देश में हर तरफ चाहे कितनी ही गरीबी और महंगाई दिखायी दे, पर योजना आयोग की मानें तो देश में गरीब कम हुए हैं. सरकार के इन आंकड़ों को लेकर सियासी बवाल मच गया है. विपक्ष सरकार पर आम आदमी का मजाक उड़ाने का आरोप लगा रही हैं. वहीं, विपक्ष तो विपक्ष, खुद सरकार के साथी भी योजना आयोग के पैमाने को गलत ठहरा रहे हैं.
हमले की शुरुआत बीजेपी प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर की ओर से हुई है. उन्होंने कहा, 'यूपीए सरकार ने एक बार फिर जनता का मजाक उड़ाया है. रोजाना के खर्च में मात्र 1 रुपये का बदलाव करके सरकार ने देश के करोड़ो लोगों को सुविधाओं से वंचित कर दिया है.'
उन्होंने कहा, 'चुनाव से पहले यह सरकार की अपने रिकॉर्ड ठीक करने की कोशिश है. हम योजना आयोग की इस रिपोर्ट को खारिज करते हैं.'
प्रकाश जावड़ेकर ने कांग्रेस के नेताओं को चुनौती दी है कि वे मात्र 34 रुपये में दिनभर गुजारा करके दिखाएं. गौरतलब है कि योजना आयोग के मुताबिक ग्रामीण इलाके में 27 रुपये 20 पैसे और शहरी क्षेत्र में 33 रुपये 33 पैसे हर रोज खर्च करने वाले को गरीबी रेखा से नीचे नहीं माना जाएगा.
यूपीए की प्रमुख घटक दल एनसीपी योजना आयोग के आंकड़ों से सहमत नहीं है. एनसीपी नेता तारिक अनवर ने दो टूक कहा है कि गरीबी रेखा को निर्धारित करने का जो पैमाना योजना आयोग ने बताया है, वो सही नहीं है.
तारिक अनवर ने माना कि देश में गरीबी की हालत सुधरी है, क्योंकि लोगों के रहन-सहन में बदलाव आया है. लेकिन योजना आयोग ने जो आंकड़े बताए हैं, उनमें सुधार करने की जरूरत है.
एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल ने भी इन आंकड़ों पर अपनी नाराजगी जताई है. उन्होंने कहा, गरीबी में कमी आई है पर योजना आयोग के आंकड़ें सरासर गलत हैं.
योजना आयोग को नसीहत देते हुए उन्होंने कहा, 'आयोग को खाने और रहन-सहन के हिसाब से नई सीमा होनी चाहिए.'
ये है ताजा आंकड़ा
गरीबी पर योजना आयोग के नये आंकड़ो के मुताबिक 2011-12 में 2004-05 के मुकाबले गरीबी में 15 फीसदी की कमी आई है. 2011-12 में गरीबी 21.9 फीसदी दर्ज की गई जबकि 2004-05 में ये आंकड़ा 37.2 फीसदी था. योजना आयोग का कहना है कि 2011-12 में गरीबी का आंकलन तेंदुलकर प्रणाली के मुताबिक किया जाता था और अगर इस प्रणाली को माना जाये तो गांव में हर महीने 816 रुपये और शहरों में 1000 रुपये से ज्यादा कमाने वाले गरीबी रेखा से ऊपर उठ चुके हैं. इसका सीधा मतलब ये निकलता है अब गांवों में रोजाना 27.20 रुपये और शहरों में 33.30 रुपये से ज्यादा खर्च करने वाले गरीब नहीं कहे जाएंगे.
नई गरीबी रेखा 2011-12 की कीमतों के आधार पर तय की गई है. इसके मुताबिक गांव में रहने वाला पांच सदस्यीय परिवार अगर महीने में 4080 रुपये खर्च करता है तो वह गरीब नहीं माना जाएगा. इसी तरह शहर में 5000 रुपये महीना खर्च करने वाला परिवार गरीब नहीं कहलाएगा. नए आंकड़ों के मुताबिक अब देश में 21.9 फीसद ही गरीब हैं. अगर गरीबों की संख्या की बात की जाये तो 2011-12 में गरीबों की कुल संख्या 26.93 करोड़ हो गई है जबकि 2004-05 में ये संख्या 40.71 करोड़ थी.