अफजल गुरु की सजा को लेकर केंद्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के बयान पर हंगामा खड़ा हो गया. आजतक से बातचीत में बेनी बाबू ने संसद हमले के गुनहगार के लिए फांसी की जगह पर उम्रक़ैद की सजा की वकालत की.
संसद हमले की 11वीं बरसी पर जैसे ही बयान आया, बवाल मच गया. सियासी दलों की तीखी प्रतिक्रिया के बाद मंत्री जी ने अपना बयान वापस ले लिया.
बेनी प्रसाद वर्मा मनमोहन सरकार में इस्पात मंत्री हैं, लेकिन आजतक ने जब संसद हमले के गुनहगार अफजल गुरु की फांसी को लेकर सवाल किया तो आतंकी से इतनी हमदर्दी हुई कि दिल की बात जुबां पर आ गई. बोल नरम पड़ गए. मंत्री महोदय जज के किरदार में आ गए. अफजल गुरु को मिली फांसी की सजा को सुप्रीम कोर्ट की मुहर का भी ख्याल नहीं रखा. राष्ट्रपति भवन के दफ्तर में दया याचिका की फाइल होने की भी बात भूल गए. मीडिया के सामने अफजल गुरु के लिए अपनी तरफ से सजा मुकर्रर कर दी.
इस्पात मंत्री के इस जुबानी तुर्रे पर हैरान मत होइए. बयान देकर विवाद खड़े करना बेनी बाबू का पुराना शगल है. कभी वो महंगाई को आम लोगों के लिए बेहतर बता देते हैं, तो कभी बयान देकर अपनी ही सरकार के मंत्रियों के लिए मुसीबते बढ़ाने में पीछे नहीं रहते.
अब ये तो किसी को नहीं पता कि बेनी प्रसाद वर्मा ने क्या सोच कर ये बयान दिया, लेकिन शिवसेना ने अल्पसंख्यक वोटों पर कांग्रेस की नजर से जोड़ दिया और मंत्री जी पर जुबानी फंदा कस दिया.
शिवसेना नेता संजय राउत ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अगर अफजल को नहीं तो क्या बेनी प्रसाद वर्मा को फांसी पर लटका दिया जाए.
कहते हैं कि धनुष से निकली तीर और जुबान से निकली बात वापस नहीं आती. लेकिन असंभव को संभव बनाने का खेल ही तो सियासत है. बयान पर बवाल मचा, तो बेनी बाबू ने यू टर्न लेने में थोड़ी भी देर नहीं की.