हत्या के अपराधियों की फांसी पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया फैसला असम के हत्या अपराधी महेंद्रनाथ दास के मामले को प्रभावित कर सकता है. दास की दया याचिका राष्ट्रपति ने वर्ष 2011 में खारिज कर दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले शुक्रवार को दिए अपने एक अहम फैसले में कहा कि कई हत्याओं के अपराधी की दया याचिका के निबटारे में हुई देरी इस बात का आधार नहीं बन सकती कि मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया जाए.
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हत्या अपराधी देवेंद्र पाल सिंह भुल्लर की याचिका के साथ सर्वोच्च न्यायालय ने महेंद्रनाथ दास मामले को चिह्न्ति किया था. भुल्लर को वर्ष 1993 में हुए दिल्ली बम विस्फोट कांड के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी और एक दिन पहले ही सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर अपना अंतिम फैसला सुनाया है.
जोरहाट जेल के एक अधिकारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर आईएएनएस को बताया, 'भुल्लर मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले का असर असम में दास के मामले पर भी पड़ने की संभावना है. हम दास मामले पर अदालत के फैसले का इंतजार कर रहे हैं.'
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अधिकारी ने आगे कहा, 'हम तक यह फैसला आने में 10 दिन से अधिक समय नहीं लगना चाहिए.' अधिकारी ने आगे कहा कि कार्रवाई में थोड़ा समय लग सकता है क्योंकि राज्य सरकार को जल्लाद की व्यवस्था करनी पड़ेगी.
महेंद्रनाथ दास ने गुवाहाटी में 1990 में राजेन दास की हत्या करके पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था. जमानत पर रिहा होने के बाद दास ने 1996 में एक अन्य व्यक्ति हरकंता दास की भी हत्या कर दी थी.
दास को एक निचली अदालत ने वर्ष 1997 में मौत की सजा सुनाई गई थी, जिसे गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने 1998 में बरकरार रखा था. सर्वोच्च न्यायालय ने दास के परिवार की एक याचिका को ठुकरा दिया, जिसमें दास की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने का अनुरोध किया गया था. दास की दया याचिका को राष्ट्रपति ने 2011 में ठुकरा दिया था.
दया याचिका खारिज होने के बाद दास को जोरहाट जेल में स्थानांतरित कर दिया गया.
दास की मां द्वारा गुवाहाटी उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर करने के बाद दास की प्रस्तावित फांसी पर उच्च न्यायालय ने हालांकि रोक लगा दी, मगर सुप्रीम कोर्ट ने पिछले वर्ष दास की याचिका को भुल्लर की याचिका के साथ ही चिह्न्ति किया था.