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थावरचंद गहलोत से मिले BJP दलित सांसद, SC के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन की मांग

सूत्रों के अनुसार थावरचंद गहलोत ने सभी दलित सांसदों को भरोसा दिया है कि वो पूरे विषय पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बात करेंगे.

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सामाजिक न्याय मामलों के केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत
सामाजिक न्याय मामलों के केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत

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बीजेपी के दलित सांसदों ने एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर सामाजिक न्याय मामलों के केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत से मुलाकात की. उन्होंने थावरचंद गहलोत से कहा कि इस मामले को प्रधानमंत्री के सामने रखना चाहिए. सरकार को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन लगानी चाहिए.

सूत्रों के अनुसार थावरचंद गहलोत ने सभी दलित सांसदों को भरोसा दिया है कि वो पूरे विषय पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बात करेंगे.

केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने 20 मार्च को सभी पार्टियों के दलित सांसदों को डिनर दिया था, जिसमें थावरचंद गहलोत भी थे. इस डिनर में भी कोर्ट के फैसले से पहले सभी सांसदों ने कहा था कि अगर फैसला उनके पक्ष में नहीं आता हैं तो पूरे मामले को प्रधानमंत्री मोदी के सामने रखकर आगे की रणनीति तय करनी होगी. डिनर में पदोन्नति में आरक्षण जैसे मुद्दों पर भी चर्चा हुई.

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महाराष्ट्र की राजनीतिक पार्टी और एनडीए के सहयोगी रामदास अठावले ने भी एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अरूण जेटली और अमित शाह से मुलाकात की है. अठावले ने सहयोगियों के साथ मुलाकात में इसे लेकर चिंता जताई. मुलाकात के बाद अठावले ने कहा कि दोनों नेताओं ने उनसे कहा कि सभी मामले फर्जी नहीं होते हैं.

वहीं कांग्रेस के दलित नेता पीएल पुनिया ने कहा कि बीजेपी सांसदों को डिमांड करने की जरूरत नहीं है. ये उनकी सरकार है. उन्हें रिव्यू पिटीशन फाइल करना चाहिए, लेकिन वे इसके खिलाफ हैं.

बता दें कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अधिनियम-1989 के दुरुपयोग को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के एक मामले में फैसला सुनाते हुए नई गाइडलाइन जारी की है. इसके तहत एफआईआर दर्ज होने के बाद आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी नहीं होगी.

इसके पहले आरोपों की डीएसपी स्तर का अधिकारी जांच करेगा. यदि आरोप सही पाए जाते हैं तभी आगे की कार्रवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की बेंच ने गाइडलाइन जारी करते हुए कहा कि संसद को यह कानून बनाते समय नहीं यह विचार नहीं आया होगा कि अधिनियम का दुरूपयोग भी हो सकता है. देशभर में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिसमें इस अधिनियम का दुरूपयोग हुआ है.

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नई गाइडलाइन के तहत सरकारी कर्मचारियों को भी रखा गया है. यदि कोई सरकारी कर्मचारी अधिनियम का दुरूपयोग करता है तो उसकी गिरफ्तारी के लिए विभागीय अधिकारी की अनुमति जरूरी होगी. यदि कोई अधिकारी इस गाइडलाइन का उल्लंघन करता है, तो उसे विभागीय कार्रवाई के साथ कोर्ट की अवमानना की कार्रवाई का भी सामना करना होगा.

वहीं, आम आदमी की गिरफ्तारी जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) की लिखित अनुमति के बाद ही होगी.

इसके अलावा बेंच ने देश की सभी निचली अदालतों के मजिस्ट्रेट को भी गाइडलाइन अपनाने को कहा है. इसमें एससी/एसटी एक्ट के तहत आरोपी की अग्रिम जमानत पर मजिस्ट्रेट विचार करेंगे और अपने विवेक से जमानत मंजूर और नामंजूर करेंगे.

अब तक के एससी/एसटी एक्ट में यह होता था कि यदि कोई जातिसूचक शब्द कहकर गाली-गलौज करता है तो इसमें तुरंत मामला दर्ज कर गिरफ्तारी की जा सकती थी.

इन मामलों की जांच अब तक इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अधिकारी ही करते थे, लेकिन अब जांच वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) के तहत होगी.

ऐसे मामलों में कोर्ट अग्रिम जमानत नहीं देती थी. नियमित जमानत केवल हाईकोर्ट के द्वारा ही दी जाती थी. लेकिन अब कोर्ट इसमें सुनवाई के बाद ही फैसला लेगा.

एनसीआरबी 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक, देशभर में जातिसूचक गाली-गलौच के 11,060 मामलों की शिकायतें सामने आई थी. इनमें से दर्ज हुईं शिकायतों में से 935 झूठी पाई गईं.

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