नरेंद्र मोदी में ऐसा क्या है कि वो कुछ भी करें विपक्ष उन्हें मात नहीं कर पाता. इसकी एक ही वजह है कि वो जनता की नब्ज समझते हैं, उनकी भाषा की जादूगरी जनता की हर तकलीफ को देश के लिए त्याग में बदल देती है. यही वजह है कि सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर नोटबंदी तक हर मुद्दो को वो भुनाने में कामयाब रहे हैं.
अगर सियासत में में नसीब की भी कोई सत्ता और महत्ता होती है तो नरेंद्र मोदी इसके धनी हैं, उनकी हर नीति हलचल पैदा करती है. हर नीति पर विवाद होता है और हर नीति पर सवाल उठते हैं. हर बार लगता कि नरेंद्र मोदी अब विपत्ति में हैं. लेकिन इंडिया टुटे कार्वी इनसाइट का सर्वे बताता है कि वो विपत्ति को संपत्ति में बदलने के कलाकार हैं, जिस नोटबंदी को बड़े-बड़े अर्थशास्त्री विनाशक बता रहे थे पोल में वही उन्हें महा प्रशासक साबित कर रहा है.
नोटबंदी दूसरे नंबर पर
सर्वे के मुताबिक 23 फीसदी लोगों ने काले धन के खिलाफ मोदी सरकार की मुहिम को सबसे महान उपलब्धि बताया है. भ्रष्टाचारमुक्त सरकार और नोटबंदी को 14 फीसदी ने बड़ी उपलब्धि बताया तो 11 फीसदी की नजर में स्वच्छ भारत अभियान और 9 फीसदी के लिए पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि है. तात्पर्य यह कि आज की तारीख में विपक्ष मोदी के किसी भी फैसले को जनता के खिलाफ साबित करने में नाकाम रहा है, वो जो भी करते हैं वही उन्हें बीस बना देता है, वो विपक्ष की हर खिलाफत को हास्य का बुलबुला बना देते हैं. सर्जिकल स्ट्राइक हो या फिर काले धन पर चोट. पीएम मोदी के ये दो कदम आज भी जनता की नजरों में मास्टर स्ट्रोक हैं. जब हमने पूछा कि क्या आपको लगता है कि नए नोट के रूप में फिर से अर्थव्यवस्था में काला धन लौट आया है तो 45 फीसदी मानते हैं कि नोटबंदी से काला धन हमेशा के लिए खत्म हो गया. लेकिन 36 फीसदी ये भी कहते हैं कि काला धन अब नए नोटों में बदल गया है. 19 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें पता नहीं नोटबंदी से क्या हुआ और क्या नहीं.
जीएसटी पर भरोसा
एक जुलाई को आधी रात के सत्र में एक देश एक टैक्स यानी जीएसटी का घंटा बजा था. इस घंटे ने भी विपक्ष की घंटी बजाई है. पूरी दुनिया में यह अपने आप में अनोखा उदारहण है कि सरकार ने लोगों से ज्यादा टैक्स वसूलने का उत्सव मनाया और लोगों ने मुस्कुराकर स्वीकार किया. 39 फीसदी की राय में जीएसटी से जरूरी चीजों की महंगाई रोकने में मदद मिलेगी, जबकि 33 फीसदी मानते हैं कि ऐसा कुछ नहीं होगा सब हवा हवाई है.
अर्थव्यवस्था किसी भी सरकार की कामयाबी का पैमाना होती है. इस मोर्चे पर भी मोदी सरकार हिट साबित हुई है. 44 फीसदी की नजरों में पिछले तीन सालों में आर्थिक हालात पहले बेहतर हुए हैं, जबकि 37 फीसदी बताते हैं कि जैसे थे वैसे ही हैं. 13 फीसदी की नजर में आर्थिक हालत और पतली हुई है. खास बात ये है कि जनवरी के सर्वे में 53 फीसदी ने माना था कि आर्थिक हालात पहले से बेहतर हुए हैँ. मतलब आर्थिक हालात बेहतर मानने वालों में 9 फीसदी की गिरावट आई है.लेकिन इसे मोहभंग नहीं कह सकते. कहने का मतलब ये कि किसान मरते रहे हैं, मजदूर नोट लेकर बैंकों के सामने खड़े रहे हों, व्यापारी टैक्स की नई व्यवस्था को लेकर परेशान हों लेकिन नरेंद्र मोदी का जलवा कमजोर नहीं पड़ता. देश की पूरी राजनीति इस समय मुद्दाविहीन हो गई है. विपक्ष के लिए मोदी ही मुद्दा हैं, मोदी ही रास्ता, मोदी ही लड़ाई और मोदी ही लक्ष्य. अब इस बिखरे हुए अनारदाने में जिसे जो हासिल हो जाए.