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अनुच्छेद 370: सबसे पहले जगमोहन से क्यों मिले BJP अध्यक्ष अमित शाह?

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद संपर्क अभियान की शुरुआत जम्मू-कश्मीर के पर्व राज्यपाल जगमोहन से ही की. आखिर इसके पीछे क्या वजह रही...

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जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल जगमोहन से भेंट करते अमित शाह व नड्डा. (फोटो-ट्विटर)
जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल जगमोहन से भेंट करते अमित शाह व नड्डा. (फोटो-ट्विटर)

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  • बीजेपी ने अनुच्छेद 370 हटने के बाद शुरू किया है संपर्क अभियान
  • बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह व नड्डा ने की पूर्व राज्यपाल जगमोहन से भेंट
  • जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल रहते सख्त नीति के लिए जाने जाते हैं जगमोहन

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के अध्यक्ष अमित शाह और कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा मंगलवार (3 सितंबर) को जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल रहे जगमोहन मल्होत्रा से मिलने नई दिल्ली में चाणक्यपुरी स्थित घर पहुंचे. यह मुलाकात, बीजेपी के उस संपर्क अभियान का हिस्सा है, जिसे जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद पार्टी ने शुरू किया है. अमित शाह ने संपर्क अभियान की शुरुआत जगमोहन के साथ मुलाकात कर की.

दरअसल, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 पर लिए गए मोदी सरकार के ऐतिहासिक फैसले के कारणों से बीजेपी प्रबुद्ध वर्ग को अवगत कराना चाहती है. इसके लिए बीजेपी ने राष्ट्रव्यापी संपर्क मुहिम शुरू की है. राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के अलावा राज्यों में मुख्यमंत्री और मंत्री भी तमाम हस्तियों से भेंट कर उन्हें फैसले के निहितार्थ समझाते हुए मसले पर समर्थन मांगेंगे. बीजेपी का यह राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम पूरे सितंबर महीने चलेगा.

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जगमोहन से ही क्यों हुई पहली मुलाकात?

बीजेपी ने संपर्क अभियान की शुरुआत के लिए पूर्व राज्यपाल जगमोहन को ही क्यों चुना?  दरअसल इसके पीछे जम्मू-कश्मीर कनेक्शन है. जम्मू-कश्मीर में करीब छह वर्षों तक राज्यपाल रहने के दौरान जगमोहन वहां की नस-नस से वाकिफ माने जाते हैं. खास बात है कि कश्मीर को विशेषाधिकारों से लैस करने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म करने की मांग उठाने वाले प्रमुख लोगों में रहे हैं. कभी कड़क नौकरशाह के तौर पर राजधानी दिल्ली में पहचान बनाने वाले जगमोहन मल्होत्रा बाद में राजनीति में उतरे. गोवा, दिल्ली के जहां उप राज्यपाल रहे. वहीं जम्मू-कश्मीर के वह दो बार राज्यपाल रहे. बाद में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री भी बने.

जगमोहन को राज्यपाल बनाकर ऐसे वक्त में घाटी में भेजा गया था. जब आतंकवाद सिर उठा रहा था. अलगाववादी नेता जनता को भड़काकर बागी बना रहे थे. घाटी को भारत से अलग करने की साजिशें उफान पर थीं. जगमोहन को पहले कांग्रेस सरकार ने 1984 में राज्यपाल बनाकर भेजा. पहली पारी के दौरान वह जून 1989 तक राज्यपाल रहे.

फिर वीपी सिंह सरकार ने उन्हें दोबारा जनवरी 1990 में राज्यपाल के रूप में भेजा. वह इस पद पर मई 1990 तक रहे. राज्यपाल रहते हुए जगमोहन ने घाटी में कई सख्त फैसले किए. आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन की भी रणनीति बनाई. कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार भी रोकने की कोशिश की. हालांकि स्थानीय नेताओं का उन्हें खासा विरोध भी झेलना पड़ा.

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2004 में अरुण शौरी ने कहा था," यह जगमोहन ही रहे, जिन्होंने भारत के लिए घाटी को बचाया. उन्होंने धीरे-धीरे राज्य के अधिकार को फिर से स्थापित किया और आतंकवादियों को भगाया."

कश्मीर पर लिख चुके हैं 'दहकते अंगारे' किताब

जगमोहन मल्होत्रा जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद, अलगाववाद, अनुच्छेद 370 से पैदा हुई दुश्वारियों और राजनीतिक साजिशों जैसी  बिंदुओं को लेकर एक चर्चित किताब 'दहकते अंगारे' लिख चुके हैं. घाटी में हालात बिगड़ने से लेकर 1994 तक की घटनाओं का उन्होंने किताब में हवाला दिया है.

उन्होंने किताब में लिखा है, "आज जो कश्मीर है, वह अपने इतिहास की दो हजार वर्षों की लंबी यात्रा के दौरान घटित होने वाली सभी घटनाओं, विश्वासघात और षडयंत्रों का मलबा और दुखान्त नाटकों का प्रतिफल है. इतिहास द्वारा उसे मारे गए अनेक घाव अब भी ताजा बने हुए हैं. सन 1947 के मध्य में अपने इतिहास के सबसे निर्णायक मोड़ पर उसे एक ऐसे चिकित्सक की जरूरत थी जो उसके पुराने घावों को सिल सके और दागों पर मरहम लगा सके. दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ."

राजीव से जताई थी नाराजगी

जम्मू-कश्मीर के हालात पर केंद्र सरकार के लचर रुख पर राज्यपाल रहते हुए जगमोहन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को कड़ा पत्र लिखा था. उन्होंने 8 अप्रैल 1989 को राजीव गांधी को कश्मीर के मसले पर लिखे पत्र में कहा था, "आज कोई कदम उठाना समय पर किया गया काम हो सकता है, कल बहुत देर हो जाएगी. लेकिन कल को परसों में बदलने दिया गया और परसों को फिर अगले दिन टाल दिया गया और फिर अगले दिन पर. "

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संजय गांधी के पसंदीदा अफसर रहे जगमोहन

दिल्ली में सत्ता के गलियारे में भी जगमोहन की कड़क मिजाज छवि पसंद की जाती थी. जब इंदिरा गांधी ने1975 में इमरजेंसी लगाई तो उस वक्त दिल्ली विकास प्राधिकरण में जगमोहन चेयरमैन थे. तब संजय गांधी ने एक दिन बुलाकर उन्हें कहा- मुझे पुरानी दिल्ली एकदम साफ-सुथरी चाहिए. बस फिर क्या था कि जगमोहन ने अवैध अतिक्रमणों के खिलाफ ऐसी मुहिम चलाई की उनके काफिले के गुजरते समय लोग छुप जाते थे. पत्रकार तवलीन सिंह की किताब में जगमोहन के डीडीए चेयरमैन रहते पुरानी दिल्ली के मशहूर रेस्टोरेंट फ्लोरा को भी ढहाने की घटना का वर्णन है. यह रेस्टोरेंट तमाम प्रमुख लोगों का अड्डा हुआ करता था.

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