बिहार में चमकी बुखार से मरने वाले बच्चों का आंकड़ा 150 पार कर चुका है. प्रदेश के सीएम नीतीश सरकार के पास इसका जवाब नहीं है. सुशासन के दावे वाले नीतीश कुमार के राज में बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था कैसी है इसका अंदाजा आप यहां के सरकारी अस्पतालों का हाल देखकर लगा सकते हैं.
राजधानी पटना के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल पटना चिकित्सा मेडिकल कॉलेज यानी पीएमसीएच जिसे बिहार का एम्स भी कहा जाता है, वहां पर स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है. पीएमसीएच के मेडिसिन इमरजेंसी विभाग में दूरदराज से आने वाले मरीजों का इलाज होता है, लेकिन कमरे का हाल देखकर ऐसा लगता है कि बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था खुद ही इमरजेंसी में चली गई है.
आपात व्यवस्था वाले हॉल में एयर कंडीशन काम नहीं करता. पूरे हॉल में महज 2 पंखों पर 30 मरीज और उनका परिवार निर्भर हैं. छत का हिस्सा कई जगहों से टूटा है.
गर्मी से मरीजों का बुरा हाल
छतों पर लगे जाले बिहार के बीमार अस्पतालों की कहानी कहते हैं. आजतक से बातचीत करते हुए वार्ड में ड्यूटी कर रही एक नर्स ने बताया कि यह कमरा ठंडा होना चाहिए, लेकिन दो पंखों के सहारे न सिर्फ मरीज और उनके परिवार बल्कि डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ को भी समस्या का सामना करना पड़ता है.
मरीजों के परिजनों का कहना है कि ज्यादातर लोगों को अपना पंखा हाथ में खुद लेकर आना पड़ता है. नालंदा से आए एक मरीज संतोष के परिवार का कहना है कि उन्हें ना एंबुलेंस मिली और ना ही अस्पताल में बेड मिला.
दूसरे मरीजों के परिवारवालों का कहना है कि यहां बेड भी नहीं मिलता. इस वार्ड की प्रशासनिक व्यवस्था देख रहीं डॉक्टर सीमा कहती हैं कि चुनौतियां भले ही हों लेकिन डॉक्टर हर चुनौती से निपटते हैं. परिजनों के अपशब्द भी सुनते हैं, सुविधाएं नहीं हैं फिर भी किसी मरीज को ना नहीं कहते.
अस्पताल में नहीं मिलती दवाइयां
आईसीयू के फ्लोर पर ही न्यूरो विभाग है. कमरे के बाहर कई सारे मरीज फर्श पर लेटे दिखाई दिए. इन सबको वार्ड में स्थानांतरित किया जाएगा. परिवार के लोग वार्ड के बाहर सीढ़ियों पर इंतजार करते हैं. वार्ड में इलाज करवा रहे मरीजों के परिवार का आरोप है कि अस्पताल से दवाइयां नहीं मिलतीं.
सीवान के रहने वाले सूजन महतो ने कहा कि डॉक्टर दवाइयां बाहर से लाने के लिए कहते हैं. वे कहते हैं कि जिन मरीजों के पास आयुष्मान कार्ड है उन्हें सारी दवाइयां और सारी सुविधाएं अस्पताल में दी जाती हैं.
न्यूरो विभाग में काम करने वाले डॉक्टर अनिल के मुताबिक मरीजों को ज्यादा से ज्यादा दवाइयां अस्पताल में मुहैया कराई जाती हैं. बहुत कम केस में ऐसा होता है जब दवाई मरीज के परिवार को बाहर से लानी पड़े.
बच्चों के इमरजेंसी वार्ड में इस मौसम में बीमारियां बढ़ जाती हैं. वार्ड में जगह नहीं होती इसलिए अस्पताल प्रशासन ने अस्पताल के गलियारे को ही वार्ड बना दिया.
मेडिकल स्टाफ कहता है मैन पावर की कमी होने के बावजूद वे मरीजों के इलाज से पीछे नहीं हटते. डॉक्टर और नर्स कहते हैं कि किसी बच्चे को ना नहीं कर सकते इसलिए जहां जगह मिली वहीं बिस्तर लगाकर उन्हें इलाज की व्यवस्था तुरंत करते हैं.
पीएमसीएच अस्पताल के सुपरिटेंडेंट डॉ राजीव रंजन भी मानते हैं कि अस्पताल में सुविधाओं की कमी है, लेकिन दावा करते हैं कि वह अपनी क्षमता से कहीं ज्यादा काम कर रहे हैं.
उनका कहना है कि हम लगातार चीजों को बेहतर करने की कोशिश कर रहे हैं. सरकार की योजना है कि पटना मेडिकल कॉलेज को विश्व के सबसे बड़े अस्पताल के रूप में बनाया जाए. सरकार इसपर गंभीरता से काम कर रही है.
पटना के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में जहां डॉक्टरों की संख्या 275 होनी चाहिए वहां महज 200 डॉक्टर हैं. ये मेडिकल छात्रों को पढ़ाते भी हैं और इलाज भी करते हैं. नर्सिंग स्टाफ में जहां 1200 कर्मचारियों की जरूरत है वहां 1000 नर्सिंग स्टाफ हैं. जिस पटना चिकित्सा मेडिकल कॉलेज में आसपास के सभी जिलों के मरीज आते हैं वहां कम से कम 3000 बेड की आवश्यकता है, लेकिन फिलहाल 2000 बेड ही मौजूद हैं. अस्पताल को कम से कम 25 एंबुलेंस की जरूरत है, लेकिन फिलहाल 15 एंबुलेंस ही मौजूद हैं.