सीबीआई ने 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के मामले में 14 साल पुराने एक फैसले को याद करते हुए आरोपियों के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में गैर इरादतन हत्या के कड़े आरोप बहाल करने की मांग की, जिनमें 10 साल की कैद की अधिकतम सजा का प्रावधान है.
एटार्नी जनरल जीई वाहनवती द्वारा मंजूर एक उपचारात्मक (क्यूरेटिव) याचिका में कहा गया है कि मामले में न्याय में पूरी तरह विफलता रही. याचिका में मांग की गयी है कि शीर्ष न्यायालय के 13 सितंबर 1996 के फैसले पर पुनर्विचार किया जाए जिसमें यूनियन कार्बाइड इंडिया के पूर्व अध्यक्ष केशव महिंद्रा और छह अन्य के खिलाफ लापरवाही और अविवेकपूर्ण तरीके से मौत के लिए जिम्मेदार होने के हल्के आरोप लगाये गये.
पांच सौ से अधिक पन्नों की उपचारात्मक याचिका तैयार करने वाले वकील देवदत्त कामत ने कहा, ‘‘हमने अदालत से शीर्ष न्यायालय के उस फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा है, जिसमें आरोपियों के खिलाफ आरोपों को हल्का कर दिया गया. हमने अदालत से मांग की है कि आईपीसी की धारा 304 भाग.दो बहाल करने का निर्देश दिया जाए.’{mospagebreak}
गैस त्रासदी के मामले में भोपाल में निचली अदालत ने सात जून को महिंद्रा के अलावा यूसीआईएल के तत्कालीन प्रबंध निदेशक विजय गोखले, तत्कालीन उपाध्यक्ष किशोर कामदार, तत्कालीन कार्य प्रबंधक जेएन मुकुंद, तत्कालीन उत्पादन प्रबंधक एसपी चौधरी, तत्कालीन संयंत्र अधीक्षक केवी शेट्टी और तत्कालीन उत्पादन सहायक एसआई कुरैशी को दोषी करार दिया और दो साल कैद की सजा सुनायी.
निचली अदालत के फैसले के बाद माहौल गर्मा गया और सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा राजनीतिक दलों की तरफ से इसके खिलाफ अपील करने की मांग उठने लगी. तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एएम अहमदी और न्यायमूर्ति एसबी मजूमदार की पीठ ने धारा 304 भाग-दो के तहत आरोपों को धारा 304ए के तहत कर हल्का कर दिया था.
सभी आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 304 ए के तहत मुकदमा चलाया गया था, जिसमें अधिकतम दो साल की कैद की सजा का प्रावधान है. सीबीआई ने मामले को दुर्लभ से दुर्लभतम की संज्ञा दी.
शीर्ष न्यायालय ने 10 मार्च 1997 को एनजीओ भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समति द्वारा दाखिल याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें भी 1996 के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की गयी थी.
निचली अदालत के फैसले पर नाराजगी के माहौल के बाद भोपाल गैस त्रासदी पर मंत्रियों के समूह (जीओएम) ने 20 जून को सिफारिश की थी सीबीआई मामले में उपचारात्मक याचिका दाखिल करे.