मुलायम सिंह यादव की राजनीति पहाड़ों की बारिश जैसी है जो कभी भी और कहीं भी बरस सकती है. इसमें बदलाव अंतिम फैसलों के बाद भी हो जाते हैं. लेकिन फिलहाल समाजवादी पार्टी राजनीति के जिस मुहाने पर खड़ी है, वहां से वापसी के रास्ते कम हो जाते हैं.
वापसी किसी के लिए भली भी नहीं है. न तो अखिलेश के लिए और न ही मुलायम सिंह यादव के लिए. क्योंकि जो नुकसान अब पार्टी को हो चुका है उसकी भरपाई किसी भी मेलजोल से होने वाली नहीं है. बल्कि और अधिक नुकसान तय है.
लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में सबसे ज़्यादा फायदा अगर किसी को हो सकता है और किसी के लिए अगर यहां से सकारात्मक गुंजाइश बनती नज़र आ रही है तो वो है भारतीय जनता पार्टी.
भारतीय जनता पार्टी इस पूरे घटनाक्रम को सपा का आंतरिक मामला बता रही है और अस्थिरता की दुहाई देकर इस्तीफे की मांग कर रही है. भाजपा प्रवक्ताओं ने सपा के अंतर्कलह की बारिश में विकास का राग गाना शुरू कर दिया है. इसके पीछे का मंतव्य भी साफ समझ आ रहा है.
दूसरों की कमज़ोरी का लाभ
दरअसल, अखिलेश जिस तैयारी के साथ चुनाव को आगे लेकर बढ़े थे वो सपा के लिए एक अच्छा संकेत था. अच्छा इसलिए क्योंकि बिहार की तर्ज पर भाजपा को प्रदेश में रोकने के लिए सपा, कांग्रेस और कुछ अन्य राजनीतिक दलों का गठजोड़ एक मज़बूत विकल्प बनकर उभरने वाले थे. इस गठजोड़ से मोदी और मायावती दोनों ही बेचैन थे.
मोदी इसलिए क्योंकि इस गठजोड़ में बिहार की पुनरावृत्ति की संभावना निहित थी और मायावती इसलिए क्योंकि उनकी इसबार की दलित-मुस्लिम वोटबैंक वाली कैमिस्ट्री इस गठबंधन के बाद विफल होती नज़र आ रही थी.
अब जबकि अस्थिरताओं के बादलों ने सूबे को ढक लिया है, भाजपा कमज़ोर पड़ती क्षेत्रीय पार्टियों के बीच खुद को एक स्थाई और बेहतर विकल्प के तौर पर प्रस्तुत करना चाहेगी. महागठबंधन के प्रयोग से चिंतित भाजपा के लिए मुलायम सिंह यादव की प्रेस कांफ्रेंस निश्चय ही एक अच्छी घोषणा थी.
मायावती केवल दलित-मुस्लिम वोटबैंक के सहारे बहुत दूर तक खेलने की स्थिति में नहीं हैं. उनके कमज़ोर पड़ने से दलितों का भी एक हिस्सा भाजपा की ओर स्थिरता और हिंदुत्व जैसे नारों के ज़रिए आकर्षित हो सकता है.
क्यों फायदे में है भाजपा
उधर अखिलेश और मुलायम अगर मैदान में अकबर और सलीम की तरह भिड़ने के लिए खड़े हो गए तो एक दूसरे के वोट काटने के अलावा ये कहीं तक पहुंच पाने की स्थिति में फिलहाल नहीं दिखते. इस राजनीतिक अराजकता का सीधा लाभ दो पार्टियां ले सकती हैं. एक कांग्रेस और दूसरी भाजपा.
लेकिन कांग्रेस खुद डायलेसिस पर चल रही पार्टी जैसी है और उसके लिए यह अवसर दूर की कौड़ी है. इसलिए इस त्रिकोणमिति में सबसे ज़्यादा लाभ फिलवक्त भाजपा को ही होता नज़र आ रहा है और वो इसे भुनाने से चूकेंगे नहीं.
नोटबंदी पर अपनी किरकिरी करा चुकी पार्टी अब अस्थिरता और कुनबे की लड़ाई को अपना मंत्र बनाकर लोगों के बीच जाएगी और स्थिरता और विकास जैसे नारों के साथ वोट मांगेगी. हालांकि सपा और मुलायम बहते हुए पानी जैसी राजनीति के लिए जाने जाते हैं और कोई भी तस्वीर अंतिम नहीं होती. लेकिन जो नुकसान सपा को हो चुका है, उसे भुनाने से भाजपा क्योंकर चूके.
सपा की लड़ाई सूबे में भाजपा के लिए अच्छे दिन का संकेत हैं.