भारतीय जनता पार्टी ने अपने शिखर पुरुष, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की याद में एक भव्य स्मारक बनाने का फैसला किया है. यह स्मारक बापू की समाधि राजघाट के पास राष्ट्रीय स्मृति स्थल पर बनेगा, जहां भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का अंतिम संसकार 17 अगस्त को संपन्न हुआ था.
पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के समाधि स्थल का निर्माण कार्य 15 सितंबर के बाद शुरू होगा. बीजेपी की मंशा थी कि इस स्मारक का कार्य इसी वर्ष 25 दिसंबर को वाजपेयी के 94वें जन्म दिवस तक पूर्ण कर लिया जाए. लेकिन जिस टीम को इस विशाल समाधि का कार्य सौंपा गया है, उसके हिसाब से निर्माण का कार्य 26 जनवरी 2019 तक ही पूरा हो पाएगा. सूत्रों के मुताबिक इस स्मारक का उद्घाटन अगले गणतंत्र दिवस पर होगा.
राजनीतिक दृष्टिकोण से यह समय अप्रैल-मई 2019 के नजदीक होगा जिसका लाभ बीजेपी लेना चाहेगी. और इस स्मारक के निर्माण के साथ बीजेपी का अपना राजघाट होगा. राष्ट्रीय स्मृति स्थल पर बनने वाली वाजपेयी की समाधि उनसे जुड़ी स्मृतियों का सबसे अहम स्थल होगा. क्योंकि माना जा रहा है कि 6, कृष्ण मेनन मार्ग जहां पूर्व प्रधानमंत्री ने अपने जीवन का लंबा समय व्यतीत किया उसे किसी मेमोरियल में तब्दील नहीं किया जाएगा.
गणतंत्र दिवस, 2019 के कार्यक्रम के मु्ख्य अतिथि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि राजघाट पर श्रद्धांजली देने के अलावा वाजपेयी को श्रद्धा सुमन अर्पित कर सकते हैं. बता दें कि इस गणतंत्र दिवस में मुख्य अतिथि के तौर पर मोदी सरकार नें अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को निमंत्रण दिया है. जिसकी अमेरिका की तरफ से स्वीकृति होनी अभी बाकी है.
गौरतलब है कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने साल 2000 में एक कैबिनेट नोट के जरिए किसी भी राष्ट्रीय नेता के सरकारी बंगले को स्मृति स्थल में तब्दील करने पर पाबंदी लगा दी थी. अक्टूबर 2014 में मोदी सरकार ने भी इस फैसले को बरकरार रखा. यह फैसला तब लिया गया था जब पूर्व केंद्रीय मंत्री अजीत सिंह ने 12, तुगलक रोड स्थित बंगले को अपने पिता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का स्मृति स्थल बनाए जाने की मांग की थी.
बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के स्मृति स्थल कांग्रेस नेताओं के लिए एक बड़ा प्रतीक स्थल है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का यह स्मारक बीजेपी की इस कमी को पूरा करेगा.
उल्लेखनीय है कि साल 2013 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने राष्ट्रीय स्मृति स्थलो का विकास सभी राष्ट्रीय नेताओं जिनमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री शामिल हैं के अंतिम संस्कार करने के स्थल के रूप में किया था.