मुंबई में चल रही 'पंचायत आज तक' में महाराष्ट्र में होने जा रहे विधानसभा चुनाव और प्रदेश के विकास पर विचार-मंथन जारी है. इस कार्यक्रम में कई नामी-गिरामी शख्सियतें शिरकत कर रही हैं. बॉलीवुड से आशुतोष राणा, रोहित शेट्टी और रजा मुराद ने भी बेबाक होकर पंचायत में अपनी राय रखी.
मुंबई कैसे बनेगा शंघाई?
रोहित शेट्टी:
हकीकत में मुंबई शंघाई बन सकता है. एक लंबी लिस्ट बनानी होगी. वक्त लगेगा.
हम सबको चेंज करना होगा. जो लोग शहर में रह रहे हैं उन्हें भी.
आशुतोष राणा: जो अब तक हमारे ख्यालों में था उसे हकीकत बनाने वाले का कलाकार कहते हैं. मेरे हिसाब से कलाकार सपने को सच्चाई बनाकर पेश कर देता है और राजनेता सच्चाई को सपना बनाकर दिखाता है.
रजा मुराद: मुंबई हमारे लिए मां की तरह है. इसने हमें गोद लिया. हमें पाला. ये वो शहर है जो हर प्रतिभाशाली आदमी को मौका देता है. मुंबई को शंघाई बनाने में हम क्या कर रहे हैं. इसके बारे में सोचना अहम है.
मुंबई में सबसे खूबसूरत जगह कौन सी है?
रोहित शेट्टी: वैसे मुंबई में जगह ही नहीं है.
आशुतोष राणा: शहर से इंसान नहीं बनता. इंसानों से शहर बनते हैं. जब पालतू कुत्ता भी घर के ड्राइंग रूम को गंदा नहीं करता, तब हम सड़कों को गंदा करने पर क्यों आमादा हैं.
मधुर भंडारकर: मुंबई ऐसा शहर है कि जो यहां का पानी पी जाता है, वो यहीं का होकर रह जाता है. फर्श से अर्श तक पहुंचने की कहानी ज्यादा मुंबई से आती है. यही इस शहर की पहचान है. वक्त-वक्त के हिसाब से समाज भी बदलता है. बॉलीवुड वही दिखाता है जो समाज में हो रहा है.
रोहित शेट्टी: जब हम छोटे थे तो स्थिति दूसरी थी. प्ले ग्राउंड, गार्डन्स हुआ करते थे. अब सिर्फ शॉपिंग मॉल हैं. अब चलने के लिए जगह नहीं है. तो आप बाहर ही घूमने जाएंगे. इतनी शर्मनाक बात है कि विदेशी जब मुंबई आते हैं तो उनके लिए धारावी स्लम को देखने आते हैं.
आशुतोष राणा: मैं नेगेटिव कैरेक्टर बेहद ही पॉजिटिव ढंग से करता हूं. मुंबई में माया, उत्साह, बल और इच्छा है. ऐसी जगह कभी लंका नहीं बन सकती. आवश्यकता है कि उसकी शिद्दत के साथ पूजा करें. आज मुंबई में सिर्फ मकान बनते हैं. जितने भी कारखाने हों तो वो बंद हो गए. आज धारावी है कल कोई नया स्लम सामने आ जाएगा. जैसे भारत पूरी दुनिया के लिए बीज-पुंज है, उसी तरह से मुंबई देश के लिए बीज-पुंज है.
सिनेमा की समाज में कितनी जिम्मेदारी?
रोहित शेट्टी: समाज में अच्छे और बुरे लोग हमेशा रहेंगे.
मधुर भंडारकर: हकीकत देखने से कोई परहेज नहीं. मेरी फिल्में तो हकीकत पर ही बनी होती हैं. मैंने इसके बल पर ही तो नेशनल अवार्ड तो जीता है. फिल्म का सकारात्मक असर तो पड़ता है. कई बार नेताओं का फोन आता है कि वो इस मुद्दे से प्रभावित हुए. मैसेज देने के साथ इंटरटेनमेंट का ख्याल तो रखना पड़ेगा ही. वरना दर्शक तो बोर हो जाएंगे.
आशुतोष राणा: सिनेमा समाज का प्रतिबिंब होता है. जैसे-जैसे समाज बदलता है सिनेमा में बदलाव आता है. जिस तरह से देश में टैक्स की मार पड़ रही है. लोगों के पास परिवार के साथ वक्त बिताने के लिए पैसा कहां? हमारे पॉकेट में पैसा तो पहुंचता है पर वह बाजार में ही रह जता है. हम एक असुरक्षित समाज से सुरक्षित चीजों की उम्मीद कैसे कर सकते हैं. मैं यही कहूंगा कि ये शहर आपको सलाम करे या ना करे पर आपकी प्रतिभा को जरूर सलाम करता है.
इस शहर को बदला जाए?
रोहित शेट्टी: मुंबई शहर तो बदल ही रहा है. ये कहना कि हम पीछे रह गए, ये गलत होगा. बस बदलने में इतना वक्त लग जाता है कि उसका मजा खत्म हो जाता है. विकास तो हो रहा है पर गति नहीं है.
आशुतोष राणा: इस शहर में गति तो है प्रगति नहीं. हम जब किसी को चुनते हैं तो खुद से ज्यादा जिम्मेदार को चुनते हैं. हमने उस सजग इंसान से कोई उम्मीद रखी तो उसमें गलत क्या?