हम हिंदी प्रदेश के हैं. अंग्रेजी, किताबों में पढ़कर सीखी. सीखा कि जॉली का मतलब होता है विनोदी स्वभाव का होना. स्वस्थ मजाक कर अपने आस-पास के माहौल को खुशनुमा रखने वाले लोग जॉली कहे जाते हैं.
कभी घर में कोई बोल देता, बड़े जॉली नेचर का है लड़का, तो दिल खुश हो जाता. फिर आपका नाम सुना. कुछ बरस पहले आप विधायक थे विजय जॉली. फिर पिछले विधानसभा चुनाव में शीला दीक्षित को हराने के लिए गोल मार्केट विधानसभा पहुंच गए. आपका दांव आधा सही रहा. खूब प्रचार मिला. मुझे अब भी ध्यान है कि प्रचार के दौरान आप शीला का आशीर्वाद लेने पहुंचे थे. लगा कि अरे ये तो अच्छा राजनीतिक शिष्टाचार है. राजनीति के वे दिन याद आ गए, जब अटल बिहारी, चंद्रशेखर, वीपी सिंह और राजीव गांधी सरीखे लोग इस शिष्टाचार का ख्याल रखते. अटल के इलाज का पता चलने पर राजीव उन्हें प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर अमेरिका भेजते. वीपी के डायलिसिस का पता चलने पर अटल एम्स के लिए सर्वोत्तम मशीन मंगवाते. लेकिन नहीं, मैं गलत था.
लगता तो यही है कि आप प्रचार के भूखे हो और इसके लिए बहरूपियों की तरह हरकतें भी करते हो. अभी पिछले दिनों आप ही थे न, जो प्याज की टोकरी लेकर शीला दीक्षित से दीवाली पर मिलने गए थे. तब भी बस यही ख्याल आया. ओहो बड़ा जॉली लीडर है ये. मगर यह क्या, आज तो आपने प्रचार की खातिर हद पार कर दी.
चलो पहले आपको और सबको बताएं कि आपने आखिर किया क्या. एक पत्रकार हैं. शोमा चौधरी नाम है उनका. तहलका की प्रबंध संपादक. कुछ हफ्ते पहले तक महिला अधिकारों की चैंपियन बनी फिरती थीं. कभी किसी टीवी चैनल पर, तो कभी किसी फेस्ट में. मगर जब से तहलका के संपादक तरुण तेजपाल के हाथों संस्थान की ही एक महिला पत्रकार के यौन उत्पीड़न का मामला सामने आया, आपकी इस मसले पर प्रतिक्रिया सामने आई, हमें समझ आ गया कि एक और कलई उतर गई. हमने-सबने शोमा के पत्रकारिता के मूल्यों पर सवाल उठाए. आलोचना की और उन्हें विचारों के कटघरे में खड़ा किया. तेजपाल की इस शर्मनाक हरकत पर शुरुआती सतर्कता के बाद मीडिया ने भी खूब कवरेज की. ऐसे में तेजपाल तो आज नहीं तो कल पुलिस की गिरफ्त में होंगे ही. शोमा की भूमिका की पुलिस जांच की भी बात उठने लगी है. मगर...आपने जो किया वह... यहीं आकर हमारे विरोध और आपकी बद्तमीजी में बड़ा फर्क हो जाता है.
शोमा चौधरी से गोवा पुलिस पूछताछ कर चुकी है. उन्होंने पुलिस के सवालों के जवाब दिए. मीडिया के सवालों के जवाब दे रही हैं और फरार नहीं हैं. उन्हें कोई समन जारी नहीं हुआ है. फिर आप किस बात के कोतवाल बने फिरते हो विजय जॉली. अपने चंद समर्थकों को साथ लेकर आप शोमा चौधरी के घर गए. विरोध के पहले रिपोर्टरों को इत्तला किया. जब कैमरे जुट गए, तो लगे तमाशा करने. आपको ये भी ध्यान नहीं रहा कि एक महिला के खिलाफ अपराध के लिए आप जिन शोमा चौधरी के घर पर बद्तमीजी कर रहे हैं, वह भी एक महिला हैं और आप उनकी गरिमा भंग कर रहे हैं.
कैसा जाहिलों जैसा बयान है यह. शोमा चौधरी को साकेत के लोग और दिल्ली के नौजवान जहां पाएंगे, पकड़ लेंगे और पुलिस के हवाले कर देंगे. चश्मा तो आप लगाते नहीं. तो ये भी नजर आ ही रहा होगा कि जब आप और आपके साथी वहां गुंडई कर रहे थे, तब शोमा को पुलिस सुरक्षा में ही अपनी कार तक जाना पड़ा. तो फिर हवाले करने की बात कहां से आ गई. वह तो पहले से ही हैं. आपने कालिख शोमा चौधरी की नेम प्लेट पर नहीं, अपने पॉलिटिकल करियर पर पोत ली है. और इस कालिख के छींटे आपकी पार्टी बीजेपी पर भी पड़े हैं. इसीलिए तो सुषमा स्वराज ने फौरन प्रतिक्रिया देते हुए आपके कृत्य की कड़ी निंदा की और आलाकमान की ओर से कार्रवाई का जिक्र भी किया.
मगर नुकसान तो हो चुका है. अभी सुबह तक अखबार और सुर्खियां इस बात की थीं कि आपकी पार्टी ने डॉक्टर हर्षवर्धन को सीएम के लिए प्रोजेक्ट क्या किया, बीजेपी का हाल ही बदल गया. पार्टी अब तकरीबन हर ओपिनियन पोल में नंबर वन नजर आ रही है. हर्षवर्धन भी पहली पसंद हैं. आज ही की बात है, जब एक बड़े अंग्रेजी अखबार के पहले पन्ने पर उनकी मुस्कुराती सी तस्वीर नजर आई. वह एक मां के गोद में बैठे बच्चे का कान जांच रहे थे. नेता नहीं, डॉक्टर की हैसियत से. आप भी उनके पास जाइए. कान, आंख और नाक का इलाज करवाइए. लगता है कि राजनीतिक संभावना और कलंक के बीच का फर्क देखने, सूंघने और सुनने की क्षमता खो बैठे हैं आप.
जॉली, हमें यह कहने में गुरेज नहीं कि आपकी यह हरकत शर्मनाक है. शोमा पर लगे आरोप अगर सही हैं, तो उन्होंने निश्चित ही गलत किया है. एजेंसी और इंटेलिजेंस अपना काम कर रहे हैं. मगर आपने शोमा के साथ जो किया, वह एक नेता को कतई शोभा नहीं देता.
सो मिस्टर जॉली, यू आर नॉट एट ऑल जॉली. एक महिला के घर पर कालिख पोतते और नौटंकी करते हुए आपका सिर शर्म से नहीं झुका, पर इस देश की राजनीतिक जमात और उन्हें चुनने वालों का सिर जरूर झुक गया है.