बोफोर्स का जिन्न एक बार फिर खुलेगा या ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा, यह बड़ा सवाल इसलिए है क्योंकि सीबीआई ने 13 साल बाद 64 करोड़ के घोटाले के इस चर्चित केस की जांच दोबारा खोलने के लिए अर्जी दी है. सोमवार को अर्जी पर तीस हजारी कोर्ट में सुनवाई होनी थी. मामले से जुड़े कई अहम दस्तावेजों और रिकार्ड्स के सुप्रीम कोर्ट में होने के चलते सुनवाई अभी 28 सितंबर के लिए टल गई है.
कोर्ट ने सीबीआई से कहा कि पहले वह रिकार्ड्स और दस्तावेज तीस हजारी कोर्ट में पेश किए जाएंगे और कोर्ट उन्हें देखने के बाद अगर संतुष्ट होता है तो फिर यह तय किया जाएगा कि इस मामले को दोबारा खोला जाए या नहीं.
बोफोर्स केस: सुप्रीम कोर्ट ने CBI से पूछा, 12 साल तक क्यों नहीं की अपील?
सीबीआई ने ये अर्जी दिल्ली की तीस हज़ारी कोर्ट में यह कह कर दी है कि उसके पास कुछ ऐसे दस्तावेज हैं जो इस मामले में बेहद अहम हैं. हालांकि सीबीआई के दावे में कितना वजन है यह अगली कुछ सुनवाई के दौरान कोर्ट में साफ हो जाएगा. लेकिन सीबीआई कहती है कि नये सबूतों के आधार पर उसने अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से बात करने के बाद ये फैसला लिया है.
गौरतलब है कि 1986 में 1437 करोड़ रुपये के बोफोर्स तोप सौदे में कथित तौर पर 64 करोड़ रुपये की दलाली देने का आरोप है. 2005 में दिल्ली हाईकोर्ट ने घोटाले के आरोपी हिंदुजा भाइयों को भी बरी कर दिया था.मगर सीबीआई ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी थी.
इसलिए अब बड़ा सवाल यह है कि 13 साल बाद देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी के हाथ तीन दशक बाद ऐसा क्या लगा है जिससे वह बोफोर्स मामले को दोबारा खुलवाना चाहती है. हालांकि 13 साल बाद बोफोर्स मामले को दोबारा खोले जाने को कांग्रेस ने समस्याओं से देश का ध्यान भटकाने और पार्टी को बदनाम करने का सियासी हथकंडा ही करार दिया है.
बता दें कि बोफोर्स तोपों की खरीद में दलाली का खुलासा अप्रैल 1987 में स्वीडन रेडियो ने किया था. रेडियो के मुताबिक बोफोर्स कंपनी ने 1437 करोड़ रुपये का सौदा हासिल करने के लिए भारत के बड़े राजनेताओं और सेना के अधिकारियों को रिश्वत दी थी. राजीव गांधी का नाम बोफोर्स केस में आने का असर इतना था कि उन्हें इसकी वजह से सत्ता से बाहर होना पड़ा.
दरअसल राजीव गांधी सरकार ने मार्च 1986 में स्वीडन की एबी बोफोर्स से 400 तोपें खरीदने का करार किया था. इस खुलासे ने भारतीय राजनीति और राजीव गांधी की पार्टी में उथल-पुथल मचा दी थी. उसके बाद 1989 के लोकसभा चुनाव में ये मुख्य मुद्दा था जिसने राजीव गांधी को सत्ता से बाहर कर दिया और वीपी सिंह राष्ट्रीय मोर्चा सरकार के प्रधानमंत्री बन गए.