लाल किले पर नरेंद्र मोदी तिरंगा कैसे फहराएं इसके लिए तैयार किया गया है फॉर्मूला टेन. 10 ऐसे सूत्र जिसके जरिये मोदी उस बड़े वोट बैंक तक पहुंच सकें जो गुजरात दंगे की वजह से अब तक उनसे रूठा हुआ है.
जानें क्या है मोदी का 10 सूत्रीय फॉर्मूला...
दिल्ली के तख्त का दावेदार घोषित होते ही लगता है मिजाज बदल गया है नरेंद्र मोदी का. कभी मोदी को टोपी से परहेज था, लेकिन दिल्ली की गद्दी पर गुजरात के सरदार को बिठाने के लिए बीजेपी ने बनाय़ा है फॉर्मूला टेन. मकसद है मोदी पर अल्पसंख्यकों को रिझाना और इसका परीक्षण हो रहा है दिल्ली से.
29 सितंबर को दिल्ली में नरेंद्र मोदी की रैली है और बुर्का और टोपी वालों की भीड़ जुटाने के लिए बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा ने अपने कार्यकर्ताओं को दस सूत्रीय दिशा निर्देश जारी किया है.
1. अल्पसंख्यक कार्यकर्ताओं को दिल्ली में ऐसी जगहों की पहचान करनी है जहां पर मुसलमान भारी तादाद में रहते हैं. वहां पोस्टर और होर्डिंग के माध्यम से इस रैली की चर्चा करना.
2. हर जिले से कम से कम 2000 मुसलमानों को लाना सुनिश्चित करें यानी एक मंडल एक सौ मुस्लिम लोग.
3. किसी से भी टोपी या बुर्का पहन कर आने का आग्रह ना करें लेकिन दाढ़ी रखने और टोपी पहनने वाले मुसलमानों को स्वेच्छा से रैली में लाने का विशेष प्रयास करें.
4. महंगाई और भ्रष्टाचार से परेशान मुस्लिम महिलाओं को खास तौर पर रैली में शामिल होने के लिए आग्रह करें.
5. पसमंदा यानी ओबीसी मुसलमानों को रैली लाने पर खास तौर पर ध्यान केंद्रित करें.
6. रैली में जुटाने के लिए ज्यादा से ज्यादा मदरसों, मस्जिदों और दरगाहों की इंतजामियां से संपर्क करना.
7. पसमंदा मुस्लिम बिरादरी के प्रधानों से बैठक कर रैली लाने के लिए तैयार करें.
8. 27 सितंबर को दिल्ली की हर मस्जिद में जुमे की नमाज के बाद हिन्दी और ऊर्दू में तैयारी रैली का इश्तहार बांटें.
9. रैली को ध्यान में रखते हुए मुस्लिम बहुल इलाकों में बड़ी-बड़ी बैठकें करें.
10. दिल्ली भर के मुसलमानों खासतौर पर ओबीसी मुस्लिमों के बीच नरेंद्र मोदी का विकास पुरुष की छवि पेश करें. उन्हें भरोसा दिलाएं की जिस तरह गुजरात का मुसलमान तरक्की कर रहा है नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद बराबरी के अधिकार के साथ देश का हर मुसलमान तरक्की करेगा.
बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष आतिफ रशीद ने बताया, 'टोपी और दाढ़ी पहनने वाले मुसलमानों को हम रैली में आने के लिए दबाव नहीं डालेंगे, लेकिन ये रिक्वेस्ट रहेगी कि ऐसे लोग ज्यादा से ज्यादा संख्या में पहुंचें क्योंकि इससे कौम की पहचान होती है.'
दिल्ली बीजेपी की प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, 'गुजरात में मुसलमानों ने तरक्की की है, अब देश की बारी है, इसीलिए मुस्लिम मोदी जी की रैली में आएंगे, टोपी और बुर्का पहनकर आएंगे, इस पर कोई पाबंदी थोड़ी है, मुस्लिमों को भी लगता है कि मोदी ही उनकी तरक्की करा सकते हैं.
सूत्रों के मुताबिक बीजेपी ने 25000 मुसलमानों को मोदी की रैली में लाने का लक्ष्य रखा है. इसके लिए हर जिले को 2000 लोगों का टारगेट दिया गया है. पार्टी की कोशिश है कि कम से कम 5 हज़ार बुर्का पहनने वाली औरतें जरूर रैली में शामिल हो ताकि संदेश साफ जाए कि अल्पसंख्यकों को अब मोदी से परहेज नहीं रहा.
दिल्ली बीजेपी की कोशिश है कि मोदी की रैली में मुसलमान न सिर्फ आएं, बल्कि मुसलमान आए हैं ये दिखना भी चाहिए. अब इसका मकसद कुछ भी हो, लेकिन बड़ा सवाल अब भी है कि क्या इस कवायद से मोदी मुसलमानों के दिल में जगह बना पाएंगे.
दरअसल, जब से मोदी बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के दावेदार बने हैं तभी से ऐसी कोशिशें हो रही हैं कि गुजरात के सरदार को अल्पसंख्यकों के करीब लाया जा सके. जयपुर की रैली में खासतौर पर मुसलमानों को बुलाया गया था तो भोपाल और दिल्ली रैली के लिए भी ऐसा इंतजाम हो रहे हैं. यही नहीं बीजेपी अल्पसंख्यकों के लिए एक विजन डॉक्युमेंट भी लाने जा रही है.
संदेश साफ है... एक योजना के तहत मोदी के साथ अल्पसंख्यकों को दिखाने की कोशिश हो रही है क्योंकि सवाल दिल्ली का है और बीजेपी ही नहीं मोदी को भी पता है कि दिल्ली गुजरात नहीं है. हालांकि, बीजेपी और उसकी सहयोगी ऐसे किसी मिशन से साफ इनकार करते हैं.
ये नेता कुछ भी कहें लेकिन हाल की कवायद में मोदी का मिशन एम साफ नजर आ रहा है. 25 तारीख को भोपाल में बीजेपी की रैली है. यहां भी अल्पसंख्यक मोर्चा की तरफ से मुस्लिमों से बुर्का टोपी में आने की अपील की गई है. दिल्ली की 29 सितंबर की रैली के लिए 10 सूत्रीय फरमान जारी हुआ है. मकसद साफ है, मुसलमान ना सिर्फ रैली में पहुंचे बल्कि टीवी के कैमरों में उनकी मौजूदगी नजर भी आए ताकि भारतीय सियासत में मोदी की बढ़ती स्वीकार्यकर्ता को दिखाया जा सके. बीजेपी सीना तान कर कह सके कि विकास पुरुष मोदी से अब किसी को परहेज नहीं.
कहीं मोदी दो नावों की सवारी तो नहीं कर रहे?
मोदी की छवि कट्टर हिन्दूवादी नेता की रही है और वो इससे कभी परहेज भी नहीं करते. लेकिन, उनकी रैलियों को लेकर पार्टी की तरफ से जो कवायद चल रही है, कहीं ऐसा तो नहीं मोदी दो नावों की सवारी कर रहे हैं. सालों से गढ़ी गई छवि भी बनी रहे और रूठा हुआ वोट बैंक भी साथ आ जाए.
गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी सियासत में होकर भी कभी दूसरे नेताओं की तरह नहीं हुए. चाहे कैसा भी दबाव हो अपनी पहचान से उन्होंने कभी समझौता नहीं किया. गुजरात दंगों को लेकर आलोचना होती रही. आलोचक माफी की मांग करते रहे लेकिन मोदी ने ना तो माफी मांगी ना ही खुद को हिन्दुत्व का झंडाबरदार होने से इनकार किया.
- सवाल उठता है विरोधियों की भारी आलोचना झेलकर मोदी ने जो छवि बड़ी मेहनत से गढ़ी क्या वो उस छवि को तोड़ने जा रहे हैं?
- क्या लाल किले से झंडा फहराने का सपना पूरा करने की खातिर आडवाणी के नक्शे-कदम पर तो नहीं चल रहे हैं मोदी?
गौरतलब है कि बीजेपी के पीएम इन वेटिंग रहे आडवाणी ने पाकिस्तान में जिन्ना को सेकुलर बताकर अपनी कट्टर छवि सुधारने की कोशिश की थी. लेकिन, मोदी के मामले में खास बात ये है कि अब तक उन्होंने खुद तो ऐसा कोई बयान देने से परहेज किया ही, जब भी मौका मिला खुद को हिन्दुत्व के पोस्टर ब्वॉय के रूप पेश करने का मौका नहीं छोड़ा.
एक तरफ हर मौके पर अपनी हिन्दू राष्ट्रवादी की छवि और मजबूत करने की कोशिश, दूसरी तरफ पार्टी की ओर से मोदी की रैली में अल्पसंख्यकों को जुटाने की कवायद, कहीं दो नावों की सवारी तो नहीं कर रहे हैं नरेंद्र मोदी?
यानी, एक तरफ अपनी छवि के जरिये वोटों का ध्रुवीकरण बनाए रखना और दूसरी तरफ गुजरात के विकास की तस्वीर दिखाकर अपने सहयोगियों के जरिये ये संदेश देना कि जब गुजरात के अल्पसंख्यक को मोदी से परहेज नहीं तो फिर बाकियों को क्यों दिक्कत हो रही है? मोदी का मिशन साफ है. विकास पुरुष की छवि के जरिये हर तबके में पैठ बनाना. पीएम बनने का सपना पूरा करने के लिए ये जरूरी भी है.