पश्चिम बंगाल के सरकारी पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल कॉलेज एसएसकेएम के निदेशक डॉ. प्रदीप मित्रा ने अपने वॉलंटरी रिटायरमेंट की पेशकश की है. मित्रा का आरोप है कि उनका बिना किसी ठोस वजह से न सिर्फ ट्रांसफर किया गया बल्कि एक कुत्ते का डायलिसिस रोकने के कारण अपमानित भी किया गया.
मामला जितना दिलचस्प है, उतना ही दुर्भाग्यपूर्ण भी. क्योंकि जिस पेशे को समाज के लिए जरूरी मानते हुए दिल्ली सरकार ने ESMA लागू किया, उसी पेशे को तृणमूल कांग्रेस के नेता डॉ. निर्मल माझी की राजनीतिक शक्ति ने घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. निर्मल माझी राज्य मेडिकल काउंसिल के प्रमुख हैं और 10 जून को अस्पताल में डायलिसिस के लिए आया कुत्ता भी नेता जी का ही था.
डॉ. मित्रा के जीवन की शायद यह सबसे बड़ी भूल है कि उन्हें वीआईपी कल्चर का व्यवहारिक अर्थ नहीं पता. डॉक्टर साहब को समझना चाहिए था कि नेताजी वीआईपी हैं तो उनका प्यारा डॉगी भी उतना ही रसूखवाला होगा. जाहिर तौर पर मामले की चर्चा को पंख तब लगे, जब मीडिया में बात शुरू हुई. तब समय रहते आदरणीय नेताजी ने कहा, 'वह एक प्यारा कुत्ता है और तकलीफ में है तो उसका इलाज क्यों न हो?'
यह वाजिब भी है, क्योंकि अस्पताल में सुविधा नहीं होने के कारण जनता भले तकलीफ सह ले, नेताजी का कुत्ता क्यों सहे. और फिर डॉ. मित्रा ने ब्लंडर करते हुए कारण भी तो यही बताया कि अस्पताल में जानवरों के डायलसिस की सुविधा नहीं है.
...और पलट गए नेता जी
वैसे, मामले ने जोर पकड़ा तो नेताजी माझी की पकड़ ढीली पड़ने लगी. जब मामले में उनसे दोबारा सवाल किया तो उन्होंने कुत्ते से ही पल्ला झाड़ लिया. निर्मल माझी ने कहा, ‘मेरा किसी कुत्ते से कोई लेना-देना नहीं है. ये खबर मुझे बदनाम करने के लिए फैलाई जा रही है.'
क्या हुआ था तब
बताया जाता है कि 10 जून को जब बीमार कुत्ते को अस्पताल लाया गया था, तब नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. राजन पांडेय के फोन पर आदेश दिए जाने के बाद कुत्ते को अस्पताल में भर्ती कर लिया गया था. डॉ. पांडेय ने डॉ. मित्रा को एसएमएस भेजा, जिसमें लिखा था, 'वीआईपी कुत्ते को डायलिसिस की जरूरत है.' डॉ. मित्रा के मुताबिक, ‘इसके तुंरत बाद अस्पताल की सीनियर नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. अर्पिता रॉय चौधरी ने उनसे कुत्ते की डायलिसिस के लिए संपर्क किया.
डॉ. मित्रा ने कहा, ‘मैंने तुरंत इसे रोकने का आदेश दिया और पूछा कि ये किसके आदेश पर किया जा रहा है. तब मुझे बताया गया कि ये विभागाध्यक्ष के आदेश पर किया जा रहा है और लॉग बुक में भी रजिस्टर्ड है.' अस्पताल के लॉग बुक में 10 जून की तारीख में 13 नंबर में, ‘एक बिना नाम के कुत्ते’ की एंट्री होने की बात कही है.
डॉ. मित्रा का ट्रांसफर
घटना के 13 दिनों के बाद 23 जून को डॉ. मित्रा का ट्रांसफर कर दिया गया. हालांकि, स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक, यह एक रूटीन ट्रांसफर है, लेकिन डॉ. मित्रा का कहना है कि वो 33 साल से हेल्थ सर्विस में हैं और इस तरह का ट्रांसफर होना सामान्य नहीं है.
सीएम के अधीन है स्वास्थ्य मंत्रालय
प्रदीप मित्रा सात वर्षों तक एसएसकेएम के निदेशक के पद पर रह चुके हैं. उन्होंने सरकार से इस मामले की जांच की मांग की है, लेकिन अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया. मित्रा से जब पूछा गया कि उन्होंने इस मामले की शिकायत मुख्य़मंत्री ममता बनर्जी से क्यों नहीं की तब उन्होंने कहा, ‘ये ट्रांसफर ऑर्डर उनकी मर्जी के बगैर नहीं आ सकता था.' पश्चिम बंगाल में स्वास्थ्य मंत्रालय सीएम ममता बनर्जी के ही पास है.