गुजरात और हिमाचल प्रदेश में इस साल के अंत में होने वाले चुनाव के लिए बीजेपी ने रोडमैप तैयार कर लिया है. पार्टी के लिए अहम इन दोनो राज्यों में संगठन को मजबूत किया जाएगा. वहीं कांग्रेस के बाग़ियों और असंतुष्टो को भाजपा से जोड़ने की एक अलग रणनीति पर भी काम किया जाएगा. गौरतलब है कि भाजपा ने इसी तरह की रणनीति उत्तरप्रदेश,उत्तराखंड,गोवा और मणिपुर में लागू की थी. अब भाजपा इस नीति को विस्तार देने की तैयारी में है.
असंतुष्टों को ढूढों और भाजपा में लाओं
भाजपा के सूत्र बताते है कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ने इन दोनों राज्यों में कांग्रेस से नाराज चल रहे नेताओं और हशिए में चल रहे नेताओं को चिन्हित कर नेताओं से संवाद शुरू करने की रणनीति तय की है. इसके तहत भाजपा असंतुष्ट नेताओं को समझाएगी कि कांग्रेस में रहकर वे अपना भविष्य नहीं बना सकेंगे. साथ ही कांग्रेस में न तो उनका भविष्य बनाने और उनकी क्षमताओं का योग्य इस्तेमाल करने की ताकत बची है. गुजरात और हिमाचल के स्थानीय नेता इन असंतुष्टों से संपर्क कर मन टटोलने और जरूरत होने पर भाजपा अध्यक्ष से इन नेताओं की बात कराएंगे. विपक्ष के बड़े नेताओं को साधने और पार्टी में दाखिल कराने की जिम्मेंदारी प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश प्रभारी और संगठन महामंत्री निभाएंगे.
आगे बढ़ाएगी पांच राज्यों के चुनाव की रणनीति
भाजपा का आकलन है कि चुनाव पूर्व पार्टी में भगदड़ मचाने से विपक्षी पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्व चुनावी तैयारीयों को छोड़कर अपना पूरा ध्यान नेताओं को साधने में लगाएंगा. इससे वह मनोवैज्ञानिक लडाई में हार जाएंगा. 1 जून से लेकर 14 अगस्त तक विपक्षी नेताओं को मनाने का कार्यक्रम चलेगा और 16 अगस्त से लेकर नवंबर में चुनाव तक भाजपा में शामिल करने का कार्यक्रम होगा. भाजपा की रणनीति सिंतबर से हर हफ्ते विपक्ष के किसी नेता को भाजपा में शामिल करना है.
आधे से ज़्यादा विधायकों के टिकट कटेंगे
दिल्ली में एमसीडी चुनाव की तर्ज़ पर भाजपा का निशाना गुजरात और हिमाचल में भी मौजूदा विधायकों पर भी होगा. इन विधायकों को बदलकर नए चेहरे लाने की प्लानिंग है. पार्टी आलकमान को मिली रिपोर्ट के मुताबिक़ इससे जनता में विधायक के प्रति नाराज़गी को कम करने में आसानी होगी. नरेंद्र मोदी इससे पहले भी गुजरात में ये प्रयोग करते आए हैं.
संघ के फीडबैक पर होगा काम
गुजरात पार्टी के लिए इसलिए भी प्रतिष्ठा का सवाल है की प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी की जगह कोई नहीं भर पाया. साथ ही नेतृत्व परिवर्तन के बाद भी ख़ुद अमित शाह और संघ प्रमुख को राज्य पर नज़र रखनी पड़ी. लगातार संघ ने अपने शीर्ष नेताओ को राज्य के दौरे पर भेजा और बक़ायदा लोगों से मिलकर फ़ीडबैक रिपोर्ट तैयार की जिसमें उन तमाम कमियों का ज़िक्र है. पार्टी इस रिपोर्ट को आगे की रणनीति का हिस्सा बनाएगी. इससे 11 साल से हाथ में रही सत्ता हाथ से न निकल जाए. कुछ ऐसा ही हिमाचल प्रदेश में भी होगा जहाँ कांग्रेस का भ्रष्टाचार मुख्य मुद्दा होगा.