कोरोना संकट के बीच नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के दूसरे कार्यकाल का एक साल पूरा होने जा रहा है. इस एक साल के दूसरे कार्यकाल के दौरान मोदी सरकार की कई उपलब्धियां रही हैं, लेकिन केंद्र बनाम राज्य के बीच छत्तीस का आंकड़ा भी देखने को मिला. हालांकि, छह साल पहले जब नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम से देश के पीएम की कुर्सी पर काबिज हुए थे तो उन्होंने कहा था कि हम राज्य सरकारों से साथ टीम इंडिया की तरह मिलकर काम करेंगे, लेकिन मोदी सरकार के कार्यकाल में पश्चिम बंगाल से लेकर पुडुचेरी तक की राज्य सरकारों के बीच टकराव की स्थिति देखने को मिली है.
ममता और मोदी सरकार आमने-सामने
देश की सत्ता में मोदी सरकार के आने के बाद से ही केंद्र और पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा है. शारदा चिटफंड मामले से लेकर कोरोना संकट में केंद्रीय टीम भेजने को लेकर केंद्र और राज्य सरकार की बीच टकराव साफ दिखा है. चिटफंड केस में सीबीआई टीम को बंगाल भेजने की कार्रवाई को लेकर सीएम ममता बनर्जी सड़क पर उतरते हुए मोदी सरकार के खिलाफ धरने पर बैठ गई थीं. ऐसे ही कोरोना संकट में केंद्रीय टीम को जायजा लेने के लिए भेजा गया तो ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री की बैठक में इस मामले को उठाया. इसके अलावा पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और ममता सरकार के बीच भी आए दिन टकराव साफ देखा जा सकता है.
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पश्चिम बंगाल एक मात्र राज्य नहीं है जिसके साथ केंद्र की मोदी सरकार से टकराव की स्थिति बनी हुई है. ऐसे ही हालात पुडुचेरी कांग्रेस सरकार और मोदी सरकार के बीच भी रिश्ते बेहतर नहीं रहे हैं. उप-राज्यपाल किरण बेदी और राज्य सरकार कई बार आमने-सामने खड़ी नजर आई हैं. किरण बेदी ने उपराज्यपाल बनते ही पुडुचेरी के कामकाज में सीधे दिलचस्पी और दखल शुरू कर दिया. किरण बेदी ने फाइलों को सीधे अपने दफ्तर में मंगाना शुरू कर दिया था और उन पर अधिकारियों को निर्देश देने के आरोप भी लगे थे. ऐसे ही महाराष्ट्र में भी राज्यपाल पर सरकार के कामकाज में दखल करने का आरोप शिवसेना और एनसीपी ने लगाया. वहीं, दिल्ली की अरविंद केजरीवाल की पिछली सरकार और केंद्र सरकार के बीच टकराव सड़क तक नजर आया था.
मोदी सरकार भी नहीं कर सकी टीम इंडिया की तरह काम
वरिष्ठ पत्रकार रजीव रंजन नाग ने कहा कि भारत की विशालता, विविधता और व्यापकता को देखते हुए और आज के प्रतिस्पर्धी और राजनीतिक-आर्थिक रूप से संवेदनशील माहौल में सभी राज्यों के लिए एक सी नीति या एक सा फैसला लागू नहीं किया जा सकता. हो सकता है कि कोई फैसला किसी एक राज्य के लिए सही हो लेकिन दूसरे राज्य के हितों से टकराता हो, तो इससे संघवाद की भावना पर ही असर पड़ेगा. केंद्र-राज्य संबंधों में गतिरोध की एक प्रमुख वजह वित्त आयोग की कुछ फंड आवंटन की नीतियां भी रही हैं.
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राजीव रंजन कहते हैं कि 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीम इंडिया वाली जो बात कही थी, उस पर एक साल भी कायम नहीं रह सके. सत्ता में आते ही पहले कांग्रेस शासन में नियुक्त किए गए राज्यपालों को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया. इसके बाद कई गैर बीजेपी शासित राज्यों की सरकार को अस्थिर करने का काम किया गया. केंद्र की मोदी सरकार ने अरुणाचल और उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार को बेदखल कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया था.
केंद्र के कानून के खिलाफ राज्य सरकारें खड़ी हुईं
मोदी सरकार द्वारा सीएए को पारित किया गया तो देश के 19 राज्यों की सरकारों ने इसे लागू करने के खिलाफ अपनी विधानसभाओं में प्रस्ताव पास कर दिए थे. सबसे पहले केरल ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाते हुए अनुच्छेद 131 का हवाला दिया था, जिसके तहत केंद्र और राज्यों के आपसी विवादों में सुप्रीम कोर्ट को ही आखिरी निर्णय देने का प्रावधान है. इसमें बीजेपी की सहयोगी बिहार की नीतीश सरकार भी शामिल रही थी. मोदी सरकार 2.0 में मोटर वाहन अधिनियम में किए गए भारी भरकम बदलावों को अस्वीकार कर कई राज्यों ने इस कानून को शिथिल और लचीला बना दिया था. जीएसटी के भुगतान को लेकर केंद्र और राज्य के बीच लगातार टकराव की स्थिति बनी रहती है.
कोरोना संकट में मुख्यमंत्रियों की बैठकें कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह बताने की कोशिश की है कि राज्यों को भरोसे में लेकर ही बड़े फैसले किए जा रहे हैं. लेकिन गैरबीजेपी शासित राज्यों ने केंद्र के रवैये को लेकर असंतोष जाहिर किया. लॉकडाउन से जुड़े नियम-कायदों को लेकर, उद्योगों में काम बहाली या बंदी को लेकर, और केंद्रीयकृत जांच अभियानों के जरिए राज्यों से जवाबतलबी को लेकर कुछ राज्यों ने अपने अधिकारों में दखल और कार्यक्षमता पर सवाल उठाने की मंशा की तरह लिया. राज्यों की राहत पैकेज की मांग भी अब तक कार्रवाई का इंतजार कर रही है.
केंद्र और राज्य आपसी समन्वय के लिए परिषद का गठन
बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 263 के जरिए ऐसा रास्ता बनाया गया था, जहां केंद्र और राज्य आपसी समन्वय को सुदृढ़ कर सकें. केंद्र-राज्य संबंधों पर सरकारिया आयोग की रिपोर्ट के बाद 1990 में राष्ट्रपति के आदेश के जरिए अंतरराज्यीय परिषद के गठन को मंजूरी दी गई, जिसमें अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री और सदस्यों के रूप में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री, केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासक और छह केंद्रीय मंत्री शामिल थे. लेकिन पिछले तीन दशकों में परिषद की महज छह बैठकें ही हो पाईं हैं. आखिरी बैठक नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए सरकार के पिछले कार्यकाल के दौरान नवंबर 2017 में हुई थी.
केंद्र में दोबारा एनडीए सरकार बनी तो अगस्त 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में अंतरराज्यीय परिषद का पुनर्गठन किया गया. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में परिषद की स्टैंडिग कमेटी का भी पुनर्गठन किया गया है. कोरोना संकट में पीएम मोदी अभी तक राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ चार बार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए चार बार वार्ता कर चुके हैं. दिलचस्प बात ये है कि पीएम मोदी ने कहा था कि वो खुद एक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं और वह केंद्र के रवैये को देख चुके हैं. ऐसे में वो राज्य सरकारों के साथ बेहतर तालमेल बनाकर चलेंगे. लेकिन सत्ता में आने के बाद कांग्रेस की तरह ही मोदी सरकार पर भी राज्यों के साथ टकराव की स्थिति देखी गई.