ललित मोदी को मदद मामले में अब तक कोई दस्तावेजी सबूत न होने की बात कहकर बच रहीं राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की मुश्किलें बढ़ गई हैं. कांग्रेस के नए खुलासे ने नैतिकता की दुहाई देने वाली मोदी सरकार की मुसीबतें भी जरूर बढ़ा दी है. लेकिन पार्टी किसी तरह की जल्दबाजी में कदम नहीं उठाना चाहती.
राजे ने पार्टी आलाकमान को दी अपनी सफाई में पहले अपने सांसद पुत्र दुष्यंत सिंह के ललित मोदी के लेन-देन से दूरी बना ली थी. सीधे राजे पर कोई आक्षेप नहीं था, इसलिए देर से ही सही, पार्टी आलाकमान को राजे के बचाव में उतरना पड़ा था. खुद राजे ने किसी तरह के दस्तावेज और उस पर हस्ताक्षर की बातों से अनभिज्ञता जाहिर की थी. लेकिन जिस तरह से विपक्षी कांग्रेस ने मुद्दे की नब्ज पकड़ ली है और सरकार पर दबाव बढ़ा दिया है उससे निपटने में बीजेपी का हालत पस्त हो रही है.
राजे नहीं लिख सकतीं ऐसी चिट्ठी?
हालांकि अब भी बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व का मानना है कि जिस तरह की भाषा चिट्ठी में लिखी है उसकी उम्मीद किसी नौसिखिए राजनेता से भी नहीं की जा सकती. ऐसे में वसुंधरा राजे इस तरह की भाषा वाली चिट्ठी पर दस्तखत कर सकती हैं यह सही प्रतीत नहीं होता. पार्टी और संघ से जुड़े एक वरिष्ठ नेता का मानना है, 'राजे राजनीति की मंझी हुई खिलाड़ी हैं और वह किसी भी सूरत में इस तरह की भाषा वाली चिट्ठी लिख नहीं सकती कि मेरी गवाही को हमारे देश की जांच एजेंसी या सरकार से साझा न किया जाए.'
बीजेपी अब भी चिट्ठी और राजे के दस्तखत की जांच का इंतजार कर रही है और फिलहाल राजे को संदेह का लाभ देना चाहती है. उसके पीछे पार्टी की राजनीतिक मजबूरी भी है क्योंकि राजे राजस्थान में एक क्षत्रप के रूप में स्थापित हो चुकी हैं और उनका जबरन इस्तीफा कराने का मतलब पार्टी में दो-फाड़ कराना है. शुरुआती आनाकानी के बाद बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व का राजे के बचाव में देर से आने का कारण भी यही माना जा रहा है.
विपक्ष के दबाव में नहीं आना चाहती सरकार
इसके अलावा बिहार चुनाव से पहले इस तरह के इस्तीफे से सियासी समर में पिछड़ रही बीजेपी के लिए यह घातक कदम हो सकता है. बीजेपी के एक वरिष्ठ रणनीतिकार का कहना है कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के बाद वसुंधरा राजे का मुद्दा जिस तरह सामने आया उसके बाद सरकार और पार्टी में शीर्ष स्तर पर यह तय किया गया कि सरकार को विपक्ष के दबाव में नहीं आना चाहिए. उनका कहना है, 'अगर एक बार इस्तीफा शुरू हो गया तो इसमें कोई संदेह नहीं कि आने वाले साल भर में ऐसे फिजूल के मामलों में इस्तीफा या उसकी मांग की झड़ी लग जाएगी और फिर जनता में यह माहौल बन जाएगा कि भ्रष्टाचार का पर्याय बन गई यूपीए की तरह एनडीए का भी हश्र हो गया है.' यही वजह है कि बीजेपी-सरकार की रणनीति आखिरी क्षण तक राजे और सुषमा का बचाव करने की है.
लेकिन आसान नहीं होगा राजे को बचाना
हालांकि राजे के मामले में बीजेपी ने उनसे स्पष्टीकरण मांगा है और उसे डर है कि कहीं जिस तरह दिल्ली में पूर्व कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शुरू में अंधेरे में रखा, उसी तरह कहीं राजे की ओर से भी ना हो. इसलिए पार्टी ने उनसे साफ तौर पर इस नए खुलासे को लेकर अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है. राजे के मामले में पहली बार आलाकमान स्तर से बचाव करते हुए पार्टी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने इस्तीफे के सवाल को काल्पनिक बताया था, लेकिन साथ में यह भी जोड़ा था कि इस मामले में कुछ नए तथ्य सामने आते हैं तो पार्टी उसकी जांच कर आगे फैसला करेगी. अब भी पार्टी की रणनीति इसी बयान के इर्द-गिर्द है. अगर राजे के मामले में हुए चिट्ठी के खुलासे में सच्चाई पाई जाती है तो बीजेपी आलाकमान के लिए शायद राजे को बचाना उतना आसान नहीं होगा.
कम से कम बिहार चुनाव तक मामला टालना चाहती है पार्टी
पार्टी की रणनीति इस मामले में साफ है कि राजे के खिलाफ हुए इस नए खुलासे को कम से कम बिहार चुनाव तक टाला जाए और इस बीच अंदरूनी जांच के जरिए सच्चाई का पता लगाया जाए. इसके लिए पार्टी और सरकार संसद के मानसून सत्र को भी हंगामे की भेंट चढ़ने देने के लिए तैयार है क्योंकि विपक्षी कांग्रेस ने पहले ही इस मामले में अपनी रणनीति स्पष्ट कर दी है. बीजेपी के एक नेता का कहना है कि कांग्रेस का हंगामा भी वैसा ही होगा जैसा विपक्ष में रहते बीजेपी ने भी कई मुद्दों पर किया था.
इन रणनीतियों से इतर बीजेपी फिलहाल नैतिकता के मसले पर बुरी तरह से घिरी हुई दिख रही है. एक तरफ विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर देश के कानून से फरार ललित मोदी की मदद करने का आरोप है तो दूसरी तरफ महाराष्ट्र में दिवंगत गोपीनाथ मुंडे की बेटी और देवेंद्र फड़नवीस सरकार में मंत्री पंकजा मुंडे पर भी घोटाले का आरोप लग गया है. ऐसे में बीजेपी इस भंवर से कैसे बाहर निकलती है यह देखना बेहद दिलचस्प होगा.