पूर्वोत्तर में पिछले लंबे समय से जारी प्रतिबंधित संगठनों का संघर्ष अब थम गया है. सोमवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में बोडो संगठनों का केंद्र-असम सरकार के साथ समझौता हुआ. इसी के साथ इन संगठनों ने हिंसा का रास्ता छोड़ने की बात की और बोडोलैंड की मांग नहीं करने का दावा किया है. केंद्र सरकार और बोडो समुदाय के बीच जो समझौता हुआ है, उसमें क्या खास है जानें...
- पिछले पांच साल में पूर्वोत्तर में अलग-अलग प्रतिबंधित संगठनों के महत्वपूर्ण सदस्य या तो आत्मसमर्पण कर चुके हैं या फिर गिरफ्तार हो चुके हैं. आज समझौते में जो बोडो संगठन शामिल हुए हैं, वो असम में अंतिम सक्रिय गुटों में से एक हैं.
- इस समझौते के बाद भारत सरकार को उम्मीद है कि एक संवाद और शांति प्रकिया के तहत उग्रवादियों का मुख्य धारा में शामिल करने का सिलसिला शुरू होगा.
- पिछले एक महीने में पूर्वोत्तर समस्या से जुड़े तीन बड़े और ऐतिहासिक समझौते भारत सरकार ने किए हैं. इसमें त्रिपुरा में 80 सशस्त्र आतंकियों का समर्पण, मिजोरम-त्रिपुरा के बीच ब्रू रियांग शरणार्थियों को स्थायी निवास देना और अब बोडो शांति समझौता होना शामिल है.
- इस समझौते के तहत इस गुट के सदस्यों को आर्थिक मदद भी सरकार की तरफ से मुहैया करवाई जाएगी, इसकी मांग ये गुट पिछले कई दिनों से कर रहा था.
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- ये समझौता मुख्य रूप से तीन पक्षों के बीच हुआ है, जिसमें केंद्र सरकार, असम सरकार और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड शामिल हैं.
- इस समझौते से पहले भारत सरकार ने ये साफ किया है कि असम की एकता बरकरार रहेगी और उसकी सीमाओं में कोई बदलाव नहीं होगा. यह समझौता भारतीय संविधान के दायरे में होगा.
बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में सोमवार को इस समझौते पर हस्ताक्षर हुए. यहां अमित शाह ने कहा कि आज भारत सरकार, असम सरकार और बोडो संगठन के चार समूहों के बीच समझौता हुआ है, ये सुनहरे भविष्य का दस्तावेज है. इस दौरान असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल समेत पूर्वोत्तर के अन्य बड़े नेता शामिल हुए.
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