाना है, जिला स्तर पर जिन नेताओं और कार्यकर्ताओं ने 282 की इस जादुई संख्या को रचने के लिए पसीना बहाया है, उन्हें अपने मन की बात कहने और अपने पथ पर डटे रहने के लिए प्रेरित करना है.

यानी 9 माह पहले पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद से देश के हर राज्य का कम-से-कम एक बार दौरा करना और बीजेपी की 580 जिला इकाइयों के नेताओं से मिलना. इस प्रक्रिया ने उन्हें अपने चुस्त संगठन की शक्तियों, कमजोरियों, चुनौतियों और सीमाओं को भी प्रत्यक्ष रूप से समझने का मौका दिया है, और वह संगठन दुनिया की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी का ताज पहन चुका है. फिर पार्टी के सत्ता में पहले साल का बचाव करने, और उसकी शुरुआती उपलब्धियों को सामने रखने, आलोचकों को पीछे धकेलने और नए दोस्त बनाने का काम भी है. एसोसिएट एडिटर रवीश तिवारी और असिस्टेंट एग्जीक्यूटिव एडिटर वाइ. पी. राजेश से साक्षात्कार में शाह सारी बात बिना लाग-लपेट के करते हैं, जिसमें वे बीते वर्ष पर भी नजर डालते हैं, और अपनी सफलताओं पर भी भरोसा जताते हैं. कुछ अंशः

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क्या केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी होने की भावना मन पर हावी हो गई है?
सत्तारूढ़ पार्टी होने का एहसास हमें तभी हो गया था, जब हम चुनाव प्रचार के दौर में थे. हमें अपनी जिम्मेदारी और काम की गंभीरता का एहसास उसी दौरान गया था. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. 1967 से 2014 तक हमें कई राज्यों में बहुमत मिला है, कुछ स्थानों पर हमने गठबंधन सरकारें बनाई हैं. कुछ स्थानों पर हमने दो-तिहाई बहुमत से शासन किया है. 2014 में मिली सत्ता बीजेपी के लिए कोई नई चीज नहीं है.

आपकी पार्टी 30 साल में स्पष्ट बहुमत हासिल करने वाली पहली पार्टी है. क्या इससे उम्मीदें नहीं बढ़ीं हैं और क्या यह बात चुनौती पैदा नहीं करती है?
यह हमारे लोकतंत्र के लिए अच्छी बात है. चाहे कोई गठबंधन सरकार हो या किसी एक पार्टी की सरकार हो, देश के सामने चुनौतियां वही रहती हैं. हम स्पष्ट बहुमत होने के बावजूद अब भी एक गठबंधन सरकार चला रहे हैं. यह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार है. लोगों की उम्मीदें कोई चुनौती नहीं है, यह जिम्मेदारी है.

लेकिन आपके सामने गठबंधन की वे मजबूरियां नहीं हैं, जिनका सामना आपके पूर्ववर्ती को करना पड़ा.
वह गठबंधन की मजबूरी नहीं थी. वह राजनैतिक इच्छाशक्ति का अभाव था. हमने भी एक गठबंधन सरकार चलाई, लेकिन हमारे लिए गठबंधन की ऐसी कोई मजबूरी नहीं थी.

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इसके बावजूद, सत्तारूढ़ पार्टी के रूप में बीजेपी ने महत्वपूर्ण मुद्दों पर उस रुख से यू-टर्न ले लिया है, जो उसने विपक्ष में रहते हुए अपनाया था. चाहे वह बांग्लादेश के साथ भूमि सीमा समझौता हो, जीएसटी, भूमि अधिग्रहण कानून या आधार हो. क्या यह सिर्फ सुविधा की राजनीति थी?
बीजेपी ने यह कभी नहीं कहा कि जीएसटी बिल पारित नहीं होना चाहिए. हमारा स्टैंड यह था कि राज्यों को जीएसटी के कारण होने वाले नुक्सान की पूर्ति की जानी चाहिए. हमने 14वें वित्त आयोग के माध्यम से राज्य सरकारों की अधिकांश मांगों को पूरा करने और जीएसटी के बदले मुआवजा सुनिश्चित करने की कोशिश की है. अगर इस पर सहमति पहले हो जाती, तो जीएसटी पहले ही अब तक लागू हो गया होता.

बांग्लादेश के साथ भूमि सीमा समझौते पर हमारे रुख में कोई बदलाव नहीं हुआ है. हमने असम को इससे पृथक रखने की मांग की थी और हम अब भी वही चाहते हैं. हमने उसके लिए संशोधन पेश किए. लेकिन चूंकि यह संवैधानिक संशोधन है, जिसके लिए दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होती है, इसलिए वीटो कांग्रेस के हाथ में है. हमारे सामने दो विकल्प थे. या तो अपने रुख से अडिय़ल ढंग से चिपके रहते या बांग्लादेश सीमा पर बाड़ लगाना सुनिश्चित करते. सरकार और राजनैतिक पार्टी के तौर पर, बाड़ लगाना सुनिश्चित करना बेहतर है, ताकि अवैध घुसपैठ की रोकथाम में मदद मिल सके.

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यहां तक कि भूमि अधिग्रहण बिल के मामले में भी, संसद में सिर्फ दो दिन चर्चा हुई. बिल जल्दबाजी में पारित किया गया था. लेकिन विधेयक की इस आत्मा पर सहमति थी कि किसानों को उचित मुआवजा मिलना चाहिए, किसानों और खेत मजदूरों के पुनर्वास के लिए प्रावधान होना चाहिए. संसद में सभी के बीच सैद्धांतिक सहमति थी. जब व्यावहारिक क्रियान्वयन का मौका आया, तो यह बात सामने आई कि कई चीजों को सही करना आवश्यक है. इसके लिए हमें संसद आना होता है. मैं एक बात स्पष्ट करना चाहता हूं कि इस कदम में निजी उद्योगों या बड़ी कंपनियों को भूमि उपलब्ध कराने की परिकल्पना कहीं नहीं है. किसानों को बेहतर मुआवजा मिलने जा रहा है. भूमि की खरीद बंद नहीं होने जा रही है.

जहां तक आधार का संबंध है, हमने आधार आधारित नागरिकता का विरोध किया था. किसी सरपंच की घोषणा के बूते नागरिकता का फैसला नहीं होना चाहिए. हमने उसका विरोध राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर किया था.{mospagebreak}

राज्यसभा में संख्या ने लोकसभा में 282 की सीमा को उजागर कर दिया है.
मेरी पार्टी और हमारी सरकार का कार्य संसद में सकारात्मक बदलाव लाना है. संसद में संख्या जनता को तय करनी है. राज्यसभा का गणित हमारे खिलाफ है. विपक्ष को राजनीति नहीं करनी चाहिए और योग्यता के आधार पर विधेयकों का समर्थन करना चाहिए. अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो यह मेरी पार्टी की गलती नहीं है.

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पिछले साल कई राज्य विधानसभा चुनावों में पार्टी की जीत का श्रेय आपको दिया गया है. दिल्ली की हार के लिए दोष किसे लेना चाहिए?
जहां तक श्रेय का सवाल है, श्रेय उन लाखों पार्टी कार्यकर्ताओं को जाता है, जिन्होंने सफलता दिलाने के लिए दिन-रात मेहनत की है. जहां तक दिल्ली की हार का संबंध है, हम कारणों का विश्लेषण कर रहे हैं और काफी हद तक यह विश्लेषण कर चुके हैं. लेकिन मैं उसका खुलासा सार्वजनिक रूप से करने नहीं जा रहा हूं. पर मेरा मानना है कि हमें किसी भी हार को हल्के में नहीं लेना चाहिए. बीजेपी ने इसे बहुत गंभीरता से लिया है और हमारी रणनीति और हमारे प्रशासन में आवश्यक परिवर्तन किए जा रहे हैं.

जम्मू-कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी की गठबंधन सरकार बनने से पार्टी के अपने कार्यकर्ताओं के बीच भ्रम पैदा हो गया कि पार्टी अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की अपनी राय से पलट गई है. क्या इस मामले पर पार्टी की राय बदली है?
हमारे पास जरूरी संख्या नहीं है. हम अनुच्छेद 370 पर कुछ नहीं कर सकते. यह हमें अटकाए नहीं रख सकता है. यह जनता का दिया जनादेश था. यह एक प्रयोग है जो इस देश की जनता और बीजेपी कार्यकर्ताओं को देखना चाहिए.

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क्या यह प्रयोग छह साल तक चलेगा?
मैं इस पर ज्यादा कुछ नहीं कह सकता. पर इतना तय है कि यह प्रयोग जम्मू-कश्मीर के एकीकरण और साथ-साथ देश की एकता और अखंडता को नुक्सान नहीं पहुंचाएगा.

हमें अगले साल असम में भी ऐसा ही प्रयोग देखने के लिए तैयार रहना चाहिए?
असम में हमें स्पष्ट बहुमत मिलेगा.

विपक्ष में रहते हुए बीजेपी ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में हमेशा बीजेपी शासित राज्यों की सराहना की. लेकिन इस बार सिर्फ दो राज्यों—महाराष्ट्र और हरियाणा—की तारीफ की गई है और वह भी गोमांस पर प्रतिबंध लगाने के लिए. क्या आपको लगता है कि गोमांस पर राष्ट्रीय प्रतिबंध लगाने की संभावना है?
सभी (बीजेपी शासित) राज्य अच्छा काम कर रहे हैं. महाराष्ट्र और हरियाणा की तारीफ गोमांस पर प्रतिबंध लगाने के कानून के लिए की गई थी. यह कानून अन्य (बीजेपी शासित) राज्यों में पहले से ही मौजूद है. जहां तक राष्ट्रीय प्रतिबंध का सवाल है, इसके लिए आम सहमति की जरूरत है. लेकिन मेरी पार्टी विश्वास करती है कि यह संविधान के मार्गदर्शक सिद्धांतों के तहत है. हम विश्वास करते हैं कि गोहत्या पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए. जहां-जहां भी बीजेपी सरकार है, वहां हमने यह प्रतिबंध लगाया है.

हमें क्या खाना चाहिए और क्या नहीं, यह सरकार को हमें क्यों बताना चाहिए?
हर व्यक्ति को एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए. अगर इसके लिए कुछ बदलावों की जरूरत हो, तो उन्हें करना चाहिए. खानपान की आदतों और किसी की भावनाओं में अंतर है. मैं व्यक्तिगत रूप से किसी की भावनाओं को आहत नहीं करना चाहता. यह भोजन की आदतों का मामला नहीं है, बल्कि भावनाओं का मामला है.

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आप विकास के नारे पर सत्ता में आए, लेकिन भगवा परिवार के भीतर के ही तत्व और कई बार आपकी पार्टी के सदस्य भी 'घर वापसी', 'हिंदू महिलाओं के चार बच्चे हों', 'लव जिहाद' जैसी बातों के पक्ष में खड़े हो जाते हैं. सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष के रूप में, आपका इस पर क्या कहना है?
यह न तो बीजेपी का स्टैंड है और न ही हम इन बयानों का समर्थन करते हैं. ये लोगों के निजी बयान हैं और इन्हें निजी बयानों के रूप में ही लिया जाना चाहिए. बीजेपी के दस्तावेजों में लव जिहाद का कोई जिक्र नहीं किया गया है, यह मीडिया का गढ़ा हुआ था.{mospagebreak}

क्या पार्टी इन विवादों से खुद को दूर करने में हिचकिचा नहीं रही थी?
नहीं, क्या मैंने यही काम अभी नहीं किया है? इस तरह के बयान नहीं दिए जाने चाहिए.

. निरंजन ज्योति, वी.के. सिंह और गिरिराज सिंह जैसे अपनी पार्टी के नेताओं के लिए आपकी क्या सलाह है जिनकी टिप्पणियों से विवाद पैदा होते हैं?
सभी को संयम का पालन करना चाहिए.

क्या इससे यह साबित नहीं होता है कि बीजेपी में कोई आंतरिक नियंत्रण नहीं है और लोग जो चाहते हैं, वह कह सकते हैं? क्या इस तरह की धारणा आपकी पार्टी को नुक्सान नहीं पहुंचाती है?
वह मुझ पर छोड़ दें. मेरा मानना है कि ये बातें हमें हमारे विकास समर्थक एजेंडे से डिगा नहीं सकतीं. अगर कोई कुछ बयान देता है, तो इससे हमारे सड़क निर्माण की गति रुक नहीं जाती है, इससे गांवों में बिजली ले जाने में प्रगति रुक नहीं जाएगी, न ही इससे विद्यालय निर्माण कार्य में प्रगति बंद हो जाएगी. इन बातों का विकास के साथ कोई संबंध नहीं है. यह मीडिया में सुर्खियां बटोरने के लिए अच्छी हैं.

लेकिन इस तरह के बयान भय का माहौल पैदा करते हैं.
मैं इस पर विश्वास नहीं करता हूं. दंगों से कोई नहीं डरता है जी, बयान से क्या डरेगा. दंगे देश भर में हुए हैं, लेकिन इससे समाज नहीं टूट गया है. वे वापस लौट जाते हैं और फिर बरसों एक साथ रहते हैं. दंगे नहीं होने चाहिए. लेकिन समाज उनको सह चुका है. लिहाजा बयानों से समाज में खलल पडऩे का कोई सवाल नहीं है. लेकिन लोगों को इस तरह के बयान नहीं देने चाहिए.

बीजेपी ने पश्चिम बंगाल पर ध्यान केंद्रित किया. इसके बावजूद नगर निगम के चुनाव बुरी तरह हार गई. क्यों?
वहां जिस स्तर की धांधली हुई, मैं नहीं सोचता कि वहां निष्पक्ष चुनाव हुए थे. मैंने अपने जीवन में इतने बड़े पैमाने पर धांधली कभी नहीं देखी. पश्चिम बंगाल नगर निगम के चुनाव नतीजों को जनादेश मत मानिए. वहां विधानसभा चुनावों में भी ऐसा ही हो सकता है.

विधानसभा चुनाव भारत का निर्वाचन आयोग कराता है, जिसमें अद्र्धसैनिक बल ड्यूटी पर तैनात होते हैं. संसदीय और विधानसभा चुनावों की पारदर्शी प्रणाली संस्थागत हो चुकी है.

जो उद्योगपति और कारोबारी नेता यूपीए से परेशान थे, वे अब बीजेपी सरकार के साथ भी मोहभंग महसूस करने लगे हैं.
वृद्धि दर तेज हुई है. राजकोषीय घाटा नियंत्रित किया गया है. चालू खाते का घाटा भी नियंत्रण में लाया गया है. मुद्रास्फीति की दर नकारात्मक स्तर तक नीचे आ गई है. विकास कहां रुका है? हम आम सहमति के जरिए जीएसटी पर आगे बढ़ रहे हैं. कोयला आपूर्ति विकास में एक बाधा बन गई थी... हम एक समाधान पर पहुंचे और एक पारदर्शी तरीके से नीलामी के रास्ते पर आगे बढ़े, जिससे कोयला ब्लॉकों के मात्र 10 फीसदी से सरकारी खजाने के लिए हमें 2 लाख करोड़ रु. दिलवाए गए हैं. हमने नीतिगत फैसले लिए हैं. पिछले 10 साल में पहली बार प्रधानमंत्री कार्यालय की संस्था सक्रिय हो गई है. हमें कुछ बकाया समस्याएं विरासत के रूप में मिली हैं, हम उन्हें हल करेंगे.

आपको लगता है कि उद्योग जगत की कुछ अपेक्षाएं व्यावहारिक नहीं हैं?
नहीं, यह उन (उद्योग जगत) की मजबूरी है. वे अतीत से ही एक मकडज़ाल में उलझे हुए हैं. तो उनका हम से अपेक्षा करना स्वाभाविक है क्योंकि हम नई सरकार हैं. अपेक्षाएं तो अपेक्षाएं हैं. हम उन्हें पूरा करेंगे. यह धारणा भी तेज हो रही है कि आपकी सरकार किसान और गरीब विरोधी है.

अभी आपका इशारा था कि हम उद्योग-विरोधी हैं, लेकिन अब आप कह रहे हैं कि हम गरीब विरोधी हैं. हम इन दोनों में से कोई भी नहीं हैं. हम मानते हैं कि खेती और उद्योग की सकल घरेलू उत्पाद में, रोजगार सृजन में और देश के विकास में अपनी भूमिका है और दोनों के लिए एक संतुलित नीति तैयार करने की जरूरत है. बीजेपी ऐसा करने की कोशिश कर रही है.{mospagebreak}

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी यह धारणा पैदा कर रहे हैं कि व्यापार और उद्योग की मदद करना नकारात्मक है.
कोई व्यक्ति कोई माहौल नहीं बना सकता. निश्चित माहौल बनाने के लिए कुछ न कुछ सचाई होनी चाहिए. अगर हम उद्योग समर्थक होते, तो क्या हम (कोयला) नीलामी के माध्यम से 2 लाख करोड़ रु. जुटा सकते थे? हम भी कोयला खानों को उसी तरह बांट सकते थे, जैसे कांग्रेस ने अपनी पार्टी के नेताओं (विजय) दर्डा और (नवीन) जिंदल को दीं. हम भी 2 जी स्पेक्ट्रम बांट सकते थे. हमने पारदर्शी तरीके से इन्हें नीलाम किया है. हमने इनके जरिए 3 लाख करोड़ रु. से अधिक जुटाए हैं. अगर आप चाहें, तो इसे उद्योग-समर्थक कह सकते हैं. कांग्रेस ने जो 220 कोयला खदानें और 2जी स्पेक्ट्रम बांटे थे, क्या वह किसानों के लिए थे? क्या गैस की कीमत 8 डॉलर रखना किसानों के लिए था? क्या वे कॉर्पोरेट समर्थक फैसले नहीं थे? सच यह है. वे जो कह रहे हैं, उन्हें कहने दीजिए.

लेकिन छुट्टी से लौटने के बाद से राहुल गांधी का सक्रिय होना सरकार के लिए परेशानी पैदा करने वाला नजर आ रहा है.
कोई भी नेता जो 10 साल तक सत्ता में रहने के बाद कुछ भी कहता है, उससे यह पूछे जाने की जरूरत है कि उसने उन 10 साल में क्या किया. उन्हें हमसे सवाल करने से पहले उन सवालों का जवाब देना चाहिए.

आपकी गठबंधन सहयोगी शिवसेना बीजेपी से या आपकी सरकार से नाराज दिख रही है. (एनसीपी नेता) शरद पवार ने कहा है कि आपका गठबंधन 2017 में होने वाले बीएमसी चुनाव तक नहीं चलेगा.
हम उन्हें मनाने में सक्षम हो जाएंगे. पवार साहब विपक्ष में हैं, उनको इस तरह की बातें कहनी होंगी. वे जानते हैं कि अपनी पार्टी को फायदा दिलाने के लिए उन्हें क्या कहना चाहिए.

अकाली दल नेता नरेश गुजराल ने भी बीजेपी सरकार के प्रति हताशा जताई है.
बयान परेशानी पैदा नहीं करते हैं. धैर्य रखना चाहिए. अगर हमारे भागीदार कुछ कहते हैं, तो इस पर उन लोगों के साथ चर्चा की जाएगी.

अकाली दल से आपका गठबंधन 2017 के विधानसभा चुनाव तक टिका रहेगा?
अकाली दल के साथ हमारा गठबंधन है. जब गठबंधन है, तो हमें 2017 के लिए नकारात्मक रूप से क्यों सोचना चाहिए?

बिहार के बारे में क्या आकलन है?
कोई भी मूल्यांकन करने के लिहाज से अभी जल्दबाजी होगी. स्थिति अब भी अस्पष्ट है. हमारे लिए नहीं, बल्कि हमारे विरोधियों के लिए भी. पहले वे कहते हैं, विलय होगा और फिर कहते हैं विलय नहीं होगा, बल्कि गठबंधन होगा.

क्या जनता परिवार के विलय की योजना ने आपको परेशान कर दिया है?
बिल्कुल नहीं. परेशान वे हैं और यही वजह है कि वे एकजुट हो रहे हैं. हमारे पक्ष में कोई हताशा नहीं है, हताशा हमारे प्रतिद्वंद्वी खेमे में है. यही वजह है कि वे एक साथ हो रहे हैं. हम बेहतर स्थिति में हैं. जो लोग डर रहे हैं, वे विलय की कोशिश कर रहे हैं.

क्या नीतीश कुमार के साथ फिर से गठबंधन की संभावना है?
सवाल ही पैदा नहीं होता.

सरकार पर हमला करने वाला एक विवाद यह था कि सरकार में नंबर दो कौन है. आप बताएं सरकार में नंबर दो कौन है?
जब नंबर एक है, तो किसी को इस बारे में सवाल नहीं करना चाहिए कि नंबर दो कौन है. हर किसी को अपने-अपने दायित्वों का निर्वहन सर्वश्रेष्ठ क्षमताओं के अनुरूप करना चाहिए.

सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष के रूप में, आप अगले एक साल में किन चुनौतियों की अपेक्षा करते हैं?
मैं कुछ वे काम बताना चाहता हूं, जो हमने पिछले एक साल में किए हैं. भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं लगा है. हम अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने में सफल हुए हैं. हम नीतिगत पक्षाघात की स्थिति से बाहर आ गए हैं. सरकार पहले ही वर्ष में स्पष्ट नजर आई है, चाहे वह जम्मू-कश्मीर में बाढ़ हो, नेपाल में भूकंप हो या यमन से बचाव हो. हमने वंचित वर्गों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं. हमने प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित किसानों के लिए राहत में वृद्धि की है और मानदंडों को सरल किया है, लगभग 14 करोड़ लोगों के लिए बैंक खाते खोले हैं, जो दुनिया के सबसे बड़े सशक्तिकरण कार्यक्रमों में से एक है. मेक इन इंडिया, स्किल डेवलपमेंट से रोजगार और प्रौद्योगिकी आएगी. हमें दुनिया से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है. हमें आने वाले वर्षों में इस आधार पर कहीं ज्यादा मजबूत संरचना का निर्माण करने की उम्मीद है.

पिछले एक साल में क्या सीखा है?
हमें अब भी मीडिया से निबटना सीखने की जरूरत है. हम कोशिश कर रहे हैं.

राहुल गांधी पर
"जो भी नेता 10 साल तक सत्ता में रहने के बाद कुछ भी कहता है, उससे यह पूछा जाना चाहिए कि उसने उन 10 साल में क्या किया."

जनता परिवार पर
"हमारी तरफ कोई हताशा नहीं है. नीतीश कुमार के साथ एक बार फिर गठबंधन का सवाल ही पैदा नहीं होता."

पश्चिम बंगाल पर
"मैंने इतने बड़े पैमाने पर धांधली कभी नहीं देखी. मैं पश्चिम बंगाल नगर निगम चुनाव नतीजों को जनता का फैसला नहीं मानता."

कदमों के निशान
नौ महीने पहले पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद से अमित शाह देश के हर राज्य का कम-से-कम एक बार दौरा कर चुके हैं.

 

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