दिल्ली की साकेत कोर्ट बिहार के मुजफ्फरपुर के शेल्टर होम में लड़कियों के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न के मामले में अपना फैसला सुनाने जा रही है. इस मामले में मुख्य आरोपी बृजेश ठाकुर है. बृजेश के साथ-साथ इस पूरे मामले में कुल 20 आरोपी हैं जिन पर पॉक्सो समेत कई गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ था. बृजेश ठाकुर के मुजफ्फरपुर के शेल्टर होम में काम करने वाले कर्मचारी और सामाजिक कल्याण विभाग के अधिकारी भी इस मामले में आरोपी हैं.
इस पूरे मामले की शुरुआत पिछले साल फरवरी, 2018 में तब हुई जब टाटा इंस्टीट्यूट सोशल साइंस की टीम द्वारा मुजफ्फरपुर शेल्टर होम को लेकर दी गयी ऑडिट रिपोर्ट बिहार के समाज कल्याण विभाग को दी गयी. टाटा इंस्टीट्यूट सोशल साइंस की रिपोर्ट के आधार पर ही मुजफ्फरपुर शेल्टर होम में रह रही बच्चियों को पटना और मोकामा के साथ अन्य बालिका गृह में ट्रांसफर किया गया और साथ ही अनियमितता को लेकर FIR में दर्ज की गई थी.
लेकिन इस मामले में पिछले साल हड़कंप तब मचा जब मेडिकल रिपोर्ट में 42 में से 34 बच्चियों से दुष्कर्म की पुष्टि हो गई. जब इस मामले की राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया रिपोर्टिंग हुई तो उसमें यह भी साफ हुआ कि बृजेश ठाकुर ने राजनीतिक संपर्क का इस्तेमाल करके लड़कियों का शोषण किया भी और कराया भी.मामला बढ़ने पर पिछले साल जुलाई में मुजफ्फरपुर बालिका गृह रेप मामले में सीबीआई ने आरोपी अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था.
उसके बाद यह मामला इतना बढ़ गया कि सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद इस पूरे मामले को ही बिहार से दिल्ली ट्रांसफर कर दिया गया.सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 23 फरवरी से इस मामले की साकेत कोर्ट में नियमित सुनवाई चल रही थी. सुप्रीम कोर्ट ने छह महीने में ट्रायल पूरा करने का निर्देश दिया था. सितंबर में साकेत कोर्ट ने इस पूरे मामले में सुनवाई पूरी करने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था.
सुनवाई के दौरान इस मामले में यौन उत्पीड़न की शिकार हुई शेल्टर होम में रहने वाली बच्चियों के बयान भी कोर्ट ने खासतौर से उन्हें प्रोटक्शन देकर दर्ज करवाएं. इन सभी लड़कियों को दिल्ली बुलाया गया था ताकि वह बिना किसी दबाव के अपने बयान जज के सामने दर्ज करा सके. इस पूरे मामले की संवेदनशीलता और बच्चियों की सुरक्षा को देखते हुए सुनवाई से जुड़ी ज्यादातर जानकारियों को मीडिया में भी सार्वजनिक नहीं किया.