दुर्गा पूजा बंगाल का सबसे बड़ा त्योहार है जो बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. लेकिन ऐसा लग रहा है कि देश में छाई आर्थिक मंदी ने इस त्योहार की चमक फीकी कर दी है. मंदी के प्रभाव में आकर पूजा आयोजकों की स्थिति डावांडोल है, क्योंकि कॉर्पोरेट विज्ञापनदाताओं ने नकदी की कमी के चलते विज्ञापन घटा दिए हैं.
पूजा आयोजकों का कहना है कि कॉर्पोरेट प्रायोजकों की कमी के चलते हम पर दबाव है कि हम अपने बजट में 20 से 40 फीसदी तक कटौती करें.
दक्षिणी कोलकाता में हाजरा पार्क दुर्गोत्सव कमेटी के सचिव सायनदेब चकबर्ती का कहना है, 'हर साल इस टाइम तक पूजा पंडाल के बाहर खाली जगहें विज्ञापनों से भर जाती थीं, लेकिन इस साल एक भी विज्ञापन नहीं है. हमने हर चीज में कटौती की है, क्योंकि कंपनियां विज्ञापन पर खर्च करने की इच्छुक नहीं हैं, जबकि विज्ञापन ही हमारे लिए पैसे का मुख्य स्रोत था.'
चक्रबर्ती के मुताबिक, बड़े स्तर के दुर्गा पूजा आयोजनों के लिए पिछले साल की पूजा खत्म होते ही अगले साल की प्लानिंग और बजट का काम हो जाता था. पूजा आयोजकों के लिए कलाकारों को जुटाना, साज-सज्जा कराना, नई थीम चुनना काफी मुश्किल काम होता है, ताकि ज्यादा से ज्यादा भीड़ को आकर्षित किया जा सके.
इसके लिए असंगठित क्षेत्र से जो पैसे मिलते हैं वे ज्यादातर एडवांस में और कैश में मिलते हैं. लेकिन इस बार कलाकारों और वेंडरों को डर सता रहा है कि उन्हें नुकसान होगा.
मूर्ति बनाने वाले अरुण पाल ने बताया, 'पूजा कमेटियां मूर्तियां बुक कराती हैं तो कुछ पेमेंट एडवांस में देती हैं और जब हम मूर्ति पहुंचाते हैं तो हमें पूरे पैसे मिल जाते हैं. आमतौर पर हम मूर्तियां बनाने के लिए कर्ज लेते हैं और पैसे आने पर वापस कर देते हैं. इस बार हमें डर लग रहा है कि पूजा आयोजक हमें समय से भुगतान करेंगे या नहीं.'
स्पॉन्सर्स को सता रहा डर
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के क्षेत्र भवानीपुर के एक पूजा पंडाल में तैयारियों की निगरानी कर रहे कुछ वरिष्ठ लोगों ने बताया कि पूजा खर्च पर आयकर विभाग की निगरानी के चलते ज्यादातर स्पॉन्सर्स को डर सता रहा है.
आबशार सरबोजनीन दुर्गोत्सव समिति के एक्जीक्यूटिव प्रेसिडेंट आशीष सेनगुप्ता ने कहा, 'आयकर का कोई भी डर सिर्फ गप्प है, कोई पूजा कमेटी आयकर नहीं देने जा रही है. आयकर विभाग ने यह स्पष्ट किया है. फिर भी लोगों में एक धारण बन गई है जिसने स्पॉन्सर्स को प्रभावित किया है.'
एसोचैम की 2013 की रिपोर्ट के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा की कुल अर्थव्यवस्था 25,000 करोड़ की थी. उम्मीद थी कि यह हर साल 35 फीसदी की दर से बढ़ेगी. बड़े बजट के साथ पूजा आयोजक भीड़ को आकर्षित करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं ताकि विज्ञापन देने वाले ब्रांड को ज्यादा से ज्यादा फायदा हो, लेकिन खपत में गिरावट के चलते मांग में कमी आई है. इससे संगठित क्षेत्र की कंपनियों ने त्योहारी सीजन में विज्ञापन खर्च कम कर दिया है.
8000 बैनर की बुकिंग, मिला है 2000 का ऑर्डर
आउटडोर एडवरटाइजिंग एजेंसी चलाने वाले रतुल बिस्वास का कहना है, 'जो क्लाइंट्स विज्ञापन पर 50 से 60 लाख खर्च करते थे, वे अब महज 10 लाख खर्च कर रहे हैं. हमें क्लाइंट के ऑर्डर के पहले ही विज्ञापन की जगह बुक करनी होती है. हमने पूरा कोलकाता में एडवांस में 8000 बैनर की जगह की बुकिंग करा ली है, लेकिन अभी तक सिर्फ 2000 का ऑर्डर मिला है. दुर्गा पूजा में अब सिर्फ तीन हफ्ते बचे हैं, यह हमारी सोच से परे है. ऑटोमोबाइल, रीयल एस्टेट और फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (FMCG) सेक्टर सबसे खराब हालत में है.'
फंडिंग की व्यवस्था न हो पाने के चलते आयोजक आखिरी वक्त में प्रचार संबंधी व्यवस्था में बदलाव कर रहे हैं. इसका मतलब यह भी है कि उद्घाटन के लिए बड़ी शख्सियतें नहीं बुलाई जाएंगी.
एक पूजा कमेटी मेंबर ने कहा, 'सच कहें तो इस बार हमें मां दुर्गा ही बचाएंगी!' दुर्गा पूजा समितियों को मदद करने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पूरे प्रदेश की 28000 समितियों में से प्रत्येक को 25,000 रुपये देने का ऐलान किया है. सरकारी मदद में पिछले साल के मुकाबले यह 150 फीसदी की बढ़त है.
वरिष्ठ तृणमूल कांग्रेस नेता मदन मित्रा ने कहा, 'मोदी सरकार की गलत नीतियों के चलते देश की अर्थव्यवस्था अंतिम सांसे गिन रही है. ऐसे में मुझे संदेह है कि पूजा समितियां पांच दिनों के लिए ढंग से पूजा आयोजिक करा सकेंगी.'
वहीं, बीजेपी नेता शिशिर बजोरिया ने किसी तरह की आर्थिक मंदी की बात को नकारते हुए कहा कि पूजा समितियों का राजनीतिकरण किया जा रहा है जिसके चलते लोगों ने पूजा के लिए दान देना बंद कर दिया है.'
उन्होंने कहा, 'पहले पूजा के लिए स्थानीय लोगों से फंड जुटाए जाते थे और कभी फंड की कमी नहीं होती थी. फिर इसमें धीरे धीरे चिट फंड की संलिप्तता सामने आई, लेकिन अब वह भी समाप्त हो गई. तृणमूल के नेता और मंत्री पूजा को पैसा उगाहने के रैकेट के लिए इस्तेमाल करते हैं. इसका राज्य की अर्थव्यवस्था से कोई लेना देना नहीं है.'