पेट्रोल-डीजल की आसमान छूती कीमतों के खिलाफ कांग्रेस ने आज भारत बंद का आह्वान किया है. कांग्रेस को इस बंद में 21 विपक्षी पार्टियों का समर्थन मिला है. मोदी सरकार के खिलाफ आए अविश्वास प्रस्ताव के दौरान संसद में जो विपक्ष बिखरा हुआ नजर आया था. आज विपक्ष के वही दल हैं और उसी मोदी सरकार के खिलाफ सड़क पर एकजुट होकर उतरे हैं.
बता दें कि दिल्ली में आयोजित बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी ने यह कहकर कांग्रेस पर जबरदस्त हमला किया था कि उसके राष्ट्रीय नेतृत्व को कोई नेता नहीं मानता है.
मोदी ने राहुल गांधी का नाम लिए बिना कहा था कि उन्हें विपक्ष का छोटा सा दल भी नेता स्वीकार करने को तैयार नहीं है, ऐसे में विपक्ष का महागठबंधन बनना लगभग नामुमकिन है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी इसी तरह की बात कही.
मोदी सरकार के खिलाफ आज जिस तरह से कांग्रेस के आह्वान पर विपक्ष के 21 राजनीतिक दल सड़क पर उतरकर आंदोलन कर रहे हैं. इससे बीजेपी को जहां झटका लगा है. वहीं, कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों की एकता महागठबंधन के लिटमस टेस्ट के तौर पर देखा जा रहा है.
कांग्रेस के नेतृत्व में आज भारत बंद में एनसीपी, डीएमके, सपा, जेडीएस, बसपा, टीएमसी, आरजेडी, सीपीआई, सीपीएम, एआईडीयूएफ, नेशनल कांफ्रेंस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, झारखंड विकास मोर्चा, आप, टीडीपी, केरला कांग्रेस, आरएसपी, आईयूएमएल, शरद यादव की पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल, राजू शेट्टी की स्वाभिमानी शेतकरी पार्टी और हिंदुस्तान अवाम पार्टी (हम) का समर्थन हासिल है.
राहुल गांधी की गैरमौजूदगी में भारत बंद को सफल बनाने किए कांग्रेस ने एक खाका तैयार किया. इसके लिए लंबी मीटिंग हुई है. पार्टी के सभी प्रदेश अध्यक्षों को इस बंद को सफल बनाने के निर्देश दिए गए हैं. कांग्रेस के चाणक्य अहमद पटेल और कांग्रेस के संगठन महासचिव अशोक गहलोत ने बंद को कारगार बनाने के लिए विपक्षी दलों को साधने की जिम्मेदारी उठाई.
दरअसल अहमद पटेल और गहलोत के रिश्ते विपक्षी दलों के बीच ठीक-ठाक हैं. दोनों नेताओं ने विपक्ष के सभी सहयोगी दलों से बातचीत कर भारत बंद में शामिल होने के लिए समर्थन मांगा.
इसके अलावा कांग्रेस ने शरद यादव के जरिए सहयोगी दलों को साधने की कोशिश की. कांग्रेस की ये कोशिश रंग लाई और इसी का नतीजा है कि आज सपा, बसपा से लेकर ममता बनर्जी और आम आदमी पार्टी तक सड़क पर उतरी है.
कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यूपी, बिहार, बंगाल, झारखंड में पार्टी के पास कार्यकर्ताओं की कमी थी. इस कमी को विपक्षी दलों ने समर्थन देकर मजबूत कर दिया है. इसी का नतीजा है कि भारत बंद का सबसे ज्यादा असर बिहार में दिख रहा है.
कांग्रेस को लग रहा था कि राफेल से पार्टी को ताकत मिलेगी. लेकिन राफेल से जनता का सीधे कनेक्ट नहीं हो पाया है. ऐसे में पेट्रोल-डीज़ल का मुद्दा सीधे जनता से जुड़ा हुआ है. इस मसले से कांग्रेस को सियासी फायदे की उम्मीद है. खासकर खरीफ की बुआई का मौसम है. जहां बारिश कम है वहां डीजल से चलने वाले पंपों के जरिए जरिए सिंचाई की जाती है. किसान की खेती में लागत बढ़ रही है. यूपी में गन्ना किसान परेशान है. उनका पुराना बकाया जस के तस बना हुआ है.
2019 के लोकसभा चुनाव के पूर्व जिस तरह से विपक्षी दलों को पास लाने की रणनीति कांग्रेस ने बनाई है. उससे बीजेपी के माथे पर सिकन आना लाजमी है. जिसमें आरजेडी ने कांग्रेस का साथ देने के लिए सड़क पर उतरकर जान डाल दिया है. देश के सबके बड़े सूबे यूपी में कांग्रेस के सामने चुनौती है. जिसे अखिलेश यादव ने पूरा कर दिया है. समाजवादी पार्टी ने पूरे प्रदेश में धरना देने की हिदायत दी है.