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CBI ने कहा- हिंदुजा बंधुओं की बोफोर्स मामले में रिहाई का विरोध न करने के मिले थे आदेश

बोफोर्स मामले में सुप्रीप कोर्ट ने सीबीआई को लगाई फटकार. कहा इस मामले के 14 वर्षों तक चलने की वजह से राजकोष को हुआ 250 करोड़ का घाटा और न जाने कितनी जिंदगियां तबाह हुईं.

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बोफोर्स घोटाला- कोर्ट सुनवाई
बोफोर्स घोटाला- कोर्ट सुनवाई

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सीबीआई ने बीते गुरुवार सुप्रीम कोर्ट के सामने इस बात को स्वीकारा है कि उसे एक दशक पहले हुए बोफोर्स घोटाले जांच नहीं करने के मिले थे. उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा हिंदुजा बंधुओं के रिहा किए जाने के खिलाफ अपील करने से रोका गया था. यह मामला 5 वर्षों के बाद जब फिर से ताजा सुनवाई के तहत जस्टिस टीएस ठाकुर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के सामने आया तो इस मामले में हाई कोर्ट ऑर्डर के खिलाफ अपील करने वाले निजी याचिकाकर्ता वकील अजय कुमार अग्रवाल गायब थे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें इस मामले में विशेष तौर पर परमिशन दी थी.

बैंक ने हिंदुजा बंधुओं की नोटिस पर पूछे सवाल...
इस केस को पहली बार हैंडल करने वाली बेंच इस बात को जानना चाहती थी कि इस मामले में 12 अगस्त, 2010 को हुई अंतिम सुनवाई में क्या हिंदुजा बंधुओं को नोटिस दी गई थी. वे जानना चाहते थे कि क्या 18 अक्टूबर, 2005 की तारीख पर हिंदुजा बंधुओं को भेजी गई नोटिस मिली थी. यहां तक कि सीबीआई को भी नोटिस के बारे में कुछ नहीं पता था.

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सीबीआई की ओर से केस लड़ने वाले पी.के. डे ने कहा कि सीबीआई को हाईकोर्ट द्वारा 31 मई, 2005 को सुनाए गए फैसले के खिलाफ अपील करने की परमिशन नहीं दी गई थी. हाई कोर्ट के इस फैसले से हिंदुजा बंधु- श्रीचंदद, गोपीचंद और प्रकाशचंद के साथ-साथ बोफोर्स कंपनी को छूट मिल गई थी.

बेंच ने याचिकाकर्ता के बारे में की पूछताछ...
सुप्रीप कोर्ट की बेंच ने पूछा 'याचिकाकर्ता कहां है?' इस बीच याचिकाकर्ता ने अपनी अनुपस्थिति में किसी को नियुक्त भी नहीं किया था. बेंच ने पूछा कि क्या याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट में ही प्रैक्टिस करता है. डे ने हां में जवाब दिया. बेंच ने जनवरी तक के लिए कार्यवाही स्थगित कर दी है. 18 अक्टूबर को कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील करने की छूट दी थी. हाई कोर्ट ने हिंदुजा बंधुओं पर लगे तमाम आरोपों को रद्द कर दिया था और सीबीआई को इस केस के हैंडल करने पर फटकार लगाई थी.


हाई कोर्ट इस मामले की जांच को लेकर नहीं है संतुष्ट...
हाई कोर्ट के जज कहते हैं कि कोर्ट से विदा लेने से पहले वे कहना चाहते हैं कि वे 14 साल तक चली इस जांच से कतई संतुष्ट नहीं हैं. वे कहते हैं कि इस केस की वजह से राजकोष को लगभग 250 करोड़ का घाटा हुआ है. इस केस पर मीडिया की मदद से बड़ा गुबार खड़ा किया गया. जिसने कोर्ट द्वारा संज्ञान लिए जाने की स्थिति में दम तोड़ दिया. इस वजह से एक तरफ जहां आर्थिकी को भारी धक्का लगा वहीं कई आरोपी तो इन लांछनों के साथ ही मर-खप गए. वे इस मुख्य छानबीन करने वाली संस्था को और अधिक जिम्मेदार होने की उम्मीद करते हैं.

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