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13 प्वाइंट रोस्टर: SC/ST-OBC आरक्षण पर फंसी मोदी सरकार, कल आ सकता है अध्यादेश

पुलवामा हमले के जवाब में पाकिस्तान पर एयरस्ट्राइक का जो फायदा सरकार को मिलता दिख रहा है, वह श‍िक्षण संस्थानों में दलित-पिछड़ों के आरक्षण के मसले से खत्म हो सकता है. इसलिए सरकारी तंत्र में इस पर तत्काल कुछ कदम उठाने के बारे में मंथन शुरू हो गया है.

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आरक्षण व्यवस्था में बदलाव को लेकर दलित-पिछड़ों है गुस्सा
आरक्षण व्यवस्था में बदलाव को लेकर दलित-पिछड़ों है गुस्सा

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पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ आक्रामक रवैए से सरकार को राजनीतिक फायदा मिलता दिख रहा है, लेकिन अब आरक्षण के मसले को सरकार ने अगर तत्काल सही तरीके से नहीं निपट पाई तो उसे भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले एससी, एसटी और ओबीसी की नाराजगी सरकार को भारी पड़ सकती है. इसे देखते हुए सरकार में मंथन शुरू हो गया है और उच्च शि‍क्षण संस्थाओं में एससी/एसटी और ओबीसी के आरक्षण व्यवस्था में सुधार के लिए अध्यादेश लाया जा सकता है.

गौरतलब है कि उच्च श‍िक्षण संस्थानों में 13 पॉइंट रोस्टर वाले आरक्षण की नई व्यवस्था के विरोध में मंगलवार यानी आज कई संगठनों ने भारत बंद आयोजित किया है.कल यानी 6 मार्च, बुधवार को कैबिनेट की अंतिम बैठक है, क्योंकि इसके बाद लोकसभा चुनाव की घोषणा होनी है. इससे पहले ही पीएम मोदी को इस मसले पर निर्णय लेना होगा कि सुप्रीम कोर्ट के 22 जनवरी, 2019 के आदेश को पलटते हुए अध्यादेश लाया जाए या नहीं. सूत्रों के मुताबिक इस बारे में सरकार एक अध्यादेश ला सकती है कि विश्वविद्यालओं में विभागवार की जगह संस्थान वार आरक्षण लागू किया जाए. अंतिम कैबिनेट बैठक में सरकार कई महत्वपूर्ण फैसले ले सकती है. इस बैठक में ही सरकार उच्च शिक्षण संस्थाओं में सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण प्रदान करने के लिए 10 फीसदी आरक्षण को लागू करने के लिए 4,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्ति फंड आवंटित कर सकती है.

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असल में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शिक्षण संस्थानों में खाली एससी/एसटी पोस्ट को भरने के लिए 13 पॉइंट रोस्टर के साथ संस्थान वार आरक्षण लागू करने का आदेश दिया था, जबकि पहले यह आरक्षण विभागवार तय होता था. इलाहाबाद हाई कोर्ट के केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने आदेश में इस चुनौती को खारिज कर दिया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक यूजीसी ने सर्कुलर जारी कर सभी उच्च शिक्षण संस्थाओं में विभागवार की जगह संस्थान वार आरक्षण लागू करने का आदेश दिया था. इस सर्कुलर से एसएसी/एसटी और ओबीसी वर्ग में गुस्सा बढ़ने लगा.

गुस्से को देखते हुए केंद्र सरकार ने केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गहलोत से इस बारे में एक बिल तैयार करने को कहा और दिसंबर तक उन्होंने 'केंद्रीय शिक्षण संस्थान सीधी भर्ती बिल' तैयार भी कर लिया. लेकिन यह बिल ठंडे बस्ते में ही रहा. आरक्षण के मसले पर सवर्णों की नाराजगी को देखते हुए सरकार ने इस साल जनवरी में सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण का बिल भी पारित करा लिया.

दलित और पिछड़े वर्ग में आरक्षण की नई व्यवस्था को लेकर काफी गुस्सा है और वे सरकार से इस मामले में तत्काल एक्शन चाहते हैं. उनका कहना है कि नई व्यवस्था में दलित-पिछड़ों की भर्ती में 50 फीसदी तक की गिरावट आई है.

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दुविधाग्रस्त बीजेपी बनाएगी संतुलन

बीजेपी इस मामले में काफी दुविधा में है. एक तरफ चुनाव के अहम मौके पर उसे दलित-पिछड़ों की नाराजगी को दूर करना है, तो दूसरी तरफ यह देखना है कि सवर्ण भी इससे नाराज न हों. बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, 'अगर दलितों-पिछड़ों के आरक्षण के लिए सरकार बिल लेकर आई तो सामान्य वर्ग के गरीबों को जो 10 फीसदी आरक्षण दिया गया है, उसका फायदा बेकार हो जाएगा.'

इसलिए सरकार संतुलन बनाने का कदम उठा सकती है. यानी एक तरफ, दलित-पिछड़ों के आरक्षण व्यवस्था में सुधार के लिए अध्यादेश लाया जाएगा और दूसरी तरफ सामान्य वर्ग के 10 फीसदी आरक्षण को लागू करने के लिए 4,000 करोड़ रुपये की व्यवस्था की जाएगी. मानव संसाधन विकास मंत्री (HRD)प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि शिक्षण संस्थाओं में 10 फीसदी आरक्षण को जुलाई, 2019 सत्र से ही लागू किया जाएगा और इसके लिए सीटों में करीब 25 फीसदी की बढ़त की जाएगी.

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