देश की मानव संसाधन विकास मंत्री यानी शिक्षा मंत्री आज एक ज्योतिषी के दरवाजे पर पहुंच गईं. उसके बाद से मीडिया और राजनीतिक दल दोनों ही उनकी आलोचना के सुर अलाप रहे हैं. लेकिन सवाल है कि जिस देश में तकरीबन हर काम भगवान का नाम लेकर होता हो, वहां एक मंत्री के ज्योतिषी से मिलने पर सवाल क्यों उठने चाहिए. चलिए खांटी मार्क्सवादी सवाल उठाएं तो भी वाजिब, लेकिन उन टीवी चैनलों को सवाल उठाने का क्या हक है जिनके यहां धर्म और ज्योतिष पर नियमित कार्यक्रम दिखाए जाते हैं. इन कार्यक्रमों में विस्तार से कोई बाबाजी बताते हैं कि आपका आज का दिन शुभ है या अशुभ. इस संकट से बचने के लिए आपको काले कुत्ते को रोटी खिलानी है या सफेद बिल्ली को.
बात जरा हल्के फुल्के ढंग से कही जा रही है, लेकिन जाती दूर तक है. देश के पहले प्रधानमंत्री और राष्ट्र निर्माता पंडित जवाहरलाल नेहरू मंदिर न जाने के लिए मशहूर रहे हैं. लेकिन जब वे देश का पहला पोत जलूसा समुद्र में उतार रहे थे तो बाकायदा पूजा-पाठ हुआ और फिर नारियल फोडऩे के बाद सिंधिया कंपनी के इस जहाज को यात्रा पर रवाना किया गया. (यह वीडियो यूट्यूब पर सहज उपलब्ध है.)
उधर 2013 में मंगल यान भी इसी तरह के पूजा पाठ के बाद कामयाबी से छोड़ा गया. वैसे भी अगर कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया को छोड़ दें तो देश के अधिकांश नेता ईश्वर के नाम पर शपथ लेकर ही अपनी कुर्सी पर बैठे हैं. कभी रेलवे स्टेशनों से भगवान की मूर्ति और तस्वीर हटाने का फरमान जारी करने वाले तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद बाद में बड़े चाव से बताते हैं कि कैसे शंकर भगवान उनके सपने में आए और मांस खाने की मनाही की.
जो नेता बिरादरी स्मृति पर सवाल उठा रही है, जरा देखिए उनमें से कितनों की उंगलियों पर ग्रहबाधा से लडऩे वाले नग और पत्थर चमक रहे हैं. जिनकी उंगलियां खाली हैं, उनके गले में ताबीजें दिख जाएं तो बड़ी बात नहीं हैं. और जिनके पास इनमें से कुछ भी नहीं है, उनमें से भी बहुत से चुपचाप हवन पूजन में लगे हैं.
इसी लोकसभा चुनाव में जिसमें कांग्रेस 206 से 44 पर आ गई, एक कांग्रेसी मंत्री ने अपना किस्सा बताया था. इन मंत्री को एक बाबा ने बताया कि अगर मतदान के दिन आप हाथी के पांव के नीचे की मिट्टी जेब में रख लेंगे तो आपकी जीत निश्चित है. मंत्री जी ने मुंह अंधेरे ही मिट्टी मंगवा ली थी. इसके अलावा भी वे कई टोटके किए बैठे थे. बावजूद इसके वे 4 लाख से ज्यादा वोटों से हार गए. हां ये मंत्री हिंदू भी नहीं थे.
यह सब सीन खींचने का मकसद यही है कि किसी को अंधविश्वास का विरोध करना है तो खुलकर करे और ईमानदारी से करे. मीठा-मीठा हप्प और तीता-तीता थू, वाला हिसाब नहीं चलेगा. जिन बहुत से लोगों को स्मृति से नाराजगी है वे अपने जीवन में और अपने आस-पड़ोस के जीवन में पहले इन पुरानी परंपराओं से लड़ें. लेकिन मुझे लगता नहीं कि यह लड़ाई बहुत कामयाब होगी.
इस लड़ाई का मनोरम रहस्य आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के चारों आख्यानों में मिलता है. ये आख्यान बताते हैं कि भारत में यह व्याधि लंबे समय से लिपटी है और आधुनिकता के साथ ही यह आधुनिक चोले पहनकर सामने आ जाती है. दरअसल हमारी शिक्षा व्यवस्था और सामाजिक आचार में अभी वे खांचे बनाए ही नहीं गए हैं, जो इन अंधेरों से दूर ले जाते हों. जब तक वह नया खांचा तैयार नहीं होता, तब तक स्मृति को सार्वजनिक निंदा से छूट मिलनी चाहिए.