वर्ष 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम आने से जाते बरस बिहार में हलचल मची रही और सत्तारुढ़ गठबंधन में बीजेपी और जदयू के बीच जमकर शब्द बाण चले. इस दौरान विपक्ष ने भी हमला करने का कोई मौका नहीं छोड़ा.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जून में एक अंग्रेजी अखबार को दिए साक्षात्कार में 2014 के लोकसभा चुनाव में धर्मनिरपेक्ष छवि वाले और सबको स्वीकार्य व्यक्ति को एनडीए का उम्मीदवार बनाए जाने की बात कहकर जदयू और बीजेपी में घमासान मचा रहा. इस घमासान का असर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के समर्थन सहित कई अन्य परिप्रेक्ष्य में प्रदेश में एनडीए की एकजुटता पर भी देखा गया.
गठबंधन के रुख से हटकर राष्ट्रपति चुनाव में प्रणव मुखर्जी को जदयू द्वारा समर्थन, विशेष राज्य के दर्जे के लिए जदयू की अधिकार रैली, महंगाई के विरोध में बीजेवी की रैली पर भी देखा गया.
वर्ष 2011 की तुलना में जाते हुए वर्ष में विपक्ष अधिक सक्रिय रहा और उसने अदालत घाट हादसे में 18 लोगों की मौत, मनरेगा के कथित घोटाले, राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना के तहत महिलाओं के गर्भाशय निकालने के घोटाले, रणवीर सेना के प्रमुख ब्रहमेश्वर मुखिया हत्याकांड जैसे मामलों को उठाकर राज्य सरकार को घेरने का हरसंभव प्रयास किया.
प्रमुख विपक्षी दल राजद, कांग्रेस और लोजपा ने नीतीश सरकार की कथित विफलताओं, भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था के मुद्दे को लेकर राज्य सरकार को घेरने का प्रयास किया. नरेंद्र मोदी का मुद्दा इतना गरम रहा कि नीतीश कुमार ने टकराव की आशंका को देखते हुए गुजरात में जदयू के लिए चुनाव प्रचार से भी अपना पल्ला झाड़ लिया.
मुख्यमंत्री ने अपने आवास पर होने वाले जदयू और बीजेपी कार्यकर्ता दरबार को स्थगित कर दिया. सितंबर के प्रथम सप्ताह में उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने एक अंग्रेजी दैनिक को दिये साक्षात्कार में कहा, ‘नीतीश कुमार में प्रधानमंत्री बनने का दम है.’
बीजेपी नेता के बयान से एक बार फिर खलबली मची. अपने पार्टी के नेता के बयान पर बीजेपी में फिर कोहराम मचा. वहीं मोदी प्रकरण में विपक्ष ने नीतीश को बीजेपी से गठबंधन तोड़ने की चुनौती दी. राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने कहा कि बीजेपी और जदयू के गठबंधन का जल्द ‘तलाक’ होने वाला है.
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के विरोध के बावजूद 15 अप्रैल को मुंबई में बिहार दिवस कार्यक्रम में नीतीश कुमार के भाग लेने को लेकर भी राजनीति गरमाई रही. पहले नीतीश ने कहा, ‘मुंबई जाने के लिए मुझे किसी वीजा की दरकार’ नहीं.’ बाद में दोनों पक्षों ने सुलह सफाई के तेवर दिखाये.
राज्य में मस्तिष्क ज्वर के कारण 299 बच्चों की मौत, गर्भाशय निकालने का कथित घोटाला, और मनरेगा घोटाला भी राज्य की राजनीति को रह रहकर प्रभवित करते रहे. गर्भाशय निकालने के मामले में राज्य सरकार ने कहा कि यह कोई असामान्य बात नहीं है, इसपर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामविलास पासवान ने आरोप लगाया, ‘बिहार में गर्भाशय निकालकर महिलाओं की कोख सूनी करने वाली सरकार है. गर्भाशय निकालने की सीबीआई से जांच होनी चाहिए.’
योजना आयोग से बिहार के वित्तीय वर्ष 2012-13 के लिए 28 हजार करोड़ रुपये के योजना आकार को अनुमति दिलाकर नीतीश सरकार ने विकास की राजनीति की दिशा में एक नयी मिसाल कायम की. 2011-12 में योजना आकार 24 हजार करोड़ रुपये का था.
कटिहार में जुलाई में बीजेपी के विधान पाषर्द अशोक अग्रवाल एक बार फिर चर्चा में आये, उन पर अपने ही पेट्रोल पंप के कर्मचारी की हत्या का आरोप लगा. 2011 में फारबिसगंज में गोलीकांड में अल्पसंख्यकों की मौत के मामले में भी अग्रवाल का नाम आया था.
जुलाई में पटना में राजवंशी नगर में एक किशोरी के साथ गैंगरेप और उसका एमएमएस बनाकर प्रसारित करने के मामले में भी राजनीति गर्म रही. विधानमंडल में विपक्ष ने दोनों सदनों में इस मामले को लेकर हंगामा किया और सत्तापक्ष के एक विधायक पर आरोप लगाया कि सरकार उसे बचा रही है.
सितंबर में अनुबंधित शिक्षकों का मुद्दा गरमा गया. अधिकार यात्रा के क्रम में जिले में अधिकार सम्मेलन के लिए निकले नीतीश कुमार की सभाओं में शिक्षकों ने हंगामा किया. राजद ने इसे राजनीतिक मुद्दे के रूप में भुनाने की कोशिश की.
बिहार में सत्तापक्ष को जाते हुए वर्ष में अपने ही नेताओं के आक्रामक हमलों का सामना करना पड़ा. पूर्णिया से बीजेपी सांसद उदय सिंह ने वेदना रैली निकालकर नीतीश के नेतृत्व पर हमला बोला, जदयू के एक विधायक छेदी पासवान ने नीतीश कुमार पर भ्रष्टाचार का सरकारीकरण करने का आरोप लगाया.
राजद से जदयू में शामिल हुए सीमांचल के नेता मोहम्मद तस्लीमुद्दीन ने भी नीतीश सरकार पर हमला बोला. तस्लीमुद्दीन एक बार फिर राजद में लौट गए. अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में मधुबनी में हिंसा का तांडव हुआ. विपक्ष ने इस मुददे को लेकर बिहार बंद का आयोजन किया. एक छात्र की मौत की आशंका को लेकर उपद्रव हुआ जो बाद में अपनी प्रेमिका के साथ दिल्ली में मिला.
अक्टूबर के अंत में जदयू के पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला द्वारा जेल के भीतर से एक निजी इंजीनियरिंग कालेज के निदेशक से कथित तौर पर दो करोड़ रुपये की रंगदारी मांगने का मुद्दा चर्चित हुआ. जाते हुए बरस में बिहार को कई राजनीतिक नेताओं का बिछोह सहना पड़ा. बीजेपी के वयोवृद्ध नेता कैलाशपति मिश्र, जदयू के वरिष्ठ विधायक रामसेवक हजारी (समस्तीपुर) और जदयू के वरिष्ठ नेता शकील अहमद खान का निधन हो गया.