भोपाल गैस लीक मामले में आरोपों को नरम करने के 14 वर्ष बाद उच्चतम न्यायालय ने अपने ही फैसले की समीक्षा करने का फैसला किया है, जिनकी वजह से यूनियन कारबाइड इंडिया के पूर्व चेयरमैन केशब महिन्द्रा सहित आरोपियों को दो वर्ष के कारावास की मामूली सजा मिली थी.
न्यायालय ने सीबीआई की याचिका पर मामले के सातों आरोपियों से जवाब मांगा है. सीबीआई ने इनके खिलाफ गैरइरादतन हत्या के आरोप बहाल करने की गुजारिश की है, जिसमें 10 वर्ष की अधिकतम सजा का प्रावधान है. विश्व के इस भीषणतम औद्योगिक हादसे में 15000 लोगों की मौत हो गई और हजारों अपाहिज हुए.
बंद कमरे में मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश एस एच कपाडिया और न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर एवं आरवी रवीन्द्रन की पीठ ने सीबीआई द्वारा दाखिल की गई उपचारात्मक याचिका पर सुनवाई करते हुए नोटिस जारी किए. इस याचिका में सीबीआई ने न्यायालय के 1996 के फैसले की समीक्षा की गुहार की है, जिसमें मामले के आरोपियों के खिलाफ आरोप नरम कर दिए गए थे. {mospagebreak}
यह उपचारात्मक याचिका 26 बरस पुराने मामले में अदालत द्वारा दिए गए फैसले पर देशभर में उभरे विरोध के स्वरों को देखते हुए केन्द्र ने अभियुक्तों की सजा बढ़ाने के तरीकों और अन्य कदमों की सिफारिश करने के लिए एक मंत्री समूह का गठन किया. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ए एम अहमदी और न्यायमूर्ति एस बी मजूमदार की पीठ ने मामले में आरोपों को धारा 304 भाग दो से बदलकर धारा 304 ए कर दिया था.
मंगलवार के अदालती फैसले की सूचना अटार्नी जनरल जी ई वाहनवती को दे दी गई है और नोटिस की तामील और उसके बाद की प्रक्रिया पूरी होने पर इस मामले में सुनवाई की जाएगी. सीबीआई ने उच्चतम न्यायालय के 13 सितंबर 1996 के फैसले पर पुनर्विचार की गुजारिश की है, जिसमें महिन्द्रा और छह अन्य के खिलाफ आरोपों को हलका करते हुए ‘दुस्साहसी और लापरवाहीपूर्ण कार्य से मौत’ का आरोप लगाया गया था.
महिन्द्रा के अलावा विजय गोखले, यूसीआईएल के तत्कालीन महानिदेशक, किशोर कामदार, तत्कालीन उपाध्यक्ष जे एन मुलुंद, तत्कालीन निर्माण प्रबंधक एसपी चौधरी, तत्कालीन उत्पादन प्रबंधक के वी शेट्टी, तत्कालीन अधीक्षक और एस आई कुरैशी, तत्कालीन उत्पादन सहायक को दोषी करार देते हुए भोपाल की एक अदालत ने इस वर्ष सात जून को दो वर्ष के कारावास की सजा सुनाई थी. {mospagebreak}
अदालत के इस फैसले के खिलाफ जनता का गुस्सा फूट पड़ा और भोपाल गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले संगठनों तथा राजनीतिक दलों ने इस फैसले के खिलाफ अपील की मांग की. उनका कहना था कि आरोपियों के खिलाफ कानून के नरम प्रावधानों के तहत मुकदमा चलाया गया. सभी आरोपियों पर उच्चतम न्यायालय के भारतीय दंड संहिता की धारा 304 ए के अंतर्गत 1996 के फैसले के अनुरूप मुकदमा चलाया गया था, जिसमें दुस्साहसिक और लापरवाह कार्य से जान लेने पर दो साल की अधिकतम सजा का प्रावधान है.
सीबीआई ने इस मामले को दुर्लभतम बताते हुए उच्चतम न्यायालय से जनहित में अपनी निहित शक्तियों का इस्तेमाल करने और 1996 के फैसले में हुई त्रुटियों को सुधारने का आग्रह किया. शीर्ष अदालत ने 10 मार्च 1997 को एक गैर सरकारी संगठन भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति की याचिका भी खारिज कर दी थी, जिसमें आरोपों को हलका करने के अदालत के 1996 के फैसले की समीक्षा की गुहार लगाई गई थी. {mospagebreak}
निचली अदालत के फैसले के बाद भड़के जनता के गुस्से को देखते हुए भोपाल गैस त्रासदी पर केन्द्र द्वारा बनाए गए मंत्री समूह ने 20 जून को इस आशय की सिफारिश की कि सीबीआई उपचारात्मक याचिका दाखिल करे. इसने यूनियन कार्बाइड के पूर्व सीईओ वारेन एंडरसन के खिलाफ आपराधिक जवाबदेही तय करने और अमेरिका से उसके प्रत्यर्पण की मांग करने का फैसला भी किया गया.
उपचारात्मक याचिका में सीबीआई ने कहा कि 1996 के फैसले में गंभीर त्रुटियां हैं क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 304 भाग दो के तहत लगे आरोपों को निरस्त कर दिया और इस दौरान अभियोजन द्वारा पेश की गई सामग्री पर कोई विचार नहीं किया गया. याचिका में कहा गया है कि इसके अलावा सुनवाई के दौरान ऐसे ठोस सुबूत प्रकाश में आए, जो आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 304 भाग दो के तहत आरोप निर्धारित करने की ओर असंदिग्ध इशारा करते थे.