(वैधानिक चेतावनी: अगर आपको आइसक्रीम में वनीला के अलावा कोई फ्लेवर और जींस में नीले-काले के अलावा कोई रंग पसंद और पता है तो आगे लिखी हुई बातें कतई न पढ़ें.)
ये वो वक्त जब लाल रंग की कमीज मांगो तो अगला सामने से लाल के दसियों शेड्स बता देगा, एक रंग में इतने रंग समाए देख सहसा दुकानदार के लिए सहज सम्मान उमड़ पड़ता है, कैसे कोई इन रंगों में इतना फर्क कर सकता है? जिन्दगी भर उजली कमीज पर नीली-काली जींस पहनने वालों के लिए ऐसे क्षण बड़ी दुविधा भरे होते हैं .
कपड़े की दुकानों पर काम करने वाले कभी-कभी मुझे अंग्रेजों के एजेंट लगते हैं, टॉरक्वाईज, सेलमन, मेजेंटा, पीच, बेबी पिंक, पैरट ग्रीन से लेकर स्काई ब्लू...इतनी अंग्रेजी तो खुद वायसराय को नही आती रही होगी. एक आम कपड़े की दुकानवाला दिनभर रंगों के जितने शेड अंग्रेजी में गिना देता है, उतने में हिन्दी बोर्ड के दो दर्जन बच्चे अंग्रेजी टॉप कर जाएं. अपने वक्त और अपने मुल्क में हेनरी चतुर्थ और सोलहवें इतने न हुए होंगे जितनी नुक्कड़ के दस बाई बारह वाले होटल में पनीर की सब्जियां होने लगी हैं, हर चीज के विकल्प हैं व्हीट ब्रेड, ब्राउन ब्रेड, गार्लिक ब्रेड जैसे विकल्पों ने सीधी-सादी दूध-डबलरोटी खाना ट्रिकी कर दिया है. बढ़ते विकल्पों के बीच सबसे ज्यादा मरण उनकी है जो आम रह गए और चूजी न हो पाए.
चूजियों और चूजों के बीच लटकी दुनिया....
दुनिया चूजियों और चूजों के बीच लटक रही है, जो चूजे होते हैं वो चूजी नही हो पाते, चूजों को यूं समझिए जिनको मम्मियां बचपन से ही सरसों का तेल चुपड़, एक तरफ मांग काढ़ स्कूल भेज दिया करती थीं, आज भी जब ये सैलून बाल कटाने जाते हैं, हेयर कट का तरीका बताने में इनके पसीने छूट जाते हैं. इस मुल्क में सरकार के बाद सबसे ज्यादा निराश आदमी नाइयों से ही है, भले उन्हें जॉनी डेप सा हेयर कट बताया जाए अंत में वो शक्ल जॉनी लीवर सी ही कर डालते हैं.
बंदा चूजी न हो तो जिंदगी के हर मोड़ पर सर्वाइव करता है, ऐसों का जनरल नॉलेज भी जनता दल परिवार जैसा होता है, कब दरक जाए भरोसा नही. सबसे बड़ी समस्या मोबाइल और लैपटॉप लेने की होती है, दुनिया प्रोसेसर से लेकर रैम-रोम और ग्राफिक कार्ड के पेंचोखेम समझा रही होती है और ये तसल्ली देते हैं क्या करना फेसबुक तो चल ही जाएगा.
ऐसे लोगों को प्यार भी बड़े इत्मीनान से होता है, प्यार हो जाने को अगले का सिर्फ लड़का या लड़की होना और एकाध बार देखकर मुस्कुरा देना ही काफी होता है. ये विशुद्ध प्रेमी होते हैं बाहरी आडम्बर और दिखावा इन्हें समझ ही नही आता, प्रेम में पड़ने के पहले ये फिजिकल अपीयरेंस, चूड़ी बराबर ईयररिंग्स, गालों के डिम्पल और एंकल लेंथ जींस की फिटिंग को तरजीह नही देते, गर्लफ्रेंड इन्हें खजूर चोटी में भी पफ सरीखी नजर आती है.
आइसक्रीम के नाम पर सिर्फ...
प्रेम के अलावा ये और मामलों में भी बेहतर होते हैं, इनके टीवी रिमोट की बैट्री बहुत चलती है, चैनल में आने लग जाए तो ये सोना स्लिम बेल्ट और फुग्गा वाले गद्दे का विज्ञापन भी उसी तन्मयता से देख डालते हैं जैसे 'रामजाने' के बाद 'जिगर कलेजा' देख रहे होते हैं.
पर अक्सर ये चूजी न होने के चलते भुगतते भी हैं, किसी शाम इंटर मार गजल लिखने का मन किया तो पता लगता है उर्दू के नाम पर अलविदा-शुक्रिया से ज्यादा कुछ नही आता, गर्लफ्रेंड के साथ किसी कैफे में बैठ इन्हें भान होता है कि आइसक्रीम के नाम पर हर बार वनीला नही खाई जा सकती.
हर चीज की तरह इनकी निश्चित पॉलिटिकल राय भी नही बन पाती ये अलग बात है कि जिनकी बन चुकी है उनने ही कौन से तीर मार लिए हैं? इनसे राहुल और मोदी में फर्क पूछिए तो बताएंगे केजरीवाल भी ठीक आदमी है, जब-जब टीवी पर बोलता है अच्छी नींद आती है.